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सर्जन डॉ. शैलेन्द्र लालवानी की टीम ने रेयर और कॉम्प्लेक्स लिवर ट्रांसप्लांट कर नौ महीने के बच्चे को दिया नया जीवन

नई दिल्ली:एक रेअर और कॉम्प्लेक्स सर्जरी में भारतीय सर्जनों की एक टीम ने नौ महीने के अली हमद पर सबसे जटिल लाइव-सेविंग लिवर ट्रांसप्लांट किया, जो एक रेअर लिवर डिसऑर्डर के कारण लिवर फेल्योर से पीड़ित था। आम तौर पर सर्जनों के लिए एक वर्ष की आयु तक और 10 किलो से कम वजन वाले बच्चों में ट्रांसप्लांट को बहुत अधिक रिस्की पाते हैं। एचसीएमसीटी मणिपाल अस्पताल, नई दिल्ली में उच्च अनुभवी विशेषज्ञों की एक टीम ने चुनौतियों का सामना किया और सभी जटिलताओं को पार करते हुए सर्जरी की। हमद की मां ने अपने लिवर का हिस्सा उस बच्चे के जीवन को बचाने के लिए दान कर दिया, जो तीन बच्चों के बाद पैदा हुआ था। इससे पहले तीनों बच्चों की मौत शायद इसी तरह की बीमारी से हुई थी और समय उनका निदान और उपचार नहीं हो सका था।
लिवर ट्रांसप्लांट और हेपाटो-पैंक्रियाटिक-बाइलरी सर्जरी विभाग के प्रमुख, एचसीएमसीटी मणिपाल हॉस्पिटल्स ने उस सर्जरी को अंजाम दिया, जो हमद को बेहद जटिल लिवर  ट्रांसप्लांट प्रक्रिया से गुजरने वाले सबसे कम उम्र के शिशुओं में से एक बनाता है। डॉ. शैलेन्द्र लालवानी की टीम को डॉ. ललित सहगल एचओडी – जनरल एनेस्थेशिया, लिवर ट्रांसप्लांट एनेस्थेशिया, लिवर क्रिटिकल केयर, डॉ. विकास तनेजा, एचओडी – बाल रोग विशेषज्ञ और डॉ. सुफला सक्सेना, कंसल्टेंट – पीडियाट्रिक गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट और हेपेटोलॉजिस्ट ने सहयोग किया।
Dr. Shailendra Lalwani HoD, Liver Transplant, Manipal Hospitals along with his team and 9-month old patient Ali Hamad & his Mother at a Press Conference in New Delhi on Friday( Photo By Hamid Ali)
नौ महीने के हमद को प्रोग्रेसिव फेमिलियल इंट्राहेपेटिक कोलेस्टासिस टाइप II (PFIC TYPE 2) था। उन्हें जन्म से ही पीलिया था। मरीज को इराक में पीलिया और बार-बार हो रहे कोलेंजाइटिस के लिए कई बार अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। पीलिया के लिए उनका असेसमेंट किया गया था और इराक में की गई एक लिवर बायोप्सी ने प्रोग्रेसिव फैमिलियल इंट्राहेपेटिक कोलेस्टेसिस टाइप-2 को सामने लाया। पीलिया के कारण रोगी के तीन अन्य भाई-बहनों की मृत्यु हो गई क्योंकि उनकी बीमारी डायग्नोज ही नहीं हो सकी थी। हिस्ट्री, क्लीनिकल कंडीशन और पैथोलॉजिकल डायग्नोसिस के आधार पर रोगी को लिवर ट्रांसप्लांट के लिए रैफर किया गया था।
डॉ. लालवानी ने कहा, “हमद को कोलेंजाइटिस से इंफेक्शन हो रहा था जिसके लिए उन्हें भर्ती कराया गया और इलाज किया गया। बार-बार होने वाले कोलेंजाइटिस के अलावा रोगी को 6.1 किग्रा वजन के साथ एसाइटिस और ग्रोथ फैल्योर रूप में चिह्नित किया गया था। उन्होंने एक जीवित डोनर लिवर ट्रांसप्लांट का असेसमेंट किया और उनकी मां का असेसमेंट एक संभावित डोनर के रूप में किया गया। इवैल्युएशन के दौरान, सीटी स्कैन ने सिरोटिक बदलावों को दर्शाया, महत्वपूर्ण एसाइटिस और महत्वपूर्ण पोर्टोसिस्टिक कोलेटरल के साथ कोई प्रवाह प्रवाह के साथ एटेन्युएटेड पोर्टल वेन के साथ हेपेटोसप्लेनोमेगाली देखा गया।”
डॉ. लालवानी ने विस्तार से बताया “लिवर में ब्लड सप्लाई को रोकना या क्लीनिकली बोले तो पोर्टल वेन में ब्लड सप्लाई किसी भी लिवर ट्रांसप्लांट टीम के लिए एक बड़ी चुनौती रहती है क्योंकि पीडियाट्रिक ट्रांसप्लांट के रोगियों में वस्कुलर जटिलताएं अधिक होती हैं और ग्राफ्ट के साथ पोर्टल वेन को फिर से बनाना बड़ी चुनौती रहती है। इससे थ्रोम्बोटिक जटिलताओं का जोखिम बढ़ जाता है। इन चुनौती से निपटने के लिए, हमने कैडेवरिक लिवल ट्रांसप्लांट के दौरान इलियाक वेन ग्राफ्ट अरेंज करने की योजना बनाई थी।”
उन्होंने कहा, 3 जनवरी 2021 को बच्चे का ट्रांसप्लांट हुआ। पोर्टल नस में कोई प्रवाह नहीं था। हमने लिवर को इनफ्लो देने के लिए इंटरपोजिशन वेन ग्राफ्ट को रखा। ट्रांसप्लांट को पूरा करने में लगभग 9 घंटे लगे और बच्चे को वेंटिलेटर पर आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया।”
अगली सुबह बच्चा वेंटिलेटर से बाहर था और धीरे-धीरे अगले कुछ दिनों में बच्चे ने मुंह से आहार लेना शुरू कर दिया। ट्रांसप्लांट का बच्चे ने अच्छी तरह सामना किया और उसका वजन बढ़ गया। सर्जरी के 20 दिनों के बाद बच्चे को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। परिवार अब वापस इराक जाने की योजना बना रहा है।
हमद की माँ, जिन्होंने अपने बेटे को लिवर डोनेट किया, ने कहा, “यह मेरा चौथा बेटा है, पहले तीन की मौत हो गई थी, शायद इसी लिवर की बीमारी की वजह से। हमद बचेगा या नहीं, इसे लेकर बहुत डर लग रहा था और यहां के डॉक्टरों ने मेरे बेटे की जान बचा ली। हम मणिपाल अस्पताल के सभी डॉक्टरों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं। पहले दिन से उन्होंने मुझे आश्वासन दिया कि सब कुछ सही होगा और मैं स्वस्थ बच्चे के साथ इराक वापस जा सकूंगी।”

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