नई दिल्ली | केंद्र ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि एक से 27 मई के बीच श्रमिक स्पेशल ट्रेनों और सड़क परिवहन के जरिए लगभग 91 लाख प्रवासी श्रमिकों को राज्य सरकारों के साथ समन्वय स्थापित करके उनके गृह राज्यों में पहुंचाया गया है। इस पर शीर्ष अदालत ने कहा कि क्या बड़ी संख्या में यात्रा कर रहे श्रमिकों को ठीक से भोजन दिया गया है। शीर्ष अदालत ने केंद्र के वकील से पूछा, क्या उन्हें किसी भी स्तर पर टिकट के लिए भुगतान करने के लिए कहा गया है .. चिंता यह है कि राज्य सरकार भुगतान कैसे कर रही है? क्या श्रमिकों को पैसे देने के लिए कहा जा रहा है?
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि क्या इन लोगों को बाद में प्रतिपूर्ति की जाएगी? अदालत ने पूछा कि जब वे ट्रेनों में जाने के लिए इंतजार कर रहे थे, तो क्या उन्हें भोजन मिला? सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा, उन्हें भोजन मिलना चाहिए। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दिया कि उन्हें भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है।
केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे मेहता ने कहा कि हर दिन लगभग 3.36 लाख प्रवासियों को स्थानांतरित किया गया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि सरकार अपने प्रयासों को तब तक नहीं रोकेगी, जब तक कि अंतिम प्रवासी को उसके गृह राज्य में वापस नहीं भेज दिया जाता।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति एस. के. कौल और न्यायमूर्ति एम. आर. शाह की पीठ ने कहा कि कोई संदेह नहीं है कि केंद्र और राज्य सरकारों ने कदम उठाए हैं, लेकिन कई ऐसे व्यक्ति भी हैं, जिन्हें इसका लाभ नहीं मिल पाया।
देश के विभिन्न भागों में फंसे प्रवासी मजदूरों की दयनीय हालत और उनकी समस्या पर सुप्रीम कोर्ट ने बीते मंगलवार को स्वत: संज्ञान लिया था। श्रमिकों की दुर्दशा से जुड़े इस मामले की सुनवाई के दौरान गुरुवार को अदालत ने यह टिप्पणी की।
शीर्ष अदालत ने केंद्र से कहा कि घर पहुंचने से पहले प्रवासियों को भोजन, पानी और बुनियादी सुविधाएं मिलनी चाहिए।
शीर्ष अदालत ने कहा कि राहत शिविरों में प्रवासियों को भोजन मिल सकता है, लेकिन किराए पर रह रहे लोग राष्ट्रव्यापी बंद के कारण परेशानी का सामना कर रहे हैं।
शीर्ष अदालत ने मंगलवार को कहा था कि केंद्र और राज्य दोनों सरकारों की ओर से किए जा रहे प्रयास अपर्याप्त हैं और इनमें खामियां हैं। अदालत ने इस मुद्दे पर केंद्र और राज्य सरकारों से जवाब भी मांगा है।
–आईएएनएस
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