नई दिल्ली : केन्द्रीय गृह और सहकारिता मंत्री, श्री अमित शाह आज नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित हिंदी दिवस – 2021 समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। इस अवसर पर श्री अमित शाह ने वर्ष 2018-19, 2019-20 और 2020-21 के दौरान राजभाषा हिंदी में उत्कृष्ट कार्य करने वाले मंत्रालयों, विभागों उपक्रमों आदि को राजभाषा कीर्ति और राजभाषा गौरव पुरस्कार भी प्रदान किए। केन्द्रीय गृह और सहकारिता मंत्री ने राजभाषा भारती पुस्तिका के 160वें अंक का विमोचन भी किया। इस अवसर पर केन्द्रीय गृहराज्य मंत्री, श्री नित्यानंद राय, श्री अजय कुमार मिश्रा और श्री निशिथ प्रामाणिक, केन्द्रीय गृह सचिव, राजभाषा विभाग के सचिव और भारत सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों सहित कई गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।
अपने संबोधन में केन्द्रीय गृह और सहकारिता मंत्री ने कहा कि हमने जब संविधान को स्वीकारा, इसके साथ ही 14 सितंबर 1949 के एक निर्णय को भी स्वीकार किया कि इस देश की राजभाषा हिंदी होगी और लिपि देवनागरी होगी। श्री अमित शाह ने कहा कि ये जो पुरस्कार होता है, वो कई लोगों को प्रेरणा देता है और राजभाषा को बढावा देने के लिए आगे बढ़ने का हौसला देता है। उन्होंने ग़ैर-हिंदी पुरस्कार विजेताओं को विशेष बधाई देते हुए कहा कि आप जिस प्रदेश से आते हो, उस प्रदेश की भाषा के साथ-साथ राजभाषा को भी उस प्रदेश में पहुँचाने का आपने बहुत अच्छा काम किया है। उन्होंने कहा कि हिंदी का किसी स्थानीय भाषा से कोई मतभेद नहीं है और हिंदी भारत की सभी भाषाओं की सखी है और यह सहअस्तित्व से ही आगे बढ़ सकती है।
श्री अमित शाह ने कहा कि 14 सितंबर हमारे लिए एक मूल्यांकन का दिन होता है कि हमने अपने देश की भाषाओं और राजभाषा के लिए क्या किया और उन्हें आगे बढ़ाने के लिए क्या किया है, उसके संरक्षण और संवर्धन के लिए क्या किया है, विशेषकर नई पीढ़ी के दिल में, उनकी बोलचाल में, अपनी स्थानीय भाषाओं को गौरव दिलाने के लिए क्या किया है। उन्होंने कहा कि आज जब हमने पीछे मुड़कर देखते हैं तो देश में एक समय आया था कि हमें ऐसा लगता था कि शायद भाषा की लड़ाई देश हार जाएगा। श्री शाह ने कहा कि हम ये लड़ाई कभी नहीं हारेंगे, युगों-युगों तक भारत अपनी भाषाओं को संभालकर, संजोकर रखेगा, और हम उन्हें लचीला व लोकोपयोगी भी बनाएंगे।
केन्द्रीय गृह और सहकारिता मंत्री ने कहा कि आज़ादी के 75 वर्षों के उपल्क्ष्य में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में पूरा देश आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। प्रधानमंत्री जी ने लालक़िले की प्राचीर से आज़ादी के अमृत महोत्सव के लक्ष्यों में से एक लक्ष्य आत्मनिर्भर भारत का भी रखा है। उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भर शब्द सिर्फ उत्पादन, वाणिज्यिक संस्थाओं के लिए नहीं है, बल्कि आत्मनिर्भर शब्द भाषाओं के बारे में भी होता है और तभी आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार होगा। उन्होंने कहा कि अगर भाषाओं के बारे में हम आत्मनिर्भर ना बनें, तो आत्मनिर्भर भारत के कोई मायने नहीं हैं।
श्री अमित शाह ने कहा कि आज़ादी की लड़ाई में स्वदेशी, स्वभाषा और स्वराज, इन तीन शब्दों ने बहुत बड़ा योगदान दिया और ये आज़ादी की लड़ाई के तीन मूल स्तंभ थे। प्रधानमंत्री जी ने स्वदेशी को आगे बढ़ाने के लिए आत्मनिर्भर भारत का बहुत बड़ा अभियान छेड़ा है। स्वभाषा को मजबूत करने का काम हम सबने मिलकर, विशेषकर देश की नई पीढ़ी ने किया है। उन्होंने कहा कि अब कोई संकोच रखने की ज़रूरत नहीं है, देश के प्रधानमंत्री दुनिया के उच्च से उच्च अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भी हिंदी में बोलते हैं, अपनी भाषा में बोलते हैं, तो हमें किस चीज का संकोच है। श्री शाह ने कहा कि वो जमाना गया जब हिंदी बोलते थे तो होता था कि किस प्रकार से सामने वाला व्यक्ति मेरा मूल्यांकन करेगा। आपका मूल्यांकन आपके कामों के आधार पर ही होगा, आपकी क्षमताओं के आधार पर ही होगा, भाषा के आधार पर नहीं होगा।
श्री अमित शाह ने कहा कि कोई भी व्यक्ति अपनी भाषा से अच्छी अभिव्यक्ति किसी और भाषा में नहीं कर सकता और ये बात हमें अपनी नई पीढ़ी को समझानी होगी कि भाषा कभी बाधक नहीं हो सकती, हम गौरव के साथ अपनी भाषा का उपयोग करें, झिझकें नहीं। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि देश के युवा इस बात को अपने मन मन में बिठा लें कि हम हमारी भाषाओं को छोड़ेगे नहीं। उन्होंने बच्चों के अभिभावकों से भी कहा कि भले आपका बच्चा अंग्रेजी माध्यम में पढ़ता हो, लेकिन घर में आप उसके साथ अपनी भाषा में बात करने की शुरूआत करिए, नहीं तो वह अपनी जड़ों से कट जाएगा। कोई बाहर की भाषा हमें इस देश के गौरवपूर्ण इतिहास से परिचित नहीं करा सकती। उन्होंने कहा कि जिस दिन आप अपने बच्चे को मातृभाषा के ज्ञान से वंचित कर दोगे, वो अपनी जड़ों से कट जाएगा और जो लोग अपनी जड़ों से कट जाते हैं वो लोग कभी ऊपर नहीं जाते, ऊपर तो वही जाता है जिस वृक्ष की जड़ें गहरी, मज़बूत और फैली हों।
केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि जब महात्मा गाँधी के नेतृत्व में राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा था, उस वक्त कई नेताओं ने स्वभाषा के प्रयोग पर बहुत बल दिया था। चाहे महात्मा गाँधी हों, राजेन्द्र प्रसाद हों, पंडित नेहरू हों, सरदार वल्लभभाई पटेल हों, के एम मुंशी हों और विनोबा भावे ने तो पूरा जीवन भारतीय भाषाओं को मज़बूत करने में लगा दिया। महात्मा गाँधी जी ने राजभाषा को राष्ट्रीयता के साथ भी जोड़ा था, उन्होंने कहा था कि इस देश की चेतना अगर समझनी है तो हमारी भाषाओं के बिना आप समझ नहीं सकते। श्री अमित शाह ने कहा कि गाँधी जी का ये वाक्य आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना 1920 से लेकर 1947 तक था। उन्होंने इसके लिए खुद अख़बार निकाले, गुजरात साहित्य परिषद का चुनाव भी गाँधीजी लड़े और साहित्य परिषद के अध्यक्ष रहे और उन्होंने गुजराती शब्दकोष की रचना भी की। इतने बड़े आंदोलन में व्यस्त रहने वाला व्यक्ति, स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व करने वाला व्यक्ति, मेरी स्वभाषा मजबूत हो, इसके लिए कितना समय दिया था इससे हमें समझना चाहिए कि राजभाषा हिंदी को मजबूत करने का कितना महत्व है।
केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय का एक महत्वपूर्ण अंग है और हमने यह तय किया है कि इस साल विशेष रूप से राजभाषा को बढ़ावा, संरक्षित, संवर्धित और प्रचार-प्रसार के लिए विशेष प्रयास किए जाएंगे। जितने भी कार्यक्रम होंगे उनमें आजादी के आंदोलन में राजभाषा और स्थानीय भाषाओं के योगदान की थीम पर कार्यक्रम किए जाएंगे। जब तक हमारी नई पीढ़ी ये चीज नहीं जानेगी, उनको मालूम नहीं होगा कि आजादी के सफलता के बहुत सारे कारण थे और उनमें से एक स्थानीय भाषा और राजभाषा को महत्व देना था।
श्री अमित शाह ने कहा कि हमारा देश बहुत विविधताओं से संपूर्ण है, बहुत सारे प्रदेश और केन्द्रशासित प्रदेश हैं और सबका अपना-अपना गौरवपूर्ण इतिहास है और ये सब अलग-अलग स्थानीय भाषाओं में है। उन्होंने कहा कि देश के हर प्रदेश का इतिहास जो स्थानीय भाषा में है उसका अनुवाद और भावानुवाद दोनों, राजभाषा में होना चाहिए जिससे एक राज्य नहीं पूरा देश इस इतिहास को पढ़ सके। उन्होंने कहा कि जो संग्राम महाराष्ट्र में शिवाजी महाराज के नेतृत्व में स्वराज के लिए हुआ, जो संग्राम गुजरात में हुआ, उनके बारे में जानने का देश के हर बच्चे को हक़ है और वो ये सब तभी जान सकेगा जब इसका राजभाषा में अनुवाद होगा। उन्होंने कहा कि इसीलिए गुरू रविन्द्रनाथ टैगोर ने कहा था कि भारतीय संस्कृति एक विकसित सतदल कमल की तरह है, जिसकी प्रत्येक पंखुड़ी हमारी प्रादेशिक भाषा की तरह है और कमल हमारी राजभाषा है। उन्होने कितने सुंदर तरीके से हमारी विविधता को एक अलंकृत भाषा में सामने रखने का प्रयास किया है। केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि पूरे आजादी के आंदोलन तक 1857 से 1947 तक भारतीय भाषाओं, राजभाषा में हुई पत्रकारिता का बहुत बड़ा योगदान है, हम उसका भी संक्लन करने वाले हैं। कई सारे संग्रामों का इतिहास जो देशभर में 100 सालों तक हुए, उन सभी का इतिहास स्थानीय भाषाओं में है, उनका भी अनुवाद करने वाले है।
श्री अमित शाह ने कहा कि कई लोग अलग-अलग तरह से इस प्रकार का प्रचार करते हैं कि हमारी स्वभाषा और राजभाषा हमारे व्यक्तित्व के बढ़ावे में बाधक बन सकती है। उन्होने कहा कि ज्ञान की अभिव्यक्ति का मातृभाषा से अच्छा माध्यम कोई हो ही नहीं सकता और जब ज्ञान आपके पास है और अभिव्यक्ति जिस भाषा में आप सोचते हो उस भाषा में करते हो तो इससे अच्छा समझाने का कोई माध्यम हो ही नहीं सकता। उन्होंने कहा कि जब अभिव्यक्ति अपनी भाषा में हो तो सरल और स्वभाविक हो जाती है। उन्होंने कहा कि बहुत लंबे समय के बाद देश के प्रधानमंत्री नई शिक्षा नीति लाए हैं और उन्होंने नई शिक्षा नीति में स्थानीय भाषा और राजभाषा को स्थान देने के लिए विशेष काम किया है। ग्रेड पाँच तक की शिक्षा घर की भाषा, मातृभाषा में हो, इसका आग्रह रखा गया है। भारतीय भाषा को पढ़ने और सीखने के लिए हर स्कूल और उच्च शिक्षा स्तर पर एकीकृत करने की बात कही गई है। तकनीकी पाठ्यक्रम जैसे इंजीनियरिंग कॉलेज हैं उनमें पाँच भाषाओं में आठ राज्यों के चौदह कॉलेज पढ़ाना शुरू करेंगे जिनमें हिंदी, तेलुगू, तमिल, मराठी और बांग्ला में शिक्षा देने की शुरूआत करेंगे। भारतीय भाषाओं के संरक्षण और विकास के लिए भारतीय अनुवाद और व्याख्यान संस्थान की स्थापना करने की योजना भी नई शिक्षा नीति में रखी गई है जो हमारी भाषाओं को एक लंबे समय तक बल देगी। ई पाठ्यक्रम हमारी क्षेत्रीय भाषाओं में भी तैयार किए जा रहे हैं, जिससे ऑनलाइन पढ़ने वाले बच्चे भी स्वभाषा, राजभाषा में पढ़ सकें। बहुत सारी चीजों को नई शिक्षा नीति में शामिल करके प्रधानमंत्री जी ने हमारे आंदोलन को गति देने का बहुत बड़ा प्रयोग किया है।
केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि एक जमाना था जब भारत के नेता विदेश में जाते थे वहाँ जो वे बोलते थे वो शायद ही देश समझ पाता था। ये सबसे पहले अटल जी ने शुरूआत की और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने उसको एक रवायत बना दिया है कि जहाँ भी जाएँगे, किसी भी अंतर्राष्ट्रीय मंच पर जाएँगे, अपना वक्तव्य भारतीय भाषा, राजभाषा में ही देंगे और इससे राजभाषा को स्थापित होने में बहुत बड़ा योगदान मिला है। बहुत सारे लोगों के मन में जो संकोच, लघुताग्रंथी थी उसका निवारण हुआ है। उन्होंने कहा कि जब परिवर्तन होता है तो मानस परिवर्तन भी होता है, जनमानस का परिवर्तन करना हमारा दायित्व और जिम्मेदारी है।
केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा भारत ने कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई बहुत अच्छे तरीक़े से लड़ी है। भारत, कम से कम क्षति के साथ इस महामारी से बाहर निकला और ऐसा इसीलिए हुआ कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अलग-अलग मुख्यमंत्रियों के साथ, राज्यपालों के साथ, व्यापारी मंडलों के साथ, डॉक्टरों के साथ और देश की जनता को संबोधित करने के 35 से ज्यादा प्रयास किये और सभी के सभी प्रयास राजभाषा में किए। इससे जनता के बीच नीचे तक सरकार की बात पहुँचाने में मदद मिली और देशभर में कोरोना के ख़िलाफ़ मजबूती से लड़ने में मदद मिली।
इस अवसर पर गृह राज्य मंत्री श्री अजय कुमार मिश्रा ने अपने सम्बोधन में कहा कि हमारा देश बहुत प्राचीन देश है जिसकी संस्कृति और ज्ञान की परंपरा रही है। देश के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग भाषाएं विकसित हुईं लेकिन हिंदी सर्वाधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय भाषाएं बहुत महत्वपूर्ण हैं और उनमें बहुत समृद्ध साहित्य की रचना भी हुई है इसलिए क्षेत्रीय भाषाओं का भी राष्ट्र के निर्माण में बहुत बड़ा योगदान रहा है। हमें हिंदी के साथ-साथ क्षेत्रीय भाषाओं को भी पूरा सम्मान देना चाहिए। श्री अजय कुमार मिश्रा ने कहा कि माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी तथा केन्द्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह जी ने हिंदी में कामकाज को उत्साहवर्धक तरीके से बढ़ाने का प्रयास किया है और उनकी प्रेरणा से निश्चित रूप से न केवल कार्यालयों के कामकाज में हिंदी भाषा का उपयोग बढ़ा है बल्कि संसद में पहले की अपेक्षा अधिक सांसदगण हिंदी में भाषण देते हैं। यह सब प्रधानमंत्री जी और गृह मंत्री जी की प्रेरणा के कारण संभव हुआ है।
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