ऑनलाइन की इस दौड़ में दौड़ के करना क्या है ? अगर यहीं बिज़नेस है दोस्तों तो फिर बिज़नेस क्या है ? जी हाँ आज यही वो सवाल है जो हर आम आदमी को सोचने पर मजबूर कर देता है, चाहे वो हो एक दुकानदार या हो एक आम खरीदार. एक आम दुकानदार ऑनलाइन पोर्टल्स के ऑफर्स के चलते दिनभर मिलने वाले तानो से परेशान है और वहीँ एक आम खरीदार कई परिस्थितियों से घिरा है जैसे की
(1) कभी ऑनलाइन पर रेट सस्ता तो कभी महंगा
(2) कभी माल असली कभी मिलावट
(3) कभी कोई शिकायत सुनता है कभी कोई नहीं सुनता, इससे अच्छा तो पास वाले अंकल से ही ले लिया होता कम से कम जा कर शिकायत तो कर सकता था किसी खराबी की, अरे यार इस ऑनलाइन के चक्कर में अंकल से राम राम भी छूट गयी, यार चड्ढा साहब दुकान कैसे चला रहे होंगे, सब सामान तो ऑनलाइन मिलता है, पर यार क्या करूँ में तो वहीँ से लूंगा न जहाँ सर्विस भी हो और रेट भी l
अब सुनिए अंकल की…. अंकल को सॉफ्टवेयर आता नहीं है….. ऑनलाइन में कमीशन बहुत काटते हैं, अपना सॉफ्टवेयर बना नहीं सकते, ज़्यादा डिलीवरी मैनेज नहीं कर सकते, ऑनलाइन पेमेंट कैसे लूँ ? फ़ोन पे आर्डर लेता रहूँगा तो काम कौन करेगा, हिसाब कौन रखेगा….. लड़के को सामान देने भेजता हूँ तो वो 10 मीनट के काम को 30 मीनट लगता है, अंकल जी भी करें तो क्या करें l
रुकिए अंकल…. कुछ है आपके लिए….!!!!
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