एस.पी. चोपड़ा, नई दिल्ली: इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर ऑफ आटर्स (आईजीएनसीए) में 26 मई से 24 जून 2018 में पारंपरिक रूप से हैंडफैन के अनोखे कलेक्शन की प्रदर्शनी लगाई जाएगी। इसकी समीक्षा 25 मई को की गई। प्रदर्शनी में मशहूर आर्टिस्ट जतिन दास के विशाल कनेक्शन से चुनिंदा पंखों, पेंटिग्स, प्रिंट्स और फिल्म को पेश किया जाएगा। मशहूर जतिन दास को सबसे पहले उनके एक दोस्त ने पंखा गिफ्ट किया था। इसके बाद पिछले 2 दशकों में आज उनके पास 5 हजार से ज्यादा विभिन्न किस्म के पंखों का कलेक्शन है।
जतिन दास विभिन्न जगहों के अपने सफर में भी हैंडफैन एकत्रित करते रहते हैं। वह अक्सर किसी बस्ती के स्थानीय बाजार या हाट में जाते रहते है और वहां अलग-अलग किस्म के हाथ के पंखों को खरीदते रहते है। वह खासतौर से गर्मियों के मौसम में, जब हाथ के पंखों के मिलने की संभावना ज्यादा से ज्यादा रहती है, हाथ के पंखों के मिलने की संभावना के बारे में वह नई जगह पर चौकीदार, रसोईये औक चपरासी से पूछते हैं। इस तरह वह अपने कलेक्शन में अब तक कई हैंडफैन जोड़ पाए हैं। कभी-कभी वह प्राचीन और मूल्यवान वस्तुओं के डीलर के पास भी जाते थे, जहां गुजरे जमाने में इस्तेमाल किए जाने वाले हाथ से बनाए पंखे आसानी मिल जाते थे।
दास के पास हाथ से बने पंखों का विशाल कलेक्शन होने का कुछ क्रेडिट उनके दोस्तों को जाता है, जो उनके जुनून को पहचानते हैं और उन्हें जब-तब हैंड फैन तोहफे के रूप में देते रहते है। भीषण गर्मी में लोगों को राहत पहुंचाने के लिए पंखेवालों की ओर से फिक्स किए गए सीलिंग फैन से लेकर अभिजात और कुलीन वर्ग के लोगों के लिए लंबी फड़ तक एवं हाथ से बने पंखों और हाथ से डुलाए जानेवाले चंवर तक कलाकृतियों का वर्गीकरण आकार, विविधता और सुंदरता में हैरत में डालने वाला है। हाथ के पंखे मुख्य रूप से बांस, घास, बेंत, गेहूं के डंठल और ताड़ के पत्तों, पंखों, मनका, मीका या शीशे से बनाए जाते हैं।
जापान, चीन और अमेरिका जैसे पूरब में स्थित देशों से लेकर चीन जापान और स्पेन तक सामाजिक रीति-रिवाजों में हाथ के पंखे मुख्य भमिका निभाते हैं। इन देशों में पंखों की एक सांकेतिक और जटिल भाषा विकसित की गई है। बिना बोले कलाई को हल्के से मोड़कर हाथ के पंखों से हवा करते हुए वह अपनी भावनाएं तो व्यक्त करते ही हैं। कई बार बिना बोले संदेश अन्य लोगों तक पहुंचा देते हैं। इन देशों में हाथ से बने हुए पंखे रोजाना की जिंदगी में बहुत इस्तेमाल किए जाते हैं और वहां पुरुषों और महिलाओं के साथ रहनेवाली यह जरूरी सामान है। भारत में पंखे का इस्तेमाल गर्मियों के मौसम में बेतहाशा गर्मी से राहत दिलाने के लिए किया जाता है।
करीब-करीब भारतीय कला के हर रूप में हाथ के पंखे के इस्तेमाल का जिक्र कई किदवंदियों, धार्मिक कथाओं और रोमांचक कहानियों में आता है। पंखा रोमांस से जुड़ा है। कई महिलाएं हैंडफैन से प्रेमी की हल्की सी हवा कर इन पंखों कारोमांस के लिए इस्तेमाल करती रहती हैं। उन्हें गर्मी से राहत प्रदान करती है। पहले विभिन्न प्रकार के आयोजनों में विशेष तरह के पंखों का इस्तेमाल मंदिरों में किया जाता था। दुल्हन के दहेज की जरूरी चीज पंखे हाथ के पंखे होते थे। कुलीन और आभिजात्य वर्ग के लोगों की सभा में बड़े-बड़े पंखे लगाए जाते थे। गुजरे जमाने में पंखों का इस्तेमाल चूल्हे पर खाना बनाते समय लपटों को हवा देने में किया जाता था।
नई दिल्ली के क्राफ्ट्स म्यूजियम में सबसे पहले हाथ से बने पंखों की प्रदर्शनी लगाई गई। तब से लेकर हैंडफैन की प्रदर्शनी कई बार देश के विभिन्न भागों और विश्व में स्विटजरलैंड, फिलीपींस, अमेरिका, मलेशिया और ब्रिटेन में लगाई जा चुकी है। जतिन दास के पास 500 के करीब पंखे हैं, जिससे उनके प्रशंसकों की संख्या भी काफी बढ़ गई है। इस प्रदर्शनी में कुशल कारीगरो की ओर से डेमो भी दिया जाएगा। बच्चों के लिए पंखे बनाने की वर्कशॉप आयोजित की जाएगी। इन हैंड फैंस का वर्गीकरण इनके इस्तेमाल के तरीके, बनाने में निर्मित पदार्थों, मूल या प्रकार के आघधार पर किया गया। इस प्रदर्शनी में हरकरघे को बढ़ावा देने वाले कला के विभिन्न रूपों के साथ हाथ के पंखों को भी प्रदर्शन किया दजएगा। ठंडे भारतीय पेय पदार्थों, खाली समय में सुने जाने वाले संगीत, कविता और साहित्य का आनंद गर्मी के मौसम के इर्द-गिर्द ही घूमते हैं। दिल्ली की गर्मी की शुरुआत से पहले ही सही टाइम पर इन काव्यात्मक वस्तुओं की प्रदर्शन के आयोजन की योजना बनाई गई थी। इस प्रदर्शनी के क्यूरेटर जतिन दास हैं।
पंखों का यह कलेक्शन भारत की मूल्यवान और प्राचीन परंपरा की भावना को फिर से जीवंत करने का एक छोटा सा प्रयास है। इन पंखों के निर्माताओं ने सजावटी रचनात्मकता की परंपरा को बरकरार रखा है। आजकल यह प्रथा कई कारणों से गायब हो रही है। भारतीय डाक विभाग हर साल विभिन्न ऐतिहासिक और सांस्कृतिक वस्तुओं, घटनाओं और व्यक्तित्वों को समर्पित डाक टिकट जारी करती है। 2018 में दास के हैंडफैन को भारतीय डाक टिकटों पर जगह दी गई है। यह डाकटिकट भारतीय कारीगरों की समृद्ध विरासत और अभिव्यक्ति के विभिन्न रूपों से दुनिया को रूबरू कराने के लिए विश्व के कई देशों की यात्रा करेंगे। अब जतिन दास का कलेक्शमन स्थायी रूप से जेडी सेंटर ऑफ आर्ट में रखा जाएगा।
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