नई दिल्ली देश भर में जहां प्रधानमंत्री की सलाह के बाद रविवार को जनता कर्फ्यू की तैयारी चल रही है। वहीं शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन कानून का विरोध कर रही महिलाओं का कहना है कि वे अपनी मांगें पूरी होने तक धरना नहीं छोड़ेंगी, और न ही जनता कर्फ्यू का हिस्सा बनेंगी। हालांकि कोरोनावायरस के संक्रमण को देखते हुए यहां प्रदर्शनकारी महिलाओं की संख्या कम कर दी गई है। मुख्य पंडाल में अब केवल 40-50 महिलाएं ही मौजूद हैं।
शाहीन बाग की दादी के नाम से मशहूर आसमा खातून ने कहा, “हम यहां से तब तक नहीं हिलेंगे जब तक की सीएए का काला कानून वापस नहीं लिया जाता। भले ही मुझे कोरोनावायरस संक्रमण हो जाए। मैं शाहीन बाग में मरना पसंद करूंगी, लेकिन हटूंगी नहीं।”
शाहीन बाग की दूसरी दादी बिलकिस बानो ने कहा, “अगर प्रधानमंत्री को हमारी सेहत की इतनी ही चिंता है तो आज इस काले कानून को रद्द कर दें फिर हम भी रविवार के दिन को जनता कर्फ्यू में शामिल हो जाएंगे।”
यहां धरनास्थल पर मौजूद नूरजहां ने कहा, “हमारे लिए एक तरफ कुआं और एक तरफ खाई जैसे हालात हैं। कोरोना जैसी बीमारी का खतरा बढ़ रहा है, वहीं दूसरी ओर अगर नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी वापस नहीं हुए तो भी हर हाल में मरना तय है। ऐसे में हमारे सामने केवल संघर्ष करने का ही विकल्प बचा है। यदि सरकार चाहती है कि हम यह धरना छोड़ दें तो तुरंत नागरिकता संशोधन कानून को वापस लिया जाना चाहिए।”
प्रदर्शन में मौजूद ओखला में रहने वाली रजिया ने कहा, “बीमार होने के डर से हम अपने आंदोलन को छोड़कर घर नहीं बैठ सकते। लेकिन अब मैं अपने दोनों बच्चों को शाहीन बाग लेकर नहीं आती। हम लोग काला कानून खत्म होने तक यहां डटे रहेंगे।”
पिछले करीब तीन महीने से लगातार शाहीनबाग आ रहीं फौजिया ने कहा, “प्रधानमंत्री एक दिन के जनता कर्फ्यू की बात कर रहे हैं, हम लोग तो यहां पिछले तीन महीने से सब कुछ छोड़ कर बैठे हैं। बावजूद इसके हमारी सुध कोई नहीं ले रहा। बीमार होने से हर कोई डरता है, हमें भी बीमारी का डर है, लेकिन डिटेंशन सेंटर का डर ज्यादा है।”
शाहीनबाग की महिलाओं ने भले ही रविवार को जनता कर्फ्यू में शामिल न होने का फैसला किया है, लेकिन वे कोरोनावायरस के संक्रमण से बचने एक-दूसरे से दो मीटर के फासले पर बैठी हैं। शाहीन बाग के मंच से भी महिलाओं को सावधानी बरतने की हिदायतें दी जा रही हैं।
–आईएएनएस
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