नई दिल्ली, 8 अप्रैल (आईएएनएस)| सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सुझाव दिया कि निजी लैब को कोरोनावायरस परीक्षणों के लिए अधिक पैसे नहीं वसूलने चाहिए। कोर्ट ने केंद्र से कोई ऐसा तंत्र बनाने के लिए कहा ताकि इन परीक्षणों पर आने वाले खर्च की भरपाई की जा सके।
शीर्ष अदालत ने एक याचिका पर गौर करते हुए यह बात कही, जिसमें सभी नागरिकों के लिए सरकारी और निजी लैब दोनों में निशुल्क कोरोना परीक्षण सुनिश्चित करने की दिशा में मांग की गई थी।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अगुवाई वाली पीठ ने कोरोनोवायरस महामारी के कारण चल रहे स्वास्थ्य संकट के बीच यह कहा कि निजी लैब को इस तरह के परीक्षणों के लिए भारीभरकम शुल्क नहीं वसूलना चाहिए।
अदालत में केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पैरवी की। अदालत ने केंद्र से प्रतिपूर्ति तंत्र को विकसित करने पर विचार करने के लिए कहा। मेहता ने कहा कि वह इस मामले पर सरकार से निर्देश लेंगे।
वीडियोकान्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई के दौरान, मेहता ने कहा कि भारत में 118 लैब में प्रतिदिन 15,000 परीक्षण करने की कुल क्षमता है, और 47 निजी लैब को भी इस काम में लगाया गया है।
वकील शशांक देव सुधी द्वारा दायर याचिका में निजी संस्थाओं द्वारा कोरोना परीक्षण के लिए अधिकतम 4,500 रुपये तय करने के लिए भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की सलाह को चुनौती दी गई थी।
याचिका में यह भी निर्देश देने की मांग की गई थी कि ऐसे सभी परीक्षण मान्यता प्राप्त पैथोलॉजिकल प्रयोगशालाओं द्वारा किए जाएं।
निशुल्क परीक्षण का सुझाव देते हुए, याचिकाकर्ता ने यह भी दावा किया कि निजी प्रयोगशालाओं के परीक्षण शुल्क पर पर्दा डालना संविधान के आदर्शो और मूल्यों का उल्लंघन करता है।
–आईएएनएस
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