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31 मार्च के बाद बेचे गए बीएस-4 वाहनों का पंजीकरण नहीं होगा : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने मजदूरों के पलायन पर कहा, अदालत कैसे करे निगरानी

नई दिल्ली | राष्ट्रव्यापी बंद के बीच देश के विभिन्न राज्यों से अपने घर के लिए पैदल निकले प्रवासी मजदूरों से संबधित एक जनहित याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने प्रवासी मजदूरों के लिए परिवहन की व्यवस्था से संबंधित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव, संजय किशन कौल और बी.आर. गवई की पीठ ने कहा, “रेल की पटरियों पर सोने से अदालत किसी को कैसे रोक सकती है। लोग चले जा रहे हैं और रुक नहीं रहे हैं। हम कैसे मदद कर सकते हैं?”

शीर्ष अदालत की यह टिप्पणी वकील अलख आलोक श्रीवास्तव की ओर से दायर एक याचिका पर आई है, जिसमें कहा गया है कि किसी भी सार्वजनिक परिवहन के अभाव में मजदूरों को अपने मूल स्थान पर लौटना पड़ा रहा है और इस दौरान रेल की पटरियों और सड़कों पर प्रवासियों की जान जा रही है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि हर अधिवक्ता अखबार में प्रकाशित घटनाओं को पढ़े और हर विषय के जानकार बने।

पीठ ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि उनका ज्ञान पूरी तरह से अखबार की कतरनों पर आधारित है और फिर अनुच्छेद 32 के तहत वे चाहते हैं कि अदालत इस मामले पर आदेश दे।

पीठ ने कहा, “आप हमसे आदेश पारित करने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? राज्यों को कार्रवाई करने दें।”

याचिकाकर्ताओं ने इस मामले पर जिला मजिस्ट्रेटों को निर्देश जारी करने के लिए शीर्ष अदालत से आग्रह किया। मगर इस पर पीठ ने कहा, “क्षमा करें, हम इसके लिए तैयार नहीं हैं।”

न्यायमूर्ति राव ने कहा कि शीर्ष अदालत के लिए लोगों की गतिविधियों की निगरानी करना असंभव है। उन्होंने कहा कि यह जानना असंभव है कि कौन कहां जा रहा है और कौन नहीं जा रहा है।

पीठ ने याचिकाकर्ता को सरकार के निर्देशों को लागू करने के लिए कहा। पीठ ने कहा, “हम आपको एक विशेष पास देंगे और आप जा सकते हैं और जांच कर सकते हैं।”

वहीं केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार ने पहले ही प्रवासी कामगारों की मदद करनी शुरू कर दी है, लेकिन कुछ मजदूर अपनी बारी का इंतजार करने के बजाय खुद ही घर वापस जाना शुरू कर चुके हैं।

मेहता ने पीठ के सामने कहा, “हर कोई अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए चलता मिल जाएगा। उन्हें पैदल यात्रा शुरू करने के बजाय अपनी बारी का इंतजार करना चाहिए था।”

याचिकाकर्ता ने 8 मई की घटना का हवाला दिया, जहां 16 प्रवासी मजदूर रेल की पटरियों पर सो जाने के बाद महाराष्ट्र में एक मालगाड़ी के नीचे आ गए थे और उनकी मौत हो गई थी। रेलवे अधिकारियों के अनुसार, कोविड-19 के कारण अपनी नौकरी खो देने के बाद श्रमिक अपने गृहराज्य मध्य प्रदेश की ओर जा रहे थे।

–आईएएनएस

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