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राहुलजी बिल्कुल ठीक कह रहे हैं !

 

कांग्रेस की कार्यसमिति की बैठक में उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा है कि यह समय लोकतंत्र के लिए घनघोर अंधकार का समय है। यह पढ़ और सुनकर लोग हंस रहे होंगे लेकिन मैं कहता हूं कि राहुलजी 100 प्रतिशत सही हैं। कैसे? देखिए, जो राहुल गांधी ने कहा है, वही बात राजनीतिशास्त्र का कोई भी पंडित कहेगा। कौनसा लोकतंत्र सबसे स्वस्थ और सबल माना जाता है? वही, जिसमें सरकार और उसके विरोधी, दोनों ही मजबूत हों।

 

इसमें शक नहीं कि वर्तमान सरकार बेहद मजबूत है। उसे न तो कोई बाहर से हिला सकता है, न ही अंदर से! इंदिरा गांधी के बाद ऐसी मजबूत सरकार भारत में पहली बार आई है। भाजपा की यह सरकार नेहरु सरकार से भी अधिक मजबूत है। प्रधानमंत्री नेहरु की लोकप्रियता अद्वितीय थी लेकिन उनकी सरकार और पार्टी में उनके प्रबल विरोधी भी थे। उन पर अंकुश लगानेवाले कई लोग थे।

 

श्यामाप्रसाद मुखर्जी, डाॅ. आंबेडकर, डाॅ. लोहिया, ज.प्र. नारायण, महावीर त्यागी और पुरुषोत्तमदास टंडन- जैसे कई धुरंधर थे लेकिन आज नरेंद्र मोदी के सामने कोई चूं भी नहीं कर सकता। वे लोग भी सहमे हुए हैं, जो मोदी के पैदा होने के पहले से संघ और पार्टी में सक्रिय हैं। याने सरकार बेहद मजबूत है।

लेकिन विपक्ष का क्या हाल है? विपक्ष हैं, कहां, जो उसका हम हाल बताएं? लोकसभा में किसी विपक्षी दल को मान्यता ही नहीं है। कांग्रेस सबसे बड़ा दल है लेकिन उसके पास 50 सदस्य भी नहीं हैं। दूसरे लगभग सभी दल प्रांतीय हैं। दूसरे शब्दों में वे सब प्राइवेट लिमिटेड कंपनियां हैं। वे लोकतंत्र की रक्षा क्या खाक करेंगी? वे तो अपना नफा-नुकसान पहले देखती हैं। वे कोई महागठबंधन भी बनाने को तैयार नहीं हैं। ऐसे में देश का सबसे बड़ा विपक्षी दल बहुत-कुछ कर सकता है लेकिन उसका क्या हाल है? वह सबसे बड़ी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी है। मां-बेटा कंपनी ! यदि नहीं तो 18 साल तक सोनियाजी लगातार अध्यक्ष की कुर्सी पर कैसे जमी हुई हैं? (वे दीर्घायु हों, यह मेरी कामना है)।

 

हर कांग्रेसी को पता है कि कांग्रेस-जैसी महान और विश्व की सबसे बड़ी पार्टी की वर्तमान दुर्दशा के लिए कौन जिम्मेदार है लेकिन फिर भी सभी सर्वसम्मति से उसे ही अध्यक्ष बनाना चाहते हैं, जो इसके लिए जिम्मेदार है। यह भारतीय लोकतंत्र का नहीं, कांग्रेस का सबसे अंधकार का समय है। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस में योग्य लोगों का टोटा पड़ गया है। आज भी कांग्रेस में जितने सुयोग्य और जनता से जुड़े हुए नेता हैं, देश की किसी अन्य पार्टी में नहीं हैं। लेकिन लगातार सत्ता में रहने के कारण वे पिलपिले हो गए हैं। उनमें दम नहीं है कि वे खम ठोककर खड़े हो जाएं और कांग्रेस को सबल विपक्षी दल की तरह पेश करें। क्या मैं उन्हें याद दिलाऊं 1964 से 1967 तक की लोकसभा को? डाॅ. लोहिया की संसोपा के पास दर्जन भर सांसद भी नहीं थे लेकिन वे देश की सबसे मजबूत सरकार की खाट खड़ी रखते थे। अब खाट-सभा रचानेवाली कांग्रेस उसी खाट पर लंबी होने की तैयारी कर रही है। राहुलजी बिल्कुल ठीक कह रहे हैं कि लोकतंत्र का यह सबसे बुरा समय है।

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