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चीफ़ जस्टिस सुप्रीम कोर्ट अनाड़ी मास्क दो गज दूरी

सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस  क्या इतने अनाड़ी  हैं ? मास्क, दो गज दूरी चीफ़ जस्टिस के लिए नहीं है ज़रुरी ?

इंद्र वशिष्ठ

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस शरद अरविंद बोबडे का हार्ले डेविडसन मोटर साइकिल के साथ फोटो मीडिया में छाया हुआ हुआ है।

हैरानी की बात है कि चीफ़ जस्टिस ने मुंह पर न तो मास्क लगाया हुआ है और न ही देह से दूरी/ शारीरिक दूरी यानी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया है। ऐसी हरकत ने चीफ़ जस्टिस को भी पढ़ें लिखे अनाड़ी/ जाहिल की जमात में शामिल कर दिया है।

दो गज दूरी क्या चीफ़ जस्टिस के लिए नहीं है जरुरी ? –

दुनिया भर में डाक्टर और भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मोदी भी बार बार ” देह से दो गज दूरी, बहुत है जरूरी” और मास्क पहनने के लिए लोगों से कह रहे हैं।

मोबाइल फोन पर भी इन दोनों नियमों का पालन करने की टेप लगातार चल रही है। कोरोना के खिलाफ ज़ंग में यह दो सबसे अहम हथियार है। इनका पालन करने से ही कोरोना से बचा जा सकताहै।

 मास्क न पहनने और दो गज दूरी के नियमों का पालन न करने पर जुर्माना और एफआईआर तक दर्ज की जा रही हैं।

गरीबों और कमजोर लोगों पर पुलिस यह लागू करवाने के लिए डंडे तक चला रही है।

शर्मनाक-

ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस शरद अरविंद बोबडे द्वारा इन दोनों ही नियमों की धज्जियां उड़ाना शर्मनाक है।

देश की सर्वोच्च अदालत के मुख्य न्यायाधीश की इस हरकत से लोगों में गलत संदेश जाता है।

क्या मुख्य न्यायाधीश इन नियम कायदों से ऊपर है ?

क्या नियम/ कायदे/ कानून सिर्फ आम आदमी के लिए ही हैं ?

मुख्य न्यायाधीश को अपने व्यक्तिगत आचरण से भी एक मिसाल/ आदर्श पेश करना चाहिए। लेकिन यहां तो मुख्य न्यायाधीश खुद नियम तोड़ कर समाज को ग़लत संदेश दे रहे हैं।

मुख्य न्यायाधीश कानून का सम्मान करो।-

मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे में अगर जरा सा भी नियम कायदों के प्रति सम्मान है तो उनको तुरंत अपने इस अनाड़ीपन के लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए। इसके अलावा इन नियमों को तोड़ने के लिए खुद ही कानूनी प्रावधान के अनुसार अपने खिलाफ भी जुर्माना/ एफआईआर की कार्रवाई करनी/ करवानी चाहिए।

मुख्य न्यायाधीश का यह फोटो नागपुर राजभवन परिसर का  है। मोटरसाइकिल भाजपा के स्थानीय नेता सोनबा मुसाले के बेटे रोहित मुसाले की बताई गई है। मोटरसाइकिल के आसपास अनेक लोग खड़े हुए। इनमें दो व्यक्ति तो मुख्य न्यायाधीश के पास ही बिना मास्क लगाए खड़ा हुए है।

चीफ़ जस्टिस को तो ऐसा नहीं करना चाहिए-

मुख्य न्यायाधीश महोदय आपको तो औरों से भी ज्यादा इस बात का ख्याल रखना चाहिए था कि आप जाने अनजाने में भी ऐसा कुछ न करें जिससे न्यायधीश के आचरण पर सवालिया निशान लग जाए।

रामदेव और डाक्टर इतने जाहिल हैं ?-

रामदेव, बालकृष्ण और निम्स के चांसलर डाक्टर बलबीर सिंह तोमर समेत 9 लोगों द्वारा मास्क न पहनने और दो गज दूरी के नियमों का पालन न करने का मामला इस पत्रकार द्वारा  उजागर किया गया।

आईपीएस क्या इतना निकम्मा, जाहिल हो सकता है?-

सीबीआई के मामले में वांटेड डीएचएफएल कपिल वधावन और उसके भाई  धीरज समेत 23 लोगों को तालाबंदी के दौरान खंडाला जाने की इजाजत /अनुमति वरिष्ठ आईपीएस अफसर अमिताभ गुप्ता द्वारा दी गई। लेकिन वांटेड अपराधियों की मदद करने वाले महाराष्ट्र के गृह विभाग के प्रधान सचिव पद पर तैनात अमिताभ गुप्ता के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। जबकि वांटेड अपराधियों की भागने में मदद करना ऐसा अपराध है जिसके लिए अमिताभ गुप्ता को जेल भेजा जाना चाहिए था।

इन मामलों से लगता है कि नियम कायदे सिर्फ आम आदमी के लिए ही हैं।

गोरे गए काले अंग्रेज़ बन गए राजा –

अंग्रेजों  के जाने के बाद दरअसल देश में शासकों के रुप में तीन तरह के नए राजाओं का राज़ क़ायम हो गया है इनमें पहले नंबर पर हैं नेता जो सत्ता में आने के बाद अंग्रेजों से भी ज्यादा संवेदनहीन, अहंकारी हो जाते हैं दूसरे नौकरशाह यानी आईएएस/ आईपीएस और तीसरे न्यायधीश। इन तीनों का जीवन, कार्य शैली,आचरण बिल्कुल राजाओं की तरह होता हैं।

ये तीनों मिलकर अपने अपने लोगों को बचाते भी हैं। कोई जज यदि भ्रष्टाचार या ग़लत आचरण में लिप्त पाया जाता है तो उसे गिरफ्तार कर जेल भेजने की बजाए उससे केवल पद से इस्तीफा लेकर उसे  छोड़ दिया जाता है।

इसी तरह नेता और नौकरशाह अपने अपने बेईमान सहयोगियों को बचाते हैं।

राजाओं का काफिला-

प्रधानमंत्री के काफिले को रास्ता देने के लिए पुलिस द्वारा जैसे आम आदमी को रोक दिया जाता है इस तरह हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों और यहां तक की पुलिस कमिश्नर के काफिले तक के लिए रास्ता बिल्कुल साफ रखा जाता है ताकि उनका काफिला बिना किसी रुकावट के आसानी से गुजर सके। इन सबको कोई असुविधा न हो।

 इन‌ सब की नजर में आम जनता की हैसियत/ औकात गुलाम  प्रजा से ज्यादा कुछ नहीं है हाल के वर्षों में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के आचरण ने न्यायधीशों की भूमिका पर सवालिया निशान लगाया है।

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