दिल्ली सरकार ने कोविड-19 के तहत चल रहे क्वारंटाइन प्रक्रिया के दौरान लोकतंत्र की हत्या करने में अनोखे कीर्तिमान स्थापित कर दिए हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया से सम्बन्धित एकता गार्डन हाउसिंग सोसायटी जहां उसने मनमाने तरीके से 28 बुजुर्ग परिवारों की गृहबंदी कर दी थी जो एक जुलाई को खत्म हुई। यह गृहबन्दी केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के निर्देश पर ही खोली गई। गृहबंदी समाप्त होने की अंतिम तिथि 3 जुलाई थी।
इस दौरान गृहबन्दी का शिकार बने पीडि़त परिवारों की पारिवारिक व सामाजिक जीवन का अन्दाजा सहज ही लगाया जा सकता है। इस सोसायटी का नया किस्सा है। इस सोसायटी में यह गृहबंदी एक षडयंत्र के तहत की गई थी। चूंकि इस सोसायटी में दो वर्षों से दिल्ली कोआपरेटिव सोसायटी के रजिस्ट्रार द्वारा नियुक्त प्रशासक काम कर रहे हैं। कानून किसी सोसायटी में प्रशासक तीन माह से अधिक प्रबन्धन नहीं कर सकता है। उसने सोसायटी के लोकतंत्र की हत्या कर दी उसका दायित्व है कि वह तीन माह पूरे होने से पहले सोसायटी का चुनाव कराए। यहां दो साल से अधिक समय बीतने के बावजूद चुनाव प्रक्रिया कहीं दिखाई नहीं देती। सोसायटी में लगी सील तो खुली पर इसके लिए जिम्मेदार प्रशासक के खिलाफ किसी तरह की कोई कार्यवाही नहीं की गई।
एकता गार्डन सोसायटी के निवासियों ने रजिस्ट्रार ऑफ ग्रुप हाउसिंग सोसायटी से एकता गार्डन हाउसिंग सोसायटी में चुनाव कराए जाने की मांग के साथ एक उच्च स्तरीय जांच कराने की भी मांग की है। सोसायटी के निवासियों ने का कहना है कि देश के किसी राज्य में सरकार न रहने की स्थिति में वहां छह माह के लिए राष्टï्रपति शासन लग सकता है। उस अवधि में केन्द्र सरकार के लिए अनिवार्य होता है कि वह वहां चुनाव सम्पन्न कराए। विशेष स्थिति में भारत की संसद छह छह माह के लिए राष्टï्रपति शासन बढ़ा सकती है। लेकिन सोसायटी के कानून सेक् शन 35 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। इस सोसायटी की एक विवशता यह भी है कि इसके पास पैसों की कमी है। इसके बावजूद प्रशासक को सोसायटी 15 000 रुपये मासिक और प्रशासक की सहायता के लिए रखे व्यक्ति को प्रतिमाह 10 हजार रुपये खर्च हो रहे हैं। उपर से यह भी कि प्रशासक यहां आता नहीं तो उससे सोसायटी के सदस्य चर्चा कैसे करें। आरोप है कि इसी प्रशासक ने दिल्ली सरकार के एक आला अधिकारी के दबाव में चुनिन्दा चार लोगों की यहां नियुक्ति की है।
यह लोग यहां के दैनिक प्रबन्ध की जिम्मेदारी पूरी कर रहे हैं। अनहोनी घड़ी में इस समिति के सदस्य एक और कड़ी जोड़े हुए हैं। यह वही शिकायतकर्ता है जिनकी शिकायत पर प्रशासक की नियुक्ति की गई है। ऐसा कहीं नहीं होता कि शिकायत कर्ता को ही प्रबन्धन की जिम्मेदारी सौंप दी जाए। निवासी चाहते हैं कि शिकायतों की जांच की जानी चाहिए। यह तो वही स्थिति बन गई कि शिकायत करने वाला जांचकर्ता और सजा देने वाला बन जाए ।
दिल्ली मंडावली क्षेत्र की पूर्व विधायक मीना भारद्वाज ने यह जानकारी देते हुए बताया कि सोसायटी द्वारा रजिस्ट्रार को लिखे पत्र की प्रतिलिपि भारत के राष्टï्रपति , प्रधानमंत्री, गृह मंत्री मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के साथ दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल को भी दी गई है। यह वहीं क्षेत्र है जहां से मनीष सिसोदिया बहुत थोड़ी सी बढ़त से ही अपनी शाख बचाए पाए थे।
इस सोसायटी में यह कार्यवाही पांच जून को पारित किए गए निर्देशों के तहत 6 जून को की गई थी। यह गलत और गैरकानूनी थी।
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