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मौजूदा और पूर्व सांसदों व विधायकों के खिलाफ 4,442 मामले लंबित : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली | सभी हाईकोर्ट द्वारा सुप्रीम कोर्ट को उपलब्ध कराए गए आंकड़ों से पता चला है कि वर्तमान और पूर्व विधायकों और सांसदों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों की संख्या 4,442 है। एमिकस क्यूरी और वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया द्वारा संकलित एक रिपोर्ट में कहा गया है, “2,556 मामलों में मौजूदा (सिटिंग) विधायक व सांसद आरोपी व्यक्ति हैं। ऐसे सांसद या विधायकों की संख्या ज्यादा है, जो एक से अधिक मामलों में आरोपी हैं।”

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दाखिल की थी। इसी की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने यह रिपोर्ट तलब की है। पीआईएल में सिटिंग और पूर्व सांसद और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों की तेजी से सुनवाई के लिए अनुरोध किया गया था।

शीर्ष अदालत ने सभी हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरलों को निर्देश दिया था कि वे सांसदों के खिलाफ लंबित मामलों के संबंध में जानकारी दर्ज करें।

हलफनामे में कहा गया है, “अपराधों के संबंध में 413 मामले हैं, जो आजीवन कारावास के साथ दंडनीय हैं, जिनमें से 174 मामलों में मौजूदा सांसदों/विधायकों पर आरोप लगाए गए हैं।”

हंसारिया ने अपने शपथ पत्र में वह आंकड़े भी दिए हैं, जिनमें ऐसे मामलों का भी उल्लेख है जिनमें ऊपरी अदालतों ने स्टे दिया हुआ है। ऐसे मामलों में बड़ी अदालतों के आदेश से सुनवाई स्थगित है। 352 मुकदमों में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के कारण ट्रायल रोक दिया गया है।

रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 1,217 मामले लंबित हैं, जिनमें से 446 मामलों में वर्तमान विधायक/सांसद आरोपी हैं।

उत्तर प्रदेश के बाद बिहार में कुल 531 लंबित मामले हैं, जिनमें से 256 मामलों में वर्तमान विधायक/सांसद आरोपी हैं। इसके बाद तमिलनाडु में 324, महाराष्ट्र में 330 और उड़ीसा में 331 लंबित मामले हैं।

हंसारिया ने सुझाव दिया कि सांसदों/विधायकों के लिए हर जिले में विशेष अदालतें स्थापित की जानी चाहिए। रिपोर्ट में कहा गया है कि हाईकोर्ट को ऐसे मामलों की प्रगति की निगरानी करनी चाहिए।

इसमें कहा गया है, “प्रत्येक हाईकोर्ट पूर्व और वर्तमान विधि निर्माताओं से संबंधित मुकदमों की संख्या और मामले की प्रवृत्ति को देखते हुए उन्हें सुनवाई के लिए आवश्यकतानुसार सत्र अदालतों और मजिस्ट्रेट की अदालतों को नामित कर सकते हैं। हाईकोर्ट आदेश के चार सप्ताह के भीतर इस तरह का फैसला ले सकते हैं।”

हलफनामे में कहा गया है कि अनेक मामले भ्रष्टाचार निरोधक कानून, धनशोधन रोकथाम कानून, शस्त्र कानून, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और भारतीय दंड संहिता की धारा 500 के तहत कई मामले दर्ज हैं। हंसारिया ने सुझाव दिया कि विशेष अदालतों को ऐसे मामलों को प्राथमिकता देनी चाहिए, जिनमें मृत्यु या आजीवन कारावास की सजा हो।

हलफनामे में सुझाव दिया गया है कि प्रत्येक हाईकोर्ट को राज्य में लंबित ऐसे मामलों की प्रगति की निगरानी और शीर्ष अदालत के निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए सांसदों/विधायकों के लिए विशेष न्यायालयों के साथ एक मुकदमा दायर करना चाहिए।

–आईएएनएस

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