नई दिल्ली| दिल्ली यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर जारी एक आदेश में ऑपरेशनल रिसर्च विभाग के प्रोफेसर पीसी झा की नियुक्ति साउथ कैंपस के निदेशक और कार्यवाहक रजिस्ट्रार के रूप में की गई है। कुछ घंटे बाद ही डीयू ने एक नया आदेश जारी किया। इस आदेश में कार्यकारी वीसी पीसी जोशी ने झा को फौरन ऑफिस खाली करने का आदेश दे दिया। आईएएनएस के पास इन दोनों आदेशों की कॉपी मौजूद है। दरअसल डीयू के कुलपति प्रोफेसर योगेश त्यागी अस्वस्थ हैं। इसे देखते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय में नए वाइस चांसलर की खोज शुरू की जा रही है। नए वाइस चांसलर की नियुक्ति से जुड़ी प्रारंभिक प्रक्रिया शुरू भी कर दी गई है। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने यह प्रक्रिया शुरू करने के निर्देश दिए हैं। वर्तमान वाइस चांसलर के कार्यकाल के मात्र 5 महीने शेष बचे हैं, जबकि नए वाइस चांसलर की नियुक्ति की प्रक्रिया 6 महीने पहले शुरू हो जाती है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति की अनुपस्थिति में पूरा कार्यभार प्रोफेसर पीसी जोशी संभाल रहे हैं। डीयू के कुल सचिव पद के लिए 10 अक्टूबर को इंटरव्यू हुए थे। इसपर विचार विमर्श के लिए यूजीसी ने 20 अक्टूबर को ऑनलाइन बैठक बुलाई थी। लेकिन इस बैठक में भी कोई सहमति नहीं बन सकी।
दिल्ली विश्वविद्यालय में अब कुलसचिव के पद पर विकास गुप्ता की नियुक्ति की गई है। कार्यकारी परिषद ने विकास गुप्ता को बुधवार देर रात कुलसचिव नियुक्त किया। वहीं रजिस्ट्रार ऑफिस ने कार्यकारी परिषद को ही गैर कानूनी करार दिया है। बुधवार देर रात ही कार्यकारी कुलपति पीसी जोशी ने आर्डर जारी किया कि डीयू कर्मचारी पीसी झा का आदेश नहीं माने।
कार्यकारी कुलपति पीसी जोशी ने सूचना जारी कर बताया कि पीसी झा की नियुक्ति गलत है। उन्हें तत्काल कार्यालय खाली करने का आदेश दिया गया है। डीयू कार्यकारी परिषद ने प्रोफेसर विकास गुप्ता को कुलसचिव नियुक्त किया।
उधर दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष प्रोफेसर राजीव रे ने इस पूरे मामले पर अपनी आपत्ति दर्ज की है। उन्होंने कहा, “एक अधिकारी को हटाना, और धमकी भरे पत्र बेहद परेशान करने वाले हैं। जबकि एक रजिस्ट्रार ने कार्यालय पर कब्जा कर लिया था, दूसरा कार्यकारी परिषद की निर्धारित बैठक के सदस्य सचिव के रूप में कार्य कर रहा था, जिसे पूर्व ने रद्द, स्थगित कर दिया था। विश्वविद्यालय के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है। यह दिन अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण और अपमानजनक हैं। यह केवल विश्वविद्यालय को अस्थिर करेगा और इसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाएगा।”
–आईएएनएस
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