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घूमते -घूमते आज वहां पहुंच गए जहां भारत की आत्मा बसती है

यात्रा वृतांत: घूमते -घूमते आज वहां पहुंच गए जहां भारत की आत्मा बसती है

ई.शेलेंद्र कुमार

घूमते -घूमते आज वहां पहुंच गए जहां भारत की आत्मा बसती है। यह गांव, पटना से बहुत दूर नहीं है। मगर शहरीकरण की कोई छाप भी यहां नहीं है। गंगा जी की धार कोईलवर आरा में सोन नदी के आवेग से दो धारों में बांट जाती है। एक मनेर के रास्ते सीधे चलती है और दूसरी अंबे भवानी पहलेजा घाट के रास्ते । दोनों धारों के बीच का उपजाऊ दोआब क्षेत्र एवम् उनके मिलन का विहंगम दृश्य J P सेतु गंगा ब्रिज से अवलोकनीय है। इसी के तट पर बसा यह गांव है।

गांव में एक कमेटी है जिसका सदस्य गांव का हर किसान परिवार है। सदस्यों की संख्या 1000 के पार है। 21 मेंबर की executive committee है जो गांव की खेती बारी से संबंधित सारे निर्णय लेती है और आम सभा में पारित भी करवाती है। गांव के एक एक इंच जमीन का उनके पास हिसाब है। आप चाहे गांव में रहे या फिर लंदन में। आपके पास ज़मीन का कागज़ात होना चाहिए। आपके ज़मीन से हुए उपज का एक भाव आपके खाते में स्थानांतरित कर दी जाती है। वो भी पूरी पारदर्शिता से। मुवाबजा आम सभा में तय होता है। हो सकता है आप के पास सिर्फ ज़मीन के कागज़ात हो मगर नहीं मालूम की ज़मीन कहां है तो जितनी ज़मीन की कागज़ात है उतने भर का एक हिसाब लगाकर पैसा दे दिया जाता है। गांव में जिस तालाब या पोखर पर हकदारी का झंझट था वो सब कमेटी को चला गया। उससे प्राप्त सारी आय कमेटी की आय हुई यानी की गांव के बैंक खाता में रखा जाएगा जिसका खर्च गांव के ही विकास में किया जाता है। पिछले 25 से 30 वर्षों से ये व्यवस्था चली आ रही है।

आजतक कोई विवाद नहीं हुआ। सबकी सहमति से गांव के एक एक मुद्दे सुलझा लेना छोटी बात नहीं है। कमेटी का कोई रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है। आपसी सहमति और पारदर्शिता के दो स्तंभों पर कमिटी चल रही है। आज हमलॉग कृषि विभाग के अधिकारियों के साथ पहुंच कर कमेटी को कृषि कार्य के लिए उत्साहित किए। उन्हें जैविक खेती के गुर बताए गए जो की बिहार के गंगा किनारे के आरा से भागलपुर तक के सभी जिलों में चलाया जा रहा है। कृषि यंत्र बैंक की स्थापना करने का भी सलाह दिया गया ताकि बुवाई, रोपाई, मड़ाई, कटाई, इत्यादि सभी कार्यों को उच्चतम यंत्रों की मदद से किया जा सके। यंत्रों को यदि समूह द्वारा लिया जाता है तो ट्रैक्टर से लेकर सभी बड़े यंत्रों पर भारी सब्सिडी का प्रावधान है। गांव के लोगों ने नीलगाय से हो रहे खेतों के नुक़सान से बचने की तरकीब भी पूछी। बताया गया कि उसके लिए गेहूं कि कुछ प्रजातियों जैसे PW 154 गेहूं को खेत के चारों तरफ लगाया जा सकता है। साथ ही बाजरा, खस, अरंडी, के पौधे भी लगाए जा सकते हैं जिनसे नीलगाय दूर ही रहती है। खस और मेंथा की खेती के बारे में दी गई जानकारी लोगों को काफी पसंद आयी। Acoustic sound मशीन के बारे में भी बताया गया जिससे नीलगाय को दूर रखा जा सकता है।

हां उससे होने वाले आवाज़ को 15 दिनों में बदलना भी जरूरी है। 2 किलो लहसून, 2 किलो अदरक और 2 किलो हरा मिर्च को पीस कर पानी में घोल बनाकर अगर खेतों के आस पास छींट दी जाय तो वह भी नीलगायों को आने नहीं देती। नीलगाय के गोबर का घोल भी छींट दें तो वो भाग जाती है। गांव के लोगों ने बारीकी से एक एक उपाय को नोट किया। यहां पराली जलाने का काम बिल्कुल नहीं होता। लोगों को बीज हर साल सरकारी अनुदान पर प्राप्त हो जा रहा है जो सुनकर अच्छा लगा। लगे हाथ मिट्टी की भी जांच हेतु सैंपल ले लिया गया। गांव की आय समग्रता से किस प्रकार बढ़ाई जाय उसको लेकर मंथन किया गया। एक एक किसान को होनेवाले अाय का ब्योरा लिया जाएगा और किस उत्पाद को लगाना है उसपर आगे भी चर्चा जारी रहेगी। लोगों से खुला संवाद एवम् निमंत्रण दिया गया की गांव के लोग जो पूछना चाहे पूछ सकते हैं। हमारी टीम आती रहेगी और जरूरत के अनुसार आम सभा में भी हमलोग निमंत्रण मिलने पर भाग ले सकते हैं।

इतनी सशक्त टीम अगर गांव में मौजूद हो तो ये गांव देश में एक मॉडल गांव बन सकता है। नई कृषि बिल FPO ( FARMER PRODUCERS ORGANISATION) एवम् कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग जैसे नए हथियारों से किसानों को लैश करना चाहती है। यहां FPO का इतना पुराना प्रारूप दिखा। आम सभा अगर स्वीकृति देती है तो जल्द हो इस गांव में FPO model कार्यकारी रूप ले लेगी। गांव के लोगों ने जो समय और अपनापन दिया वो विस्मृत होना मुश्किल है। हर सब्ज़ी और खानपान में किसी किसान के श्रम का पसीना बहा है। जब भी खाएं उनके प्रति आभार व्यक्त करें। ऐसी संस्थाएं हर गांव में होनी चाहिए। कमिटी से मिलकर पता चला कि भारत या विश्व का पहला गणतंत्र वैशाली में ही क्यों बना। छपरा जिला की माटी से कैसे पांच से छह मुख्यमंत्री सूबे को मिले। जरूर दिलों पर राज करने का हुनर यहां की मिट्टी से मिली होगी। खैर , गांव के लोगों को धन्यवाद के साथ हमने ऐसे विदा ली जैसे अपने परिवार जनों से मिलकर लौट रहे हों। सर्द दिन हो, गुनगुना धूप हो, गांव का खुला दालान हो, 20 किसानों की टोली हो और उनके साथ बैठने का मौका हो तो समय कब कट जाय पता नहीं चलता। गांव का किसान खुशहाल हो । एक हंसता हुआ , मुस्कुराता हुआ किसान की कल्पना में खोए हम पटना कब लौट गए पता ही नहीं चला।

आज ई किसान भवन का भ्रमण , वहां पर सैदपुर पंचायत के किसानों के साथ वार्तालाप, भरपुरा में किसान चौपाल देखने और गंगाजल में खुले गोष्ठी में भागीदारी का मौका मिला। गांव की हर गली में पक्की सड़क, हर घर नल, गंगा ब्रिज , कृषि विभाग का बीज वितरण इत्यादि बताती है कि हम विकास के रास्ते कहां से कहां पहुंच गए हैं।अब बारी हम सब को मिलकर कुछ बड़ा करने की है। विभाग कृत संकल्पित है। सप्ताह में कम से कम एक दिन गांव के भ्रमण का सरकारी आदेश निर्गत है। खेती के दिन फिरने लगे हैं। आज शहर छोड़ लोग गांव का रुख कर रहे हैं। आज की यात्रा से ये सुकून भी हुआ कि सचिवालय की शनिवार कि छुट्टी का इससे अच्छा उपयोग नहीं हो सकता था। गंगाजी के पुण्य मयी सौंदर्य के बीच अलौकिक कवि विद्यापति जी के गीत “बड़ सुख सार पार पाओल तुआ तीरे, छाड़त निकट नयन भए नीरे” किस प्रकार झरने की तरह निः सृत हुए होंगे का अहसास भी हुआ।

जय जवान जय किसान। जय कृषि विभाग

 

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