नई दिल्ली| सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कोविड-19 से संबंधित मुद्दों पर लिए गए स्वत: संज्ञान मामले के खिलाफ लगाए गए आरोपों पर अंसतोष व्यक्त किया। दरअसल कुछ वरिष्ठ वकीलों द्वारा शीर्ष अदालत की ओर से कोविड-19 से जुड़े उन मामलों एवं याचिकाओं पर स्वत: संज्ञान लेने पर आलोचना की गई थी, जो विभिन्न हाईकोर्ट में लंबित हैं। इस आलोचना पर अब सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी व्यक्त की है।
न्यायमूर्ति एल. एन. राव और न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट के साथ प्रधान न्यायाधीश एस. ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि बार के सदस्यों ने आदेश को पढ़े बिना या आदेश जारी हुए बिना ही आलोचना की है। पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट से मामलों को यहां लेने का कोई इरादा नहीं था और इसलिए आलोचना निराधार है।
पीठ ने वरिष्ठ वकील और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विकास सिंह से सवाल पूछते हुए कहा, “क्या आपने आदेश पढ़ा है। क्या मामले को स्थानांतरित करने का कोई इरादा है?”
पीठ ने कहा कि जब इस संबंध में कोई आदेश पारित ही नहीं किया गया, तब भी इस पर प्रकार की बात की जा रही है।
असंतोष व्यक्त करते हुए, पीठ ने आगे कहा कि आदेश जारी होने से पहले ही, उस चीज के लिए आलोचना की जा रही थी, जो उस क्रम में नहीं थी। पीठ ने कहा, “इस तरह संस्थान को नष्ट किया जा रहा है।”
पीठ ने जोर दिया कि उसका इरादा केवल ऑक्सीजन के अंतर्राज्यीय मूवमेंट पर ध्यान देना था, जो दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा सहित कई राज्यों के बीच विवाद का कारण बना हुआ है। केंद्र द्वारा जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगे जाने के बाद शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई 27 अप्रैल तक के लिए स्थगित कर दी।
बता दें कि इस समय कम से कम छह हाईकोर्ट कोविड प्रबंधन से जुड़े मामलों पर नजर बनाए हुए हैं, जिनमें दिल्ली, बंबई, सिक्किम, मध्य प्रदेश, कलकत्ता और इलाहाबाद हाईकोर्ट शामिल हैं, जो कोविड प्रबंधन से जुड़े मामलों की सुनवाई कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र से ऑक्सीजन की आपूर्ति, आवश्यक दवाओं की आपूर्ति, टीकाकरण की विधि एवं तरीके से लेकर लॉकडाउन घोषित करने के संबंध में जवाब मांगा था।
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इन अदालतों (हाईकोर्ट) ने सर्वोत्तम हित में फैसले लिए हैं, लेकिन कुछ आदेश भ्रम पैदा कर रहे हैं। इनके आदेशों की न्यायिक शक्ति की जांच करने की जरूरत है।
वहीं अब पीठ ने गुजरात हाईकोर्ट अधिवक्ता संघ का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे से कहा, “आपने आदेश पढ़े बिना ही हमें अभिप्रेरित कर दिया।”
इस पर दवे ने कहा कि वह किसी भी मकसद को लागू नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि किसी उद्देश्य को लागू नहीं किया जा रहा है। हम सभी ने सोचा था कि आप यह करने जा रहे हैं (मामले को हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करना) यह एक वास्तविक धारणा थी। आपने पहले भी ऐसा किया है।
इसके बाद न्यायमूर्ति रवींद्र भट ने हस्तक्षेप करते हुए दवे से कहा, “हमने हाईकोर्ट के बारे में एक शब्द नहीं कहा। हमने हाईकोर्ट को आगे बढ़ने से कभी नहीं रोका। हमने केंद्र से हाईकोर्ट से संपर्क करने के लिए कहा है।”
न्यायमूर्ति भट ने कहा, “आप किस तरह की धारणा की बात कर रहे हैं?”
प्रधान न्यायाधीश बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने महामारी के दौरान आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं का वितरण मामले की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसे इसने गुरुवार को उठाया था।
न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और एस. रवींद्र भट के साथ प्रधान न्यायाधीश एस. ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने गुरुवार को कहा, “देश के विभिन्न हिस्सों में स्थिति गंभीर है। कोविंद के मरीजों और इससे जान गंवाने वालों की संख्या में अचानक वृद्धि देखी जा रही है।”
पीठ ने कहा कि दवाओं, ऑक्सीजन एवं टीकाकरण की उपलब्धता और वितरण स्वास्थ्य अधिकारियों की सलाह के अनुसार एक समान तरीके से किया जाना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कह कि हम उम्मीद करते हैं कि केंद्र सरकार महामारी के दौरान उपरोक्त सेवाओं और आपूर्ति से निपटने की एक राष्ट्रीय योजना तैयार करेगी।
पीठ ने यह भी कहा कि दवाओं, ऑक्सीजन और टीकाकरण की उपलब्धता और वितरण स्वास्थ्य अधिकारियों की सलाह के अनुसार एक समान तरीके से किया जाना चाहिए।
–आईएएनएस
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