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संसदीय समिति ने दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रिंसिपल के पदों में भी आरक्षण लागू करने का निर्देश दिया है

नई दिल्ली :दिल्ली यूनिवर्सिटी एससी, एसटी, ओबीसी टीचर्स फोरम ने दिल्ली सरकार से संबद्ध मैत्रेयी कॉलेज द्वारा 1 मई 2021 को स्थायी प्रिंसिपल के पद का विज्ञापन बिना आरक्षण के निकाले जाने की शिकायत एससी/एसटी कल्याणार्थ संसदीय समिति, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग, नेशनल एससी/एसटी कमीशन में की है और कहा है कि कॉलेज ने संसदीय समिति के निर्देशों की उपेक्षा कर प्रिंसिपल के पद का बिना आरक्षण के निकाला है। टीचर्स फोरम ने प्रिंसिपल पद के विज्ञापन को रद्द करने की माँग करते हुए आरक्षण के प्रावधानों के तहत दुबारा विज्ञापन निकालने की माँग की है। फोरम ने बताया है कि इस पद को भरने के लिए अंतिम तिथि 14 मई रखी गई है।

फोरम के चेयरमैन डॉ. कैलास प्रकाश सिंह ने बताया है कि दिल्ली विश्वविद्यालय से सम्बद्ध कॉलेजों में लंबे समय से प्रिंसिपल के पदों पर नियुक्तियांँ ना होने से बहुत से कालेजों में अस्थायी प्रिंसिपल हैं। इन पदों पर यथाशीघ्र स्थाई नियुक्ति करने की माँग काफी अर्से से की जा रही है। इनमें ज्यादातर दिल्ली सरकार के कॉलेज हैं।उन्होंने बताया है कि दिल्ली सरकार के अंतर्गत 28 कॉलेज आते हैं, इनमें 20 ऐसे कॉलेज है जो अस्थायी रूप से या ओएसडी प्रिंसिपलों के सहारे चल रहे हैं। उनका कहना है कि लगभग 30 महीने पहले विभिन्न कॉलेजों के स्थायी प्रिंसिपलों के पदों के विज्ञापन निकाले गए थे, इनमें से 5-6 कॉलेजों में परमानेंट प्रिंसिपलों की नियुक्ति भी की गई। उसके बाद नियुक्ति की प्रक्रिया बंद कर दी गई। उन पदों के विज्ञापनों की समय सीमा नवम्बर-दिसम्बर 2020 में समाप्त हो गई।

डॉ. सिंह ने बताया है कि प्रोफेसर व प्रिंसिपल पदों में आरक्षण दिए जाने को लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय में 9 जुलाई 2015 को नेशनल एससी /एसटी कमीशन, यूजीसी, एमएचआरडी, डीओपीटी और एससी/एसटी के कल्याणार्थ संसदीय समिति यहांँ आरक्षण की स्थितियों का मुआयना करने भी आई थी। समिति ने 18 दिसम्बर 2015 को एक रिपोर्ट लोकसभा में प्रस्तुत की जिसमें कहा गया था कि दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों के प्रिंसिपल पदों को क्लब करके रोस्टर रजिस्टर बनाया जाए। उनका कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने प्रिंसिपल पदों का रोस्टर रजिस्टर आज तक तैयार नहीं किया वरना मैत्रेयी कॉलेज में प्रिंसिपल का पद आरक्षित घोषित कर निकाला जाता। अब मैत्रेयी कॉलेज ने प्रिंसिपल के पद को अनारक्षित निकाला है। जिसे लेकर डीयू एससी, एसटी टीचर्स में आक्रोश व्याप्त है।

डॉ. सिंह ने आगे यह भी बताया है कि दिल्ली सरकार के अंतर्गत आने वाले दिल्ली यूनिवर्सिटी के वे कॉलेज जिनमें प्रिंसिपल नहीं हैं। उनमें श्री अरबिंदो कॉलेज, अरबिंदो कॉलेज (सांध्य), मोतीलाल नेहरू कॉलेज, मोतीलाल नेहरू कॉलेज (सांध्य), भगत सिंह कॉलेज, भगत सिंह कॉलेज (सांध्य) सत्यवती कॉलेज, सत्यवती कॉलेज (सांध्य), राजधानी कॉलेज, विवेकानंद कॉलेज, भारती कॉलेज, गार्गी कॉलेज, कमला नेहरू कॉलेज, मैत्रेयी कॉलेज, इंदिरा गांधी फिजिकल एजुकेशन, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, भगिनी निवेदिता कॉलेज, शिवाजी कॉलेज, दीनदयाल उपाध्याय कॉलेज, महर्षि बाल्मीकि कॉलेज, आचार्य नरेंद्रदेव कॉलेज, महाराजा अग्रसेन कॉलेज, राजधानी कॉलेज आदि कॉलेजों में पिछले पाँच सालों से प्रिंसिपलों के पद खाली पड़े हैं।

उन्होंने बताया है कि प्रिंसिपलों के पदों पर आरक्षण होते हुए भी दिल्ली यूनिवर्सिटी के 79 कॉलेजों में एक भी पद एससी, एसटी, ओबीसी व दिव्यांग श्रेणियों से नहीं भरा गया है। दिल्ली विश्वविद्यालय में जब संसदीय समिति ने वर्ष-2015 में दौरा किया था तब रजिस्ट्रार, वाइस चांसलर व डीन ऑफ कॉलेजेज को कहा गया था कि प्रिंसिपल के पदों पर भी आरक्षण दिया जाए। समिति का कहना था कि प्रिंसिपलों के इन पदों को एक जगह क्लब करके रोस्टर बनाया जाए और यूजीसी गाइडलाइंस —2006 व डीओपीटी गाइडलाइंस के अनुसार आरक्षण देकर पदों का विज्ञापन निकाला जाना चाहिए। यदि प्रिंसिपलों पदों को क्लब किया जाता है तो 50 फीसदी पदों पर आरक्षित वर्गो के उम्मीदवारों की नियुक्ति होगी। डीओपीटी रोस्टर नियम के अनुसार यह इस प्रकार होगा— एससी-12, एसटी-06, ओबीसी-20, दिव्यांग श्रेणी-04 पद बनते हैं। मगर अभी तक दिल्ली यूनिवर्सिटी ने प्रिंसिपलों के पदों को क्लब करके रोस्टर रजिस्टर नहीं बनाया है और न ही पदों का विज्ञापन ही निकाला, जिससे सभी पद खाली पड़े हुए हैं ।

उनका कहना है कि यदि आरक्षण प्रावधानों को लागू किए बिना प्रिंसिपल के पद भर लिए जाएंगे तो उन्हें आरक्षण कब दिया जाएगा, इससे आरक्षित वर्ग में असंतोष होगा और विश्वविद्यालय प्रशासन को उनके आक्रोश का सामना करना पड़ेगा। उनका यह भी कहना है कि किसी भी कॉलेज या संस्थान में प्रिंसिपल एक महत्वपूर्ण प्रशासकीय पद होता है।काॅलेज और संस्थान को प्रिंसिपल ही सबसे अधिक समय देता है । विश्वविद्यालय में प्रोफेसर व प्रिंसिपल बराबर के रैंक माने जाते हैं। जब प्रोफ़ेसर में आरक्षण दिया जा रहा है तो प्रिंसिपल के पदों पर क्यों नहीं ? उनका यह भी कहना है कि प्रिंसिपलों के पदों पर नियुक्ति ना होने से शैक्षिक और गैर-शैक्षिक पदों पर स्थायी नियुक्तियांँ नहीं हो पा रही हैं। इससे काॅलेज का व्यवस्थित रोस्टर भी नहीं बन पा रहा है। यही स्थिति लाइब्रेरियन के पदों की भी है।

डॉ. सिंह ने बताया है कि मैत्रेयी कॉलेज ने दुबारा रोस्टर रजिस्टर तैयार कर आरक्षित वर्ग से प्रिंसिपल के पद का विज्ञापन नहीं निकाला तो टीचर्स फोरम एससी/एसटी कमीशन, ओबीसी कमीशन, संसदीय समिति, यूजीसी व शिक्षा मंत्रालय को पत्र लिखकर फिर से दिल्ली विश्वविद्यालय में आरक्षण की समीक्षा करने के लिए उनका दौरा कराएंगे।

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