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सीबीआई ने बैंकों के साथ धोखाधड़ी करने वाली निजी फर्म के खिलाफ मामला दर्ज किया

नई दिल्ली| केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने चार बैंकों के साथ कथित तौर पर 161.91 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी करने के आरोप में रामा कृष्णा निटर्स प्राइवेट लिमिटेड (आरकेकेपीएल) के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है।

आरकेकेपीएल के उत्पाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में काफी मशहूर थे और विदेश व्यापार महानिदेशालय ने इसे निर्यात कारोबार घराने के तौर पर मान्यता दी थी। प्राथमिकी में दो व्यक्तियों – शालू गुप्ता और नरिंदर चुघ को आरोपी बनाया गया है।

प्राप्त जानकारी के मुताबिक, सीबीआई को इस संबंध में पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) से शिकायत मिली थी कि इस फर्म ने 161.91 करोड़ रुपये की ऋण सुविधा का लाभ उठाकर चार बैंकों को धोखा दिया है।

फर्म द्वारा अगस्त 2010 और मार्च 2016 की अवधि के दौरान कथित ऋण धोखाधड़ी की गई थी।

रामा कृष्णा निटर्स फर्म 2007 में अस्तित्व में आई थी और कंपनी की लुधियाना और प्रीत विहार में इकाइयाँ थीं। फर्म का मुख्य कार्य बुने हुए रेडीमेड कपड़ों का निर्माण था। इसकी उत्पादन क्षमता प्रत्येक दिन 50,000 से 60,000 प्रति पीस की थी।

आरकेकेपीएल अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, आर्मेनिया, ताजिकिस्तान और कुछ अन्य देशों से माल निर्यात करती थी।

सीबीआई द्वारा दर्ज प्राथमिकी में कहा गया है कि फर्म की स्थिति को बाद में निर्यात व्यापार घराने में अपग्रेड कर दिया गया था और इसके बाद कंपनी के निदेशक ने ऋण के अनुरोध के साथ पीएनबी से संपर्क किया।

उन्होंने बैंक से कहा कि अपने कारोबार के विस्तार के लिए उन्हें कर्ज की जरूरत है। बाद में, चार बैंकों के एक संघ ने इस फर्म को ऋण स्वीकृत किया । वर्ष 2014 में, फर्म के प्रबंध निदेशक का निधन हो गया और बाद में नए प्रबंध निदेशक की नियुक्ति की गई। इसके पश्चात बैंकों के संघ ने ऋण सुविधाओं के पुनर्गठन के लिए सहमति व्यक्त की।

लेकिन फर्म और नवनियुक्त प्रबंध निदेशक ने ऋण की शर्तों का उल्लंघन किया और अंतत: 2016 में बैंकों ने फर्म के खाते को एनपीए घोषित कर दिया। बैंकों को वित्तीय लेनदेन में विभिन्न वित्तीय अनियमितताएं मिलीं।

फॉरेंसिक जांच में कई वित्तीय अनियमितताओं का खुलासा हुआ। फर्म ने गैर-व्यावसायिक उद्देश्य के लिए कथित तौर पर कई खातों में बड़ी राशि स्थानांतरित की थी और ये सभी लेनदेन 2013 से पहले किए गए थे।

फर्म के खाते के वित्तीय विश्लेषण के दौरान बैंक यह जानकर हैरान रह गए कि फर्म को विभिन्न व्यक्तियों से लगभग 38.71 करोड़ रुपये मिले, लेकिन उन्होंने फर्म से कुछ भी नहीं खरीदा था।

यह मूल रूप से उच्च नकद निकासी सुविधा सुनिश्चित करने के लिए बकाया प्राप्य स्थिति को बढ़ाने के लिए किया गया था मामला दर्ज करने के बाद सीबीआई ने मामले की जांच के लिए अधिकारियों की एक टीम बनाई है।

–आईएएनएस

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