फिल्म ‘हरामखोर’ समाज के एक बड़े मुद्दे को ध्यान खींचती है, जो सराहनीय है। लेकिन अफसोस की बात है कि इस ओर सामाजिक जागरुकता या अस्वीकार्यता के बीच विवादित सीन डार्क ह्यूमर या दुस्साहस का अवतार नहीं धर पाते। फिल्म में कई बातें अनकही रह जाती हैं, जिनका जवाब नहीं मिलता।एक डायरेक्टर दर्शकों के लिए कुछ सवाल छोड़ जाए, लेकिन श्लोक शर्मा अपने दर्शकों से कुछ ज्यादा ही अपेक्षा कर बैठे हैं।
फिल्म की खामियों की बात करें तो इसका प्रचार.यह कहकर किया गया कि यह फिल्म बाल शोषण पर है। लेकिन फिल्म देखकर लगता है कि फिल्म में बाल शोषण तो हैं लेकिन स्वेच्छा से है और फिल्ममेकर ने उसे मुद्दा बनाकर प्रचार का हथियार बनाया है। फिल्म में मुख्य भूमिका निभायी है नवाजुद्दीन सिद्दकी और श्वेता त्रिपाठी जिसे निर्देशित किया है श्लोक शर्मा ने।
फिल्म की खामियों की बात करें तो मुझे इसकी सबसे बड़ी कमी लगती है इसका प्रचार. दरअसल इस फिल्म का प्रचार यह कहकर किया गया कि यह फिल्म बाल शोषण पर है। लेकिन फिल्म देखकर लगता है कि फिल्म में बाल शोषण तो हैं लेकिन स्वेच्छा से है और फिल्ममेकर ने उसे मुद्दा बनाकर प्रचार का हथियार बनाया।
ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित हरामखोर, की कहानी लव ट्राएंगल है। एक स्कूल टीचर है श्याम (नवाजुद्दीन सिद्दीकी), उसे 14 साल की अपनी स्टूडेंट संध्या (श्वेता त्रिपाठी) से प्यार हो जाता है। इस प्रेम कहानी का तीसरा एंगल है कमल (इरफान खान), जो संध्या के साथ ही ट्यूशन पढ़ता है। कमल जो संध्या से प्यार करता है और उसका एक शैतान-चंचल दोस्त मिंटू। दोनों जिगरी दोस्त हैं। मिंटू कमल को संध्या को रिझाने के लिए अजीब-अजीब तरीके बताता रहता है। इसी क्रम में दोनों बालकों को अंदेशा होता है कि श्याम और संध्या के बीच कोई खिचड़ी पक रही है।
जिन लोगों ने ‘हरामखोर’ फिल्म फेस्टिवल्स में देखी है, वह बताते हैं कि कई सीन काटे गए हैं। लेकिन जो भी कारण रहा हो, स्क्रीनप्ले में बहुत कुछ छूटा सा जान पड़ता है। बहरहाल, इस बोल्ड लेकिन अनसुलझी सी फिल्म में जो बात सबसे अधिक अपील करती है वो है कास्टिंग। मुकेश छाबरा ने कास्टिंग के स्तर पर जबरदस्त काम किया है। खासकर श्वेता त्रिपाठी के मामले में जो 31 साल की होकर 14 साल की लड़की का रोल प्ले कर रही हैं।
श्वेता त्रिपाठी फिल्म ‘मसान’ में अपनी प्रतिभा का लोहा पहले ही मनवा चुकी हैं और एक बार फिर ‘हरामखोर’ के सहारे उन्होंने साबित कर दिया कि वो एक मंझी हुई कलाकार हैं।नवाज एक अच्छे अभिनेता हैं और यहां भी उनका अभिनय काफी दमदार है। इस फिल्म की जान हैं फिल्म की दो बच्चे यानी मास्टर इरफान और मास्टर मोहम्मद समद, जो फिल्म को मनोरंजक बनाए रखते हैं। अभिनय तो उनका अच्छा है।
संध्या को उसकी मां घर से निकाल देती है और रुखे व्यवहार वाले पिता से ऐसे ही कोई साथ नहीं मिलता। अब टीचर श्याम संध्या को शरण देता है। संध्या श्याम के साथ सेक्सुअल रिलेशन में आती है। उसके गुस्से को भुगतती और समझने की कोशिश करती है। निर्णयों को बदलती है। जबकि श्याम मौकापरस्त है। नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने एक बार फिर साबित किया है कि वो बेहतरीन एक्टर हैं। आज के दौर के सबसे जबरदस्त एक्टर्स की फेहरिस्त में वो टॉप ऑर्डर में हैं। गुस्सा, भावुकता, हंसी जैसे सारे भावों को एक साथ हर बदलते फ्रेम में कैसे सजाया जा सकता है, यह नवाज को बखूबी आता है।
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