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हिन्दू संघर्ष समिति ने जंतर-मंतर पर श्रीलंका में जुलाई 1983 में हुए नरसंहार के खिलाफ प्रदर्शन

हिन्दू संघर्ष समिति ने जंतर-मंतर पर श्रीलंका में जुलाई 1983 में हुए नरसंहार के खिलाफ प्रदर्शन

नई दिल्ली: हिन्दू संघर्ष समिति ने जंतर-मंतर पर श्रीलंका में जुलाई 1983 में हुए नरसंहार व अन्य राज्य प्रेरित भेदभाव पूर्व अत्याचार व सामान्य नागरिकों के खिलाफ कियें गये युध्द अपराधों पर सांकेतिक प्रदर्शन किया।

सबसे पहले तो हम श्रीलंका के नये चुने गये राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को बधाई व शुभकामनायें देते हैं और आशा करते हैं कि वो श्रीलंका को वर्तमान आर्थिक संकट से बाहर निकाल कर एक सर्व समावेशी व बहुलतावादी लोकतंत्र को सशक्त करने में सक्षम होगें, जिसमें सबका साथ और सबका विकास की भावना समाहित हों। देश के वर्तमान राष्ट्रपति ने कहा है कि वो जनता के मित्र है , जो कि स्वागत योग्य है परन्तु पिछले रक्तरंजित इतिहास को देखते हुये उन्हें साबित करना है कि वो वास्तव में समस्त श्रीलंका की जनता के व भारत के सच्चे मित्र है।

आज हम यहॉं पर काली जुलाई के लक्षित सांप्रदायिक नरसंहार जो कि राज्य की मशीनरी द्वारा प्रायोजित था की दुखभरी याद मे एकत्र हुये है। ग़ौरतलब बात ये है की इस नरसंहार के बाद इस अमानवीय कृत्य को न्यायोचित ठहराते हुए वर्तमान राष्ट्रपति के चाचा जी व तत्कालीन राष्ट्रपति जयवर्धने ने एक बेहद ही शर्मनाक वक्तव्य दिया था जो कि श्रीलंका के नेतृत्व की भेदभाव पूर्ण मानसिकता को दर्शाता है।

आज तक इस नरसंहार के पीड़ितों को कोई मुआवज़ा , क्षतिपूर्ति नहीं मिली है बाद में आम नागरिकों पर हुयें अमानुषिक सैनिक अत्याचारों की बात तो छोड़ ही दीजियें।
लंबे समय से श्रीलंका के राजनैतिक नेतृत्व में मतिभ्रम के कारण उनका रवैया श्रीलंका के मूल निवासी तमिल हिन्दूओं के साथ साथ भारत के खिलाफ भी रहा है जबकि भारत सदैव श्रीलंका का मित्र रहा है और वर्तमान में भारत ने सबसे ज़्यादा सहायता श्रीलंका को दी है वो भी इस बात के बावजूद कि श्रीलंका ने आज तक नेहरू , लालबहादुर शास्त्री , इंदिरा गॉंधी , राजीव गॉंधी व अन्य के साथ हुये किसी भी द्विपक्षीय समझौता का कोई आदर नहीं किया है और किसी भी समझौते का आज तक पूर्ण पालन नहीं हुआ है।
आशा करते हैं कि श्रीलंका का नया नेतृत्व वहाँ समुचित संवैधानिक सुधार करेगा अगर वो एक नई संविधान सभा का गठन कर वहाँ के सभी जातीय समूह को उचित सहभागिता देकर एक आदरणीय भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा सुझायें गये सर्व समावेशी सहयोगी संघवाद आधारित लोकतांत्रिक प्रकिया को अपनायें तो बहुत ही बेहतर होगा।

श्रीलंका को अपनी जनता के सभी तबके में विश्वास बहाल करने के लिये सबसे पहले राजनैतिक क़ैदियों को रिहा करना होगा।
युध्द अपराधों से पीड़ित पूर्वोत्तर प्रांत में पुनर्विकास कार्य करने के साथ साथ वहाँ के लोगों को स्थानीय प्रशासन में समुचित राजनैतिक सहभागिता प्रदान करनी होगी।
इस क्षेत्र को एक विशेष राहत पैकेज देना होगा तथा सैन्य व प्रशासनिक गतिविधियों के लिये ज़रूरत से ज़्यादा भूमि अधिग्रहण को तुरंत प्रभाव से बंद करना होगा ताकि वहाँ का तमिल समुदाय देश की मुख्यधारा में आ सके।

नई सरकार को ब्लैक जुलाई नरसंहार व अन्य राज्य प्रेरित भेदभाव पूर्व अत्याचार व सामान्य नागरिकों के खिलाफ कियें गये युध्द अपराधों के लिये माफ़ी माँगनी चाहिये।

पिछले कुछ समय से समिति, पड़ोसी देश श्रीलंका में राजनीतिक उथल पुथल के बीच वहां हिंदुओं के साथ हो रही ज्यादतियों से काफी चिंतित है। श्रीलंका आज राजनैतिक अक्षमताओं और अदूरदर्शिता का परिणाम भुगत रहा है। भारत सदैव श्रीलंका का सच्चा मित्र रहा है फिर भी श्रीलंका का राजनैतिक व सामाजिक नेतृत्व हमारी सदायशता व सद्भावना के प्रति सदैव पूर्वाग्रह-ग्रस्त है। श्रीलंका अक्सर भारत द्वारा पहुंचाई गई मदद के प्रति भी पूर्वाग्रहग्रसित रहा जिसके लिए कई बार उनके पिछले नेतृत्व ने आपत्तिजनक बयान दिए जैसे ‘भारत से मिली मदद खैरात नही है’। भारत के निवेशकों के प्रति भी श्रीलंकाई सरकार दुर्भावनापूर्ण व्यवहार रखती है और ऊर्जा क्षेत्र में होने वाले कार्यों के प्रति गाहे-बगाहे विरोध व्यक्त करती है।उन्होंने भारत के वैध निवेशक अड़ानी को दिये गये टेंडरों पर भी पूर्वाग्रह ग्रसित मानसिकता के साथ ना केवल संदेह के वातावरण का निर्माण किया बल्कि इसकी आड़ में श्रीलंका की जनता के सच्चे मित्र भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी पर कीचड़ उछालने का भी प्रयास किया ।

श्रीलंका द्वारा जुलाई, 1983 से शुरू होकर तकरीबन 25 साल से ज्यादा चले गृहयुद्ध में तमिल हिंदुओं ने अपने हजारों भाई, बहनों को खो दिया। हमें आशंका है कहीं श्रीलंका फिर से तमिल हिंदुओं के प्रति भेदभावपूर्ण रवैया रखकर, उनके संवैधानिक और नागरिक हक छीनने का प्रयास कर सकती है।

हिंदू संघर्ष समिति ने तय किया है कि श्रीलंका के इस दुर्भावनापूर्ण रवैये के प्रति हम सांकेतिक विरोध जताएं और निम्नलिखित मांगों पर यथाशीघ्र कार्यवाही के प्रति आशावान रहें।

· समिति मांग करती है कि द्विपक्षीय संबंधों में श्रीलंका को भारत का उचित मान-सम्मान करना चाहिये तथा श्रीलंका के हिन्दू समुदाय को मुख्यधारा में शामिल कर उन्हें उचित राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक सहभागिता देनी चाहियें ।

· भारत सरकार से पूर्व में किए गए समझौतों का पूर्ण पालन करना चाहिए।

· भारत के व्यापारिक संस्थानों को श्रीलंका में उचित वातावरण प्रदान करना चाहिये ।

· युद्ध अपराध और ‘ब्लैक जुलाई’ के पीड़ितों को तुरंत उचित मुआवज़ा देकर उन्हें राहत पहुंचानी चाहिए।

॰ भारत के तमिलनाडु में सौ से ज़्यादा कैम्पो में रह रहे तमिल शरणार्थियों की नागरिकता की समस्या का तुरंत समाधान किया जाना चाहियें ताकि वो एक बेहतर जीवन पा सके

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