डॉ. वेदप्रताप वैदिक
यह हमारे लोकतंत्र की मेहरबानी है कि इस संकट की घड़ी में चीन का मुकाबला करने की बजाय हमारे राजनीतिक दल एक-दूसरे के साथ दंगल में उलझे हुए हैं। टीवी चैनलों पर जैसी अखाड़ेबाजी हमारे राजनीतिक दलों के प्रवक्ता करते रहते हैं, वह उन टीवी चैनलों का स्तर तो गिराती ही है, हमारी जनता को भी गुमराह करती रहती है। जरा हम चीन की तरफ देखें। क्या गलवान घाटी की खूनी मुठभेड़ पर वहां नेताओं, टीवी चैनलों या अखबारों के बीच वैसा ही दंगल चलता है, जैसा हमारे यहां चल रहा है ? इसका मतलब यह नहीं कि सरकार के हर कदम का आंख मींचकर समर्थन किया जाए या उसकी भयंकर भूलों की अनदेखी कर दी जाए लेकिन आजकल कांग्रेस के नेता भाजपा के नेताओं, खासकर प्रधानमंत्री के लिए जिस तरह के शब्दों का प्रयोग करते हैं, वैसा करके वे अपना ही अपमान करवाते हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री डाॅ. मनमोहनसिंह ने मोदी को पत्र लिखकर उसमें सावधानी रखने का जो सुझाव दिया, वह ठीक ही था लेकिन सोनिया गांधी और राहुल गांधी जिस तरह से चीन को जमीन सौंपने के आरोप मोदी पर लगा रहे हैं, वे सर्वथा अनुचित हैं। कोई कमजोर से कमजोर भारतीय प्रधानमंत्री जो हिमाकत नहीं कर सकता, उसे मोदी पर थोप कर कांग्रेसी नेता किसे खुश करना चाहते हैं ? गलवान की स्थानीय और तात्कालिक फौजी मुठभेड़ को भस्मासुरी रंग में रंगना और जनता को उकसाना आखिर हमें कहां ले जाएगा ? क्या कांग्रेसी नेता यह चाहते हैं कि भारत और चीन के बीच युद्ध हो जाए ? क्या ऐसा होना भारत के हित में होगा ? यदि ऐसा न भी हो तो क्या जनता को भड़काना ठीक होगा ? देश कोरोना से लड़ेगा या चीन से ? भारत और चीन का मामला अभी बातचीत से सुलझ रहा है तो उसे क्यों नहीं सुलझने दिया जाए ? यदि कांग्रेस भाजपा पर प्रहार करेगी तो भाजपाई भी गड़े मुर्दे उखाड़ने में संकोच क्यों करेंगे ? वे नेहरु सरकार को डाॅ. लोहिया की भाषा में राष्ट्रीय शर्म की सरकार कहेंगे और इंदिरा गांधी की सारी उपलब्धियों को ताक पर रखकर उन्हें आपात्काल की ‘काली’ कहेंगे और गरीबी हटाओ वाली ‘झांसे की रानी’ कहेंगे।
तात्कालिक मुद्दों पर घटिया बहस छेड़कर हम भारत की नई पीढ़ियों को गलत मार्ग पर ठेलने की कोशिश कर रहे हैं। कांग्रेस और भाजपा, दोनों के नेता आपस में मिलकर सार्थक संवाद क्यों नहीं करते? दोनों यदि इसी तरह सार्वजनिक दंगल करते रहे तो माना जाएगा कि वे कुल मिलाकर चीन के हाथ मजबूत कर रहे हैं।
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