लेह: रिंगजिन की उम्र 65 वर्ष है, मगर वह अभी भी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर ड्यूटी करना चाहते हैं और जितना भी संभव हो, भारतीय सेना की मदद करना चाहते हैं। वह लद्दाख में उन कई पोर्टर्स में से एक हैं, जिन्होंने 1999 में कारगिल संघर्ष के दौरान दुर्गम पहाड़ियों पर सेना के लिए जरूरत का सामान पहुंचाया था। युद्ध के समय पहाड़ पर सेना तक सामग्री पहुंचाने वाले इन कुलियों का भी भारत की जीत में योगदान रहा। उस समय किए उस बहादुरी के काम पर उन्हें आज भी गर्व है और वह अभी भी यह काम दोहराने के लिए तैयार हैं।
कारगिल संघर्ष के बाद रिंगजिन सेवानिवृत्त हो गए थे, लेकिन उनके अंदर अभी भी देश की सेवा करने का जज्बा कम नहीं हुआ है। उन्होंने कारगिल युद्ध के दौरान एक पोर्टर के रूप में खुद की सेवा दी थी जो उनके लिए प्रेरणा के साथ ही गर्व की बात भी है। उन्होंने दुश्मनों को खदेड़ने के लिए सेना तक पहाड़ी की चोटी तक भारी उपकरण और जरूर सामान पहुंचाया था।
उन्होंने कहा, मैं कारगिल संघर्ष के दौरान हमारे सैनिकों के लिए 20 किलो वजनी उपकरण लेकर पहाड़ों पर चढ़ा था।
रिंगजिन ने कहा कि जब भी अतीत में लड़ाई हुई है, लद्दाख के लोग सैनिकों के साथ रहे हैं और उन्होंने देश सेवा में अपना योगदान दिया है।
हाल के दिनों में एलएसी पर चीन व भारत के बीच तनाव बढ़ा हुआ है और चीनी पीएलए द्वारा किसी भी संभावित दुस्साहस को रोकने के लिए सुरक्षा बलों को जरूरी सामग्री के साथ सीमा के पास तैनात किया गया है। ऐसी परिस्थिति में लद्दाख के कई लोगों का कहना है कि वे देश की रक्षा के लिए पोर्टर (कुली) के रूप में काम करने के लिए तैयार हैं।
लद्दाख एक सीमावर्ती शहर है, जहां कई बार तनावपूर्ण स्थिति व संघर्ष देखने को मिलता है। यहां रिंगजिन जैसे लोगों ने पिछले संघर्षों में स्वयंसेवी बल के तौर पर बड़ी भूमिका निभाई है। इन लोगों ने सैनिकों के लिए पहाड़ों पर भारी उपकरणों को मुहैया कराते हुए सही मायने में देश की सेवा की है।
रिंगजिन का कहना है कि अगर सरकार आदेश देती है, तो लद्दाख में एलएसी पर सैनिकों की सहायता के लिए स्वयंसेवकों की कोई कमी नहीं होगी।
उन्होंने कहा, हम योगदान देने के लिए तैयार हैं। सरकार हमें आदेश दे। हम देश के लिए सब कुछ बलिदान करने के लिए तैयार हैं।
–आईएएनएस
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