इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का दावा हैं कि सरकारी अस्पतालों में कोरोना मरीजों के लिए 2500 बिस्तर और 239 वेंटिलेटर खाली हैं। सरकारी अस्पताल में कुल 3829 बिस्तरों में से 3164 बिस्तर पर आक्सीजन देने की सुविधा उपलब्ध है। कुल 250 वेंटिलेटर में से सिर्फ 11 पर ही मरीजों को रखा गया है। शेष वेंटिलेटर खाली हैं।
केजरीवाल की लगातार खुल रही पोल-
मुख्यमंत्री के दावों की पोल पिछले दो महीनों से लगातार खुल रही हैं। इसके बावजूद मरीजों को भर्ती नहीं करने, इलाज न करने या इलाज में लापरवाही बरतने का शर्मनाक सिलसिला जारी हैं। मुख्यमंत्री द्वारा फिर भी लगातार दावे किया जाना अमानवीय और शर्मनाक है।
मुख्यमंत्री के दावों की असलियत बताने वाले यह दो मामले ओर है। नन्द नगरी थाने के एसएचओ को ही राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल ने भर्ती करने से इंकार कर दिया।
एक अन्य मामले में धर्मेंद्र भारद्वाज रोते हुए अपनी मां के लिए वेंटिलेटर/ बेड की गुहार लगा चुके हैं।
कोरोना योद्धा एसएचओ का मामला-
कोरोना पाज़िटिव एस एच ओ अवतार सिंह रावत को शनिवार 23 मई को तेज़ बुखार (103) हुआ। वह अपने थाने के पास स्थित राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में गए।
जीटीबी एंक्लेव थाने के एसएचओ ने अस्पताल के सीएमओ से बात की। लेकिन डाक्टरों ने अवतार सिंह को भर्ती करने से इंकार कर दिया।
इसके बाद वरिष्ठ अफसरों ने आर्मी अस्पताल में भर्ती कराया। लेकिन वहां एस एच ओ को संतुष्टि नहीं हुई। फिर वह एम्स झज्जर में गए। वहां डाक्टर ने उनकी सुध नहीं ली।
एस एच ओ की बेटी ने लगाई गुहार-
एस एच ओ अस्पताल में बेड और सुविधाओं की कमी होने के कारण एक से दूसरे अस्पताल भटकते रहे।
24 घंटे तक इलाज न होने से परेशान एस एच ओ की बेटी नियति रावत ने रविवार शाम को प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, पुलिस कमिश्नर और उत्तर पूर्वी जिले के डीसीपी को टि्वट किया। जिसके बाद रविवार रात को एस एच ओ को राजीव गांधी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में भर्ती किया गया।
लोगों को मरने के लिए छोड़ दिया-
एस एच ओ की बेटी ने टि्वट में कहा कि यह अमानवीय है। आप ने लोगों को मरने के लिए छोड़ दिया है।
पुलिस एफआईआर दर्ज कर बचाए लोगों की जान-
पांच मई को सिपाही अमित राणा सांस लेने में तकलीफ से तड़पता हुआ अस्पतालों में भटकता रहा लेकिन किसी ने उसे भर्ती नहीं किया। युवा सिपाही अमित को अगर तुरंत वेंटिलेटर/आक्सीजन मिल जाता तो उसकी जान बच भी सकती थी।
सिपाही की मौत के मामले में डाक्टर और अस्पताल के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए थी। इलाज न करना, भर्ती न करना या इलाज में लापरवाही बरतना अपराध है जब तक ऐसा अपराध करने वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं की जाएगी। मरीजों की जान से खिलवाड़ करने का सिलसिला जारी रहेगा।
एफआईआर दर्ज करने के पुख्ता कारण-
पुलिस अफसरों को भी यह तो मालूम ही होगा कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तो दावा कर रहे हैं कि अस्पतालों में बिस्तर, वेंटिलेटर और आक्सीजन खाली हैं। ऐसे में पुलिस के पास उन डाक्टर और अस्पताल के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए पुख्ता कारण और ठोस सबूत है जो मरीजों का इलाज या भर्ती करने से इंकार कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री पर लगा दाग़ धुलेगा नहीं-
सिपाही अमित की मौत के बाद मुख्यमंत्री ने उसके परिवार को एक करोड़ रुपए दिए। लेकिन एक करोड़ रुपए देने से केजरीवाल पर लगा सिपाही की मौत का दाग़ धुलेगा नहीं।
कितनी अजीब बात है कि पुलिस वालों का जीते जी तो इलाज भी नहीं करते हैं और मरने के बाद एक करोड़ रुपए देते हैं।।
मां को आंखों के सामने मरते हुए कैसे देख लें-
यमुना विहार निवासी धर्मेंद्र भारद्वाज ने अपनी मां श्यामा शर्मा(71) को पटपड़गंज, मैक्स अस्पताल में 19 मई को भर्ती कराया था। 21मई को उनके कोरोना पाज़िटिव होने की रिपोर्ट आई।
धर्मेंद्र भारद्वाज ने रोते हुए अपनी पीड़ा का एक वीडियो 22 मई को वायरल किया। जिसमें मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और देश की राजधानी में महामारी के पीड़ितों के इलाज के लिए किए जाने वाले दावों की पोल खोली गई है।
वेंटीलेटर का इंतजाम करो-
कोरोना पाज़िटिव रिपोर्ट आने के बाद मैक्स अस्पताल ने धर्मेंद्र से कहा कि आप वेंटिलेटर/ बेड का इंतजाम कर लो, हमें ट्रीटमेंट की अथारिटी नहीं है।आपकी मां को शिफ्ट करना पड़ेगा। धर्मेंद्र ने अनेक अस्पतालों और कोरोना हेल्प लाइन समेत सभी जगह फोन किए लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।
खून के आंसू रोया बेटा –
वीडियो में रोते-रोते अपनी पीड़ा बयान कर रहे धर्मेंद्र ने कहा कि दिल्ली सरकार वेंटिलेटर/ बेड उपलब्ध होने के इतने बड़े-बड़े दावे करती हैं। विज्ञापन भी देती है। लेकिन यह सब दावे झूठे हैं। जमीनी हकीकत में यह सब जीरो हैं।
देश की राजधानी में हम इतना हेल्पलेस फील कर रहे हैं।
धर्मेंद्र ने कहा कि कोरोना पाज़िटिव के परिजन जो इस समस्या का सामना कर रहे हैं। ये समझिए उनकी आंखों से खून निकल रहा है यानी वह ख़ून के आंसू रो रहे हैं। लेकिन कहीं से भी कोई मदद नहीं मिल रही है।
धर्मेंद्र ने प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन से गुहार लगाई और पूछा कि अब ऐसे में हम अपनी आंखों के सामने अपने परिजनों को जाता हुआ देखेंगे क्या ? हम उन्हें तिल-तिल मरता देख रहे हैं। हम कुछ नहीं कर पा रहे हैं।
वीडियो वायरल करने का असर यह हुआ कि मैक्स में ही इलाज जारी है।
लेकिन मैक्स अस्पताल ने इस मामले में जो किया वह अमानवीय और संवेदनहीन व्यवहार ही नहीं है अपितु अपराध है।
गरीबों की दुर्दशा का अंदाजा लगाइए-
दिल्ली पुलिस कर्मियों यानी कोरोना योद्धाओं तक को भर्ती नहीं किया जा रहा है। अमीर मरीजों के परिजनों को भी इलाज के लिए रोना गिड़गिड़ाना पड़ रहा है। ऐसे में ग़रीब और आम कोरोना मरीजों की दुर्दशा का अंदाजा लगाया जा सकता है।
दावों का निकला दम-
मुख्यमंत्री दावा कर रहे हैं कि अगर कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ेगी तो उनके इलाज के लिए अस्पतालों में व्यापक व्यवस्था की गई हैं।
लेकिन जो सरकार, अस्पताल और डाक्टर अभी बहुत ही सीमित/कम संख्या में भर्ती मरीजों का ही इलाज करने में ही विफल हो गई है। ऐसे में वह मरीजों की बेतहाशा वृद्धि पर क्या ख़ाक इलाज करेगी।
मुख्यमंत्री का मुख्य और एकमात्र लक्ष्य सिर्फ और सिर्फ मरीजों के इलाज की व्यवस्था करना होना चाहिए जिसमें वह अभी तक बुरी तरह फेल हो गए हैं।
टेस्ट के लिए गिड़गिड़ाना-
अभी हालात यह हैं कि जिस कोरोना पीड़ित को सरकार खुद अस्पताल में भर्ती करती है उसका इलाज कराने और परिवार के अन्य सदस्यों के टेस्ट कराने के लिए भी लोगों को गिड़गिड़ाना पड़ रहा है।
दूसरी ओर ऐसे कोरोना पॉजिटिव मरीजों के मामले भी सामने आ रहे हैं कि जिसमें वह खुद अस्पताल में भर्ती होने जाते हैं तो उनको भर्ती करने से इंकार कर दिया जाता है।
यह हकीकत मुख्यमंत्री के कोरोना से निपटने के लिए किए गए इंतजामों के दावों की पोल खोलने के लिए काफी है।
इन मामलों से पता चलता है कि उप-राज्यपाल/ मुख्यमंत्री/ सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही है। इसलिए यह सिलसिला जारी है और कोई सुधार नहीं हो रहा है।
मुख्यमंत्री बताएं क्या कार्रवाई की-
मुख्यमंत्री बताएं कि इलाज़ न करने या लापरवाही बरतने वाले कितने डाक्टर, नर्स के खिलाफ उन्होंने कार्रवाई की।
मुख्यमंत्री को यह सब जानकारी जनता को देनी चाहिए।
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कोरोना के बारे में अभी जो जानकारी या आंकड़े आदि देते हैं वह काम तो सरकार या अस्पताल का कोई अदना सा प्रवक्ता भी कर सकता है।
सेवा भाव सबसे जरुरी-
मुख्यमंत्री का काम होता है लोगों की परेशानी को सुन कर उनके इलाज के लिए उचित व्यवस्था करना। डाक्टरों और नर्सिंग स्टाफ की सुरक्षा के लिए पीपीई समेत सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराना।
सुरक्षा उपाय /उपकरण/ सुविधा/ व्यवस्था के बावजूद भी अगर कोई डाक्टर या नर्स संक्रमण के भय या किसी अन्य कारण से कोरोना मरीजों का इलाज करने में अनिच्छा दिखाता है तो उसे जबरन उस काम में न लगाया जाए। क्योंकि बिना सेवा भाव वाले लोगों के कारण ही मरीजों की जान को खतरा पैदा हो सकता है।
डाक्टर खुल कर सामने आए-
अगर सरकार द्वारा डाक्टरों और नर्सिंग स्टाफ आदि के लिए सुरक्षा किट या अन्य जरूरी सामान उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है। डाक्टरों को क्या-क्या समस्या/दिक्कत पेश आ रही हैं।
तो डाक्टरों को यह बात खुल कर मीडिया में बतानी चाहिए। ताकि लोगों के सामने यह साफ़ हो जाए कि कसूरवार डाक्टर है या सरकार।
वरना अभी तक तो यही बात सामने आई हैं कि डाक्टर इलाज करना तो दूर मरीजों को देख भी नहीं रहे हैं। इस तरह डाक्टर मरीजों की जान बचाने के अपने धर्म का पालन न करके अपराध भी कर रहे हैं।
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