इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली पुलिस के कमिश्नर रहे वेद मारवाह की पेशेवर काबिलियत के अनेक किस्से पुलिस अफसर सुनाते हैं। उनकी काबिलियत, बहादुरी और दमदार नेतृत्व सक्षमता की मिसाल देते है।
वेद मारवाह के बाद के दौर के सिर्फ गिने चुने ही आईपीएस या कमिश्नर ऐसे रहे हैं जिनको पेशेवर काबिलियत और कर्तव्य पालन में ईमानदारी के लिए याद किया जाता है।
दमदार व्यक्तित्व, काबिलियत की मिसाल –
वेद मारवाह 1985 से 1988 तक दिल्ली पुलिस में कमिश्नर के पद पर रहे।
इस दौरान उनके मातहत रहे पुलिसवालों के पास उनकी काबिलियत, बहादुरी और ईमानदारी के किस्सों की भरमार है।
आईपीएस को फटकार लगाई-
13 अगस्त 1985 का दिन दिल्ली पुलिस स्वतंत्रता दिवस के लिए फुल ड्रेस रिहर्सल कर रही थी। लालकिले में लिफ्ट के सामने का स्थान जहां पर प्रधानमंत्री की कार आ कर रुकती है।
तत्कालीन पुलिस कमिश्नर वेद मारवाह और सेना के मेजर जनरल अपने अपने मातहतों के साथ मौजूद थे। उत्तरी रेंज के तत्कालीन अतिरिक्त आयुक्त राजेंद्र मोहन सादे कपड़ों (टी शर्ट) में यानी पुलिस की वर्दी के बिना वहां पहुंच गए।
उनको देखते ही वेद मारवाह ने कहा ” टुडे इज फुल ड्रेस रिहर्सल, सी माई एडशिनल सीपी हू इज रोमिंग अराउंड इन सिवीज ” यानी आज फुल ड्रेस रिहर्सल है और देखिए हमारे अतिरिक्त पुलिस आयुक्त राजेंद्र मोहन सादे कपड़ों में घूम रहे हैं।
दिल्ली पुलिस के सेवानिवृत्त इंस्पेक्टर बलबीर सिंह उस समय वहां मौजूद थे। बलबीर सिंह उस समय ट्रैफिक पुलिस में सब इंस्पेक्टर थे।
कमिश्नर की कार तो चांदी की बनवा दोगे –
वह थानों की साफ-सफाई और पुलिस की गाड़ियों के रख रखाव पर भी पूरा ध्यान देते थे। अफसरों को कह दिया था अगर तुम्हारी गाड़ी धुंआ छोड़ती दिखी तो तुम को उसी समय हटा दिया जाएगा।
वेद मारवाह ने कहा कि अगर तुम्हें (एसएचओ) कहूं कि मेरी कार की मरम्मत करा दो तो तुम मेरी कार को तो चांदी की बनवा दोगे। लेकिन अपनी गाड़ी को ठीक भी नहीं रखते हो।
कोतवाली थाने में दौरे के गंदगी पाए जाने पर एसएचओ और एसीपी को तुरंत पद से हटा लिया था।
उप राज्यपाल की सिफारिश नहीं मानी।-
तत्कालीन उपराज्यपाल एच के एल कपूर की सुरक्षा में तैनात एक पीएसओ तरक्की पा कर इंस्पेक्टर बन गया। उप राज्यपाल ने वेद मारवाह से उसे थाने में तैनात करने को कहा। वेद मारवाह ने कहा देखता हूं इस तरह काफी समय तक टालते रहे। आखिरकार उसे संसद मार्ग थाने में अतिरिक्त एस एच ओ के पद पर तैनात तो कर दिया लेकिन इस शर्त के साथ कि वह वोट क्लब पर होने वाले प्रदर्शन और धरना की ड्यूटी ही करेगा।
मीटिंग में देरी पर तबादला-
ट्रैफिक पुलिस के तत्कालीन एसीपी डीपी वर्मा एक मीटिंग में देरी से पहुंचे । वेद मारवाह ने उसी समय उनका तबादला पुलिस ट्रेनिंग स्कूल कर दिया। इसके बाद वर्मा का तबादला अंडमान निकोबार द्वीप कर दिया गया।
दंगों में घायल-
सदर बाजार में 1974 में हुए दंगों में घायल वेद मारवाह इलाज के लिए राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती हुए थे उस समय वह अतिरिक्त पुलिस आयुक्त/डीआईजी थे।
अस्पताल में कमरे के बाहर उन्होंने तख्ती लगा दी “डोंट डिस्टर्ब, विजीटर्स नॉट अलाउड”।
आज तो आलम यह है कि आईपीएस खुद मातहतों को अपनी और अपने परिवार की ही नहीं कुत्तों तक की सेवा में लगा देते हैं।
दंगों पर बहादुरी से काबू पाने के लिए वेद मारवाह को राष्ट्रपति के वीरता पदक से सम्मानित किया गया था।
काबिलियत के कारण डटे रहे-
1987 में रुस के उप- प्रधानमंत्री के भारत दौरे के दौरान वीवीआईपी रुट (हुक्मीबाई मार्ग) पर उनके काफिले के बीच में वेद मारवाह की कार घुस गई थी। वेद मारवाह की कार में ही तत्कालीन मंत्री नटवर सिंह भी सवार थे। हरियाणा कांग्रेस के दिग्गज नेता भजन लाल की कार भी वेद मारवाह की कार के पीछे पीछे थी। ये सभी रुस के उप प्रधानमंत्री के स्वागत समारोह में शामिल होने राष्ट्रपति भवन जा रहे थे। इसे सुरक्षा में चूक मानते हुए वेद मारवाह को पुलिस कमिश्नर के पद से हटाने की मांग उठाई गई। इस मामले में उच्च स्तरीय जांच भी हुई।
ब्लैक मनी नहीं सिर्फ व्हाइट मनी –
लंदन में दूतावास में तैनात होने के दौरान वेद मारवाह ने एक कार खरीदी थी जिसे वह भारत ले आए। वेद मारवाह ने बाद में उस कार को बेचना चाहा। कार खरीदने के इच्छुक एक व्यक्ति ने उनसे पूछा कि कितना पैसा सफेद और कितना काले धन के रूप में देना होगा। इस पर वेद मारवाह ने कहा कि जितनी कीमत है वह सारी सफेद धन के रूप में देना होगा।
राज्यपाल-
आईपीएस के 1956 बैच के वेद प्रकाश मारवाह मूलतः पश्चिम बंगाल काडर के थे बाद में केंद्र शासित यानी यूटी काडर में आ गए। वेद मारवाह नेशनल सिक्योरिटी गार्ड के महानिदेशक (1988-90) भी रहे।
सेवा निवृत्त होने के बाद वह मणिपुर, मिजोरम और झारखंड के राज्यपाल के पद पर भी रहे।
87 वर्षीय वेद मारवाह का 5-6-2020 को बीमारी के कारण गोवा में निधन हो गया।
ईमानदार, काबिल IPS अफसरों का अकाल-
दिल्ली पुलिस में आज़ के दौर में आईपीएस अफसरों से उनकी तुलना की जाए तो साफ़ पता चल जाएगा कि कमिश्नर और आईपीएस में पेशेवर काबिलियत में कितनी जबरदस्त गिरावट आई है। यह गिरावट ही अपराध और पुलिस में भ्रष्टाचार बढ़ने की मुख्य वजह है।
कसम तोड़ने वाले को ईमानदार कैसे मान लें-
जो पुलिस अफसर लूट, झपटमारी, हत्या की कोशिश जैसे अपराध को ही सही दर्ज नहीं करते या हल्की धारा में दर्ज़ करते हैं। मातहतों को अपने निजी काम में लगाते हैं।
उनको ईमानदार भला कैसे माना जा सकता है। अपराध को दर्ज़ न करके एक तरह से अपराधी की मदद करने वाले पुलिसवाले तो अपराधी से भी बड़े गुनाहगार है।
यह आईपीएस और मातहत पुलिस वाले तो भर्ती के समय बकायदा ईमानदारी से कर्तव्य पालन की कसम खाते हैं। इसके बाद कसम के विपरीत आचरण करना अक्षम्य अपराध है।
कुत्तों वाला आईपीएस-
दक्षिण पूर्वी जिले के तत्कालीन डीसीपी आईपीएस रोमिल बानिया ने अपने निजी कुत्तों के लिए डीसीपी दफ्तर में कमरे बनवाए, कुत्तों के लिए कूलर लगवाए और मातहत पुलिस वालों को कुत्तों की सेवा में लगा दिया था। लेकिन तत्कालीन पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक ने रोमिल बानिया के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। जबकि कमरे भ्रष्टाचार और सरकारी धन के दुरुपयोग से ही बनवाए गए थे। यह मातहत पुलिस वालों को गुलामों की तरह इस्तेमाल करने का भी उदाहरण है।
रोमिल बानिया इस समय अतिरिक्त आयुक्त (सामान्य प्रशासन) जैसे महत्वपूर्ण पद पर हैं।
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