नई दिल्ली| अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) ने केंद्र सरकार के मंत्रियों से विभिन्न किसान यूनियनों की हुई बातचीत को भ्रम फैलाने वाली करार दिया है। किसानों के निकाय ने केंद्रीय मंत्रियों की ओर से बातचीत और फोटो साझा किए जाने को किसानों की समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए एक भ्रामक रणनीति करार दिया। इसने दावा किया कि किसान यूनियनों की बैठक और केंद्रीय प्रतिनिधियों से बात करने से संघर्षरत किसानों का प्रतिनिधित्व नहीं होता।
किसान निकाय ने आरोप लगाया कि वास्तव में, उन यूनियनों के संदर्भ में सरकार ‘लॉबिस्टों और निहित स्वार्थों’ से लोगों को मूर्ख बनाने के लिए समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रही है।
इसका दावा है कि मंत्रियों द्वारा जारी किए गए बयानों से यह साबित होता है कि ये तीन अधिनियम केवल कृषि बाजारों के ‘कॉर्पोरेट कैप्चर’ की सुविधा के लिए बनाए गए हैं।
संगठन की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है, “सरकार दावा कर रही है कि इस वर्ष के पहले पांच महीनों में 36 अरब डॉलर का विदेशी प्रत्यक्ष निवेश आया है, जो कि पिछले वर्षों की तुलना में अधिक है। इसमें कहा गया है कि बड़ी मात्रा में फसलें खराब होने के कारण तकनीकी नुकसान हुआ है। नुकसान, प्रौद्योगिकी, सुविधाएं और बुनियादी ढांचे के ये सवाल किसानों की मांगों का मुख्य आधार हैं। जबकि सरकार चाहती है कि यह कॉर्पोरेट हाथों में जाए।”
किसान निकाय ने तर्क देते हुए कहा कि कृषि में निजी निवेश, सरकार के निवेश के स्थान पर और किसानों की मदद से सरकारी मंडियों और गोदामों को पूरी तरह से खत्म कर देगा।
एआईकेएससीसी के कार्यकारी समूह ने गांव, तहसील और जिला स्तर पर विरोध प्रदर्शन करने के लिए सभी विरोध कार्यों के समन्वय और अभियान को तेज करने का आह्वान किया है।
इसके लिए इस महीने कोलकाता में 16, मणिपुर में 19, मुंबई में 22 और पटना में 29 तारीख को रैली करने की भी योजना है।
–आईएएनएस
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