इंद्र वशिष्ठ
कोरोना मरीज अस्पताल/बिस्तर, ऑक्सीजन और दवाओं के बिना तड़प तड़प कर मर रहे हैं। दूसरी ओर दिल्ली सरकार ने जजों के बाद अब अपने अफसरों के इलाज के लिए पांच सितारा होटलों को अस्पताल में तब्दील करने का आदेश जारी कर दिया है।
इससे पता चलता है कि अमानवीय सरकारों यानी नेताओं की नजर में सिर्फ़ वीवीआईपी, मंत्रियों, जजों और नौकरशाहोंं की जान बचाना ही सबसे महत्वपूर्ण है और आम लोगों की जान की उसके लिए कोई कीमत नहीं है।
अस्पताल में प्रधानमंत्री, मंत्रियों आदि के लिए तो कमरे/ बेड रिजर्व रखे ही जाते हैंं। हालांकि संविधान में सबको बराबरी का अधिकार दिया गया है लेकिन यह जमीन पर और व्यवहार में कहीं नहीं दिखाई देता। जिन्हें लोग चुन कर सत्ता सौंपते हैं वहीं नेता ऐसे गिरगिट की तरह रंग बदल लेते हैं कि वह खुद को राजा मान लोगों के साथ गुलाम प्रजा जैसा व्यवहार करते हैं।
पांच सितारा होटल बना दिए अस्पताल-
दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य विभाग के विशेष सचिव एस एम अली द्वारा इस बारे मेंं 27 अप्रैल को आदेश जारी किया गया। चार होटलों के दौ सौ से ज्यादा कमरे बुक कर दिए गए हैं। विवेक विहार के जिंगर होटल,शाहदरा के पार्क प्लाजा और लीला एमबीएंश होटल के क्रमशः 70,50,50 कमरे बुक किए गए हैं। हरि नगर के गोल्डन टयूलिप होटल के सारे कमरे बुक किए गए है।
दिल्ली सरकार के अलावा, ऑटोनमस बॉडी, निगमों और लोकल बॉडी के अफसरों और उनके परिजनों के इलाज के लिए सरकार ने यह विशेष सुविधा उपलब्ध कराई है। राजीव गांधी सुपर स्पेशलिस्ट और दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट को इन होटलों/अस्पताल में भर्ती अफसरों और उनके परिजनों के इलाज की जिम्मेदारी सौंपी गई है।
सरकार ने पहले दिल्ली हाईकोर्ट के जजों और उनके परिजनों के इलाज के लिए पांच सितारा अशोक होटल के 100 कमरों को अस्पताल में तब्दील कर दिया था। जिसे हाईकोर्ट की नाराजगी के बाद रद्द कर दिया गया। हालांकि हाईकोर्ट ने खुद ही जजों और परिजनों के इलाज के लिए इंतजाम करने का सरकार से अनुरोध किया था।
जान बचाने को गिडगिडा रहे लोग-
दिल्ली में मरीजों को जहां ऑक्सीजन के एक-एक सिलेंडर और अस्पताल में बेड,दवाओं के लिए भटकना पड़ रहा है। ऐसे में जजों, अफसरों या अन्य वीवीआईपी के लिए पांच सितारा होटलों में इलाज की विशेष सुविधा उपलब्ध कराना सरकार के संवेदनहीन, शर्मनाक और भेदभाव करने वाले चेहरे को उजागर करता है।
दिल्ली सरकार आम मरीजों के लिए रामलीला मैदान,छतरपुर और यमुना पार अस्थायी अस्पताल बनाने में लगी हुई है। लेकिन यह अस्पताल तैयार होने में दस बारह दिन लगेंगे।
सरकार ने जजों, अफसरों के इलाज के लिए तुरंत होटलों को अस्पताल में तब्दील कर दिया। जबकि यह होटल उसे तुरंत आम मरीजों के लिए उपलब्ध कराने चाहिए। जिससे तुरंत लोगों की जान बचाई जा सकती है।
वीवीआईपीपना अब तो छोड़ दो-
महामारी के दौर में तो नेताओं और अफसरों को वीवीआईपी संस्कृति की मानसिकता से बाहर निकलना चाहिए। जहां आम आदमी का इलाज हो रहा है वहीं पर सभी वीवीआईपी और अफसरों का भी होना चाहिए।
लाट साहब का राज-
वैसे दिल्ली में अब सरकार का मतलब लाट साहब यानी उपराज्यपाल हो गया। सही मायने में राजधानी में इलाज के बिना मर रहे लोगों की मौत के लिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ साथ प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री और उपराज्यपाल भी जिम्मेदार है।
प्रधानमंत्री भी जिम्मेदार-
दिल्ली विशेष दर्जा प्राप्त प्रदेश है इसलिए उपरोक्त सभी की भी बराबर जिम्मेदारी है। केंद्र सरकार और दिल्ली के सातों सांसद मुख्यमंत्री पर ही सारा ठीकरा फोड कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड सकते। महामारी के दौर में सियासत करने की बजाए सांसदों को केंद्र सरकार से मरीजों की जान बचाने के लिए लिए युद्ध स्तर पर इंतजाम कराने के साथ ही एम्स, सफदरजंग और राममनोहर लोहिया अस्पताल में भी कोरोना मरीजों के लिए ज्यादा से ज्यादा बिस्तरों का इंतजाम कराना चाहिए।
आज के हालात के लिए जितना केजरीवाल कसूरवार है उतना ही प्रधानमंत्री भी कसूरवार है। प्रधानमंत्री समेत पूरा मंत्रिमंडल दिल्ली में ही रहता है। उनकी नाक के नीचे दिल्ली में लोग बिना इलाज मरते रहे और वह आंखें मूंद चुनाव में मस्त रहे। प्रधानमंत्री को अगर लोगों की जान की जरा भी परवाह होती तो वह चुनावी रैलियां कभी नहीं करते। जो प्रधानमंत्री भी अपनी राजधानी में ही लोगों को ऑक्सीजन उपलब्ध न करा पाए वह भला पूरे देश के लोगों की जान कैसे बचाएगा?
एफआईआर दर्ज हो-
ऑक्सीजन के अभाव में हो रही मौतों के लिए तो मुख्यमंत्री, उपराज्यपाल, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और स्वास्थ्य मंत्रियों के अलावा स्वास्थ्य सचिवों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज किए जाने चाहिए। क्योंकि लोगों की जान बचाने के लिए स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराना इन सभी का कर्तव्य है।
केजरीवाल को सियासी ऑक्सीजन-
उपराज्यपाल को अधिकारों की ज्यादा ताकत देकर केंद्र सरकार ने अपनी ओर से तो केजरीवाल के पर कतरने की कोशिश की है। लेकिन इस बुरे दौर में यहीं बात अब केजरीवाल के सियासी जीवन के लिए ऑक्सीजन का काम कर जाएगी। क्योंकि दिल्ली की खराब हालत के लिए अब उपराज्यपाल को ही जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
मैजिस्ट्रेट ने डॉक्टर को दी चेतावनी-
दिल्ली में महामारी के दौर में नौकरशाही कैसे काम कर रही है। इसका अंदाजा यमुना विहार के पंचशील अस्पताल के डायरेक्टर वी के गोयल के डर से लगाया जा सकता है। डॉक्टर गोयल के मुताबिक उनके अस्पताल में कोरोना के 40 मरीज भर्ती हैं। अस्पताल में ऑक्सीजन सप्लाई करने वाले व्यक्ति ने 27 अप्रैल को ऑक्सीजन उपलब्ध कराने में असमर्थता जताई। इस पर उन्होंने सरकार के नोडल अधिकारी समेत सभी से ऑक्सीजन उपलब्ध कराने की गुहार लगाई। डॉक्टर गोयल के मुताबिक तीन बजे उन्हें उत्तर पूर्वी जिले के एडीएम शुभांकर घोष ने नोटिस भेज दिया कि पांच बजे तक ऑक्सीजन का इंतजाम खुद कर लो। अगर इंतजाम नहीं किया तो आपदा प्रबंधन एक्ट आदि कानून के तहत आपके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इस पर घबरा कर डॉक्टर ने वीडियो जारी कर यह सब उजागर कर दिया। डॉक्टरों की संस्थाओं को इस मामले को जोरदार तरीक़े से उठाना चाहिए।
डीएम में दम है तो करेंं कार्रवाई-
एडीएम का यह आदेश अगर कानूनी रुप से सही है तो ऐसे अन्य मामलों में डीएम/एडीएम बत्रा, जयपुर गोल्डन,गंगाराम और मैक्स आदि अस्पतालों के खिलाफ भी ऐसी कार्रवाई करने की हिम्मत क्यों नहीं दिखाते।
बडे निजी अस्पतालों में तो ऑक्सीजन संकट होने पर तुरंत ऑक्सीजन सप्लाई की व्यवस्था की जाती है। दूसरी ओर छोटे अस्पताल वालों को इस तरह चेतावनी देकर डराया जाता है।
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