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क्या उत्तर प्रदेश में बिहार की तरह शराबबंदी संभव है?

 

तहसीन मुनव्वर,

अब 1 अप्रैल 2017 के बाद से राष्ट्रीय राजमार्गों और राज्य राजमार्गों पर पांच सौ मीटर के दायरे में शराब की दुकानों को बंद करना होगा। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति टी एस ठाकुर की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने राज्य सरकारों के प्रति गंभीर नाराजगी जताई और कहा कि शराब पीकर राजमार्ग पर गाड़ी चलाने के कारण हर साल एक लाख पचपन हजार लोग मारे जाते हैं और आप राजमार्गों पर दुकानें खोलने का लाइसेंस दिए जा रहे हैं। पहाड़ी क्षेत्रों का रोना रोते हुए एक राज्य के शराब व्यापारीयों के वकील ने जब कहा कि पहाड़ी क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति के कारण उन्हें सही जगह नहीं मिल पाएगी और दुकानें लोगों की पहुंच से दूर हो जाएंगी तो इस पर नाराज होते हुए पीठ ने कटाक्ष किया कि शराब की फिर ‘होम डिलिवरी’ क्यों नहीं शुरू कर देते?

 

बिहार में शराबबंदी करवाने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से बहुत खुश हैं। उन्होंने कहा कि बिहार में शराबबंदी के बाद से सड़क हादसों और अपराध में कमी आई है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि शराब राष्ट्रीय राजमार्ग पर ही नहीं बल्कि पूरे देश में बंद होनी चाहिए। वह तो यहां तक कह चुके हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नोटबंदी के बाद शराबबंदी के बारे में सोचें क्योंकि वह गुजरात से हैं जहाँ बहुत समय से शराबबंदी है। इससे पहले दिल्ली सरकार ने सार्वजनिक स्थानों पर शराब पीने वालों पर पांच हजार रुपये का जुर्माना लगाने के अलावा शराब की दुकान के परिसर में शराब पीता मिलने पर दुकान चलाने वाले पर कार्रवाई करने की बात कही थी। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के सख्त कार्रवाई के आदेश के बाद दिल्ली पुलिस भी इसे लेकर हरकत में आ चुकी है।

 

दरअसल हमारे यहां शराब को बढ़ावा देने में फिल्मों और टेलीविजन का बड़ा रोल है। “कपिल शर्मा शो” और भाभी जी घर पर हैं जैसे सीरियल तक में शराब को किसी न किसी बहाने डाल दिया जाता है। यह तब है जब हमारे यहां सिगरेट पीते हुए दिखाने से पहले चेतावनी दिए जाना जरूरी हो गया है, लेकिन शराब के मामले में ऐसा कुछ नहीं है। आप किसी भी सीरियल या फ़िल्म को देख लीजिए इस में जबरन शराब को थोपा जाता महसूस होगा जबकि स्क्रिप्ट की जरूरत भी नहीं होगी। फिल्म में एक गाना नई पीढ़ी की मस्तियों के हवाले से शराब या नशे की भेंट जरूर होगा। एक ज़माने में इसी प्रकार धुम्रपान को हमारी फिल्मों ने जगह दी थी जिससे हम आज इस मुकाम पर पहुंच चुके हैं कि हर साल लाखों लोग धूम्रपान से होने वाली बीमारियों से मौत के मुंह में पहुंच जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट को इस दिशा में भी ध्यान देना चाहिए और विशेष रूप से उन सभी फिल्मी सितारों को ऐसी फिल्मों और गीतों से खुद को मुक्त कर लेना चाहिए जिनका उद्देश्य केवल शराब को बढ़ावा देना ही होता है।

 

फिल्मी सितारों को विशेष रूप से यह बात समझनी होगी कि आज की युवा पीढ़ी उनके मुताबिक खुद को ढालने लगती है। यह हमारे समय की त्रासदी है कि आज के युवाओं के लिए वह राष्ट्रीय हीरो उदाहरण नहीं हैं जिन्होंने देश के लिए जानें कुर्बान कर दीं, न ही वे धार्मिक व्यक्तित्व उनके हीरो हैं जो हमें जीवन जीने का संदेश सिखा गए बल्कि आज की ‘डाटा पैक’ में गिरफ्तार नई पीढ़ी इन फिल्मी सितारों के हिसाब से अपने हाव भाव और चाल चलन तय करती है जो बड़े पर्दे पर एक अलग कृत्रिम दुनिया की तस्वीर पेश करते हैं।

 

अगर हम गौर करें तो हमारे समाज में कई अपराधों की जड़ में शराब है। हम अगर नोटबंदी की तरह शराबबंदी नहीं कर सकते हैं तो कम से कम शराब का महिमामंडन करने की प्रवृत्ति पर तो रोक लगा ही सकते हैं। यह भी कितनी हैरान करने वाली बात है कि फिल्मों को लेकर ज़रा सी बात पर कोहराम मचा देने वाले वह संगठन जो हर धर्म के प्रतिनिधित्व का दावा करते हैं, शराब के खिलाफ गुस्सा और विरोध नहीं दिखाते। इसका साफ सा मतलब है कि शराब लॉबी बहुत मजबूत है और वह हर तरह से इतनी ताकत रखती है कि अपने खिलाफ उठने वाली आवाज़ों को संभाल सके। यही नहीं शराब बनाने वाली कंपनियां लोगों को शराब की तरफ खींचने के लिए अपने ‘ब्रांड’ के नाम पर ही कुछ और सामान बनाकर उनके विज्ञापन के सहारे लोगों को शराब की ओर आकर्षित करने की कोशिश करती हैं। इस छाया विज्ञापन पर भी प्रतिबंध लगाना चाहिए क्योंकि अगर हम खोजने जाएं तो शायद ही यह उत्पाद सब के लिए बाजार में उपलब्ध होते हों क्योंकि उनका मूल व्यवसाय तो शराब ही बनाना होता है। इसके अलावा कोर्ट को इस पर भी ध्यान देना चाहिए कि शराब के नाम इस प्रकार रखे जाते हैं जिनसे उन्हें लेकर सकारात्मक सोच बने। शराब का नाम ‘टीचर’ रखना कहां तक उचित है?

 

एक बात तो तय है कि शराब के खिलाफ देश में एक नई सोच तेजी से परवान चढ़ रही है। इससे पहले उत्तर प्रदेश चुनाव में कोई और राजनीतिक पार्टी इस मामले को उचक ले, उत्तर प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री अगर अपने राज्य में शराबबंदी को लेकर कोई घोषणा कर देते हैं तो उनके लिए यह एक बहुत बड़ा राजनीतिक दांव होगा जहाँ धर्म और जाति से ऊपर उठकर लोग उनके समर्थन में आ सकते हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के अनुसार देश में सबसे अधिक लगभग 35 राष्ट्रीय राजमार्ग उत्तर प्रदेश में हैं जिनकी लंबाई लगभग आठ हजार किलोमीटर होगी। इस के अलावा सौ के करीब राज्य राजमार्ग भी हैं जिनकी लंबाई भी लगभग इतनी ही होगी। ऐसे में अगर इन राजमार्गों पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से शराब की दुकानों को लेकर रोक लग ही रही है और उन्हें राजमार्गों से पांच सो मीटर दूर ले जाए जाने के लिए कहा जा रहा है तो क्या यह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिए सुनहरा मौका नहीं है कि वह पूरे उत्तर प्रदेश में शराबबंदी की घोषणा कर दें। हमें नहीं भूलना चाहिए कि शराब घरों को नष्ट करती आई है। हत्यायें तक शराब के नशे में होती हैं। महिलाओं के खिलाफ हिंसा और अपराध में शराब का बड़ा योगदान होता है। बहुत से लोग शराब के नशे में अपनी पत्नियों को तलाक तक दे देते हैं। मर्दों की शराब की लत के कारण महिलाओं का जीवन प्रभावित होता रहा है। इस तरह का फैसला महिला मतदाताओं को उनकी पार्टी के पक्ष में मोड़ने का काम कर सकता है। साथ ही अखिलेश यादव उन मुस्लिम मतदाताओं को वापस अपने पाले में ला सकते हैं जो उनकी सरकार के दौरान हुए मुस्लिम विरोधी दंगों के कारण उनसे छिटक रहे हैं। शराब पीकर वाहन चलाने की वजह से दुर्घटनाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट का आदेश भी उनके सामने है।

 

ऐसे में अखिलेश यादव के पास यह एक अच्छा मौका है कि वह नीतीश कुमार की राह पर चलते हुए शराबबंदी की घोषणा कर दें। लेकिन सवाल यही है कि क्या अखिलेश यादव उस पूरी शराब लॉबी के खिलाफ खड़े हो सकते हैं, जो किसी भी चुनाव में बहुत अहम भूमिका निभाती है। क्या नोटबंदी के बाद की स्थिति में वह ऐसे लोगों का दामन छिटक कर अपना अलग राजनीतिक राजमार्ग बनाने की सोच सकते हैं जिस पर केवल पांच सौ मीटर दूर नहीं बल्कि कहीं भी शराब की कोई दुकान न हो…!

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