लखनऊ: गोरखपुर, लखीमपुर और आगरा को भाजपा के लिए परेशानी का सबब बताया गया था, लेकिन गुरुवार को आए विधानसभा चुनाव के नतीजे साफ बताते हैं कि लोगों के लिए इन शहरों की घटनाओं का भगवा पार्टी को वोट देने के उनके फैसले पर कोई असर नहीं पड़ा। गोरखपुर पिछले साल उस समय सुर्खियों में आया था, जब कानपुर के एक व्यवसायी मनीष गुप्ता की कथित तौर पर उनके होटल में छापेमारी के दौरान पुलिस द्वारा पीटे जाने के बाद मौत हो गई थी।
विपक्ष ने इस घटना को राज्य में ‘कानून-व्यवस्था’ की स्थिति के उदाहरण के रूप में इस्तेमाल करने की जल्दी की।
हालांकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने फौरन मामले को सीबीआई को सौंप दिया और गुप्ता की विधवा को मुआवजा और नौकरी दे दी। मामला स्वाभाविक रूप से दब गया और गोरखपुर ने अब भाजपा को क्लीन स्वीप कर दिया है और आदित्यनाथ ने अपना पहला विधानसभा चुनाव काफी अंतर से जीता है।
पिछले साल अक्टूबर में लखीमपुर की घटना हुई थी, जब केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा के स्वामित्व वाली एक एसयूवी ने विरोध प्रदर्शन से लौट रहे चार किसानों को कुचल दिया था।
इस घटना ने किसानों के आंदोलन को हवा दी, क्योंकि विपक्षी दल पीड़ित परिवारों के शोक को भुनाने के लिए दौड़ पड़े।
आशीष मिश्रा, जिन्हें गिरफ्तार किया गया था, हाल ही में जमानत पर रिहा हुए, लेकिन लखीमपुर ने जाहिर तौर पर इस घटना को पीछे छोड़ दिया और सभी सीटों पर भाजपा के लिए मतदान किया।
आगरा में एक दलित युवक अरुण वाल्मीकि की पुलिस हिरासत में मौत भी विपक्षी राजनीति के लिए चारा बन गई, लेकिन अब, जब आगरा की सभी सीटों पर भाजपा ने जीत हासिल कर ली है, तो यह घटना ठंडे बस्ते में चली गई है।
भाजपा के राज्य उपाध्यक्ष विजय पाठक ने कहा, “इन घटनाओं में योगी आदित्यनाथ सरकार ने जिस तरह से कार्रवाई की, वह और भी महत्वपूर्ण हो गया। आरोपियों को गिरफ्तार किया गया, पीड़ितों को मुआवजा दिया गया, बिना किसी दबाव के जांच जारी रही। लोग समझ गए कि दोषियों से निपटने के लिए सरकार कुछ भी छिपाना नहीं चाहती थी।”
–आईएएनएस
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