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जब गांधीगिरी पर भारी पड़ी बाबागिरी!

अंकुर उपाध्याय,

हमारा देश ओर किसी विभाग मे ओव्वल हो ना हो पर अन्धविश्वास मे सबसे आगे है! हो भी क्यो ना आखिर हम उस देश के वासी हैं जिस देश मे शनी रहते हैँ ! जिनकी दृष्टी एक बार किसी पर पड जाए तोह वह इंसान जमीन से आसमान पर पहुँच जाए , ऐसा ही कुछ मान्ना मेरे अजीज मित्र श्री जगमोहन सुरी का था! अच्छा खासा मेहनत करके अपना ओर अपने परिवार का पेट पाल रहे थे अचानक पड गए बाबा के मोह जाल मे ! पैसा तो गया ही साथ मे सुख ओर शांति दोनो छीन गई!

यह बात सन 2014 की है वह दुसरी बार था जब मैं सुरी जी से मिला था! चेहरा लाल एवम् खिला हुआ! बातों मे जोश बेहिसाब!

सुरी जी भाभी जी माइका गई हैँ क्या, मजाकिया अन्दाज मे मैने पुछा! ठहाके लगाते हुए ऊँहोने कहा नहीं!
कुछ देर बाद पता चला शनी देव दाती माहाराज के वहां मत्था टेक कर आए हैँ हमारे सुरी जी! बदले मे 5 लाख के बदले 5.50 लाख मिले!

एक वह दिन था ओर अाज एक दिन ह, बाबा पे आस्था रखने वाले सुरी जी की मेहनत ओर खुन पसिने से कमाई हुई सारी सम्पत्ती बाबा ने गबन कर ली है! बाबा से जब भी अपने पैसे मांगते तो बदले मे जान से मारने की धमकी मिलती!

अाज सुरी जी एक लाचार ओर असहाय परिस्तिथियो मे जीवन व्यतित कर रहे हैँ! इंसाफ की गुहार ओर उपर वाले पर भरोसा है उन्हे की शायद उन्की गलती का बोझ कभी तो उनके सिने से उतरेगा, छह माह की गुडिया के भविष्य के लिए जूटाई जमा-पुंजी क्या कभी वापस मिल सकेगी?

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