आज के इस दौर में जब कोई आम होना नहीं चाहता (सब खास ही होना चाहते हैं), किसी आम के बारे में लिखने का दुस्साहस कर रहा हूं। दुस्साहस इसलिए की यह आम नहीं, दीघा का दूधिया आम है और इसमें फर्क वही है, जो एक सम्राट होने और एक चक्रवर्ती सम्राट होने में है। “दीघा” यानी की “दिर्घवाह’ जहां गंगा और सोन के संगम होने से पुरातन काल में नदी का दोनों कपाट काफी चौड़ा हुआ करता था और छपरा के दिघवारा इसी दीघा आने का एक जल स्टेशन की तरह था, जहां नाव अपनी पोत खोल दे तो हवाएं सीधे दीघा ही पहुंचा देती थीं। पाटलिपुत्र की धरती को गंगा जी के लौह तत्व और सोन नद के कैल्शियम तत्व से सिंचित होकर यहां की मिट्टी को जो नया आयाम मिला उसी का परिणाम दीघा के दूधिया आम है।
शैलेंद्र
वो दूधिया जिसका मुरीद कभी ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया हुआ करती थी, वो दूधिया जिसे लखनऊ के नवाब फिदा हुसैन इस्लामाबाद के शाह फैसल इमामबाड़े से लाकर दीघा अवस्थित अपने बगीचे में दूध से सींचा करते थे और जिनके वंशजों में मोहम्मद इरफान ने अपनी दीवानगी की हदें पार कर इन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिलाई थी, वो दूधिया जिसे 1997 के सिंगापुर के आम प्रदर्शनी में प्रथम स्थान प्राप्त हुआ था और वो दूधिया जिसका स्वाद लेने तब के बंबई के मशहूर फिल्म कलाकार राजकपूर और सुरैया सन् 1952 में पटना आए थे और वो दूधिया जो भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद की पहली पसंद होती थीं, जिसे गंगा और सोन के संगमी भूमि में लौह और कैल्शियम तत्वों के सम्मिश्रण से एक नये स्वाद को जन्म दिया था, वही दीघा का आम आज अपने सल्तनत में ही प्रवासी की ज़िंदगी जीने की मजबूर है जैसे कोई बहादुर शाह जफर अपनी सल्तनत की कैद में।
आम की यात्रा कहां से शुरू की जाय यह तय करना अक्सर आसान नहीं होता। कई बाग बगीचों के चित्र किसी चलचित्र के पर्दे की तरह मानसपटल पर आने जाने लगते है। मन की चंचलता का साक्षात दर्शन होता है, जैसे देवालय में अनेकों मूर्तियों के बीच किसी एक के ऊपर ध्यान लगाना। मगर मंदिर के परिसर में पहुंचते ही वहां के परिवेश का ही फल होता है कि हम उस एक की समग्रता में डूब जाते हैं, जैसे की दानापुर की दूधिया दीघा आम की नर्सरी में पहुंच कर हम दूधिया गए। दानापुर सिविल कोर्ट के किनारे किनारे एक पतले से रास्ते को पकड़ कर हम आगे बढ़ते गए। यह अहसास भी होने लगा की कहीं हम किसी गलत रास्ते में तो नहीं बढ़ रहे। अचानक दाहिने तरफ फलों से लदा बगीचा स्वागत भरे मुस्कान के साथ पुकारता मिला – मैं यहां हूं। सचमुच गलत रास्ते पर ही आजकल सही लोग मिलते हैं। कलियुग जो है। मेरे साथ थे प्रमोद जी (पौधा संरक्षण विभाग) और शंकर चौधरी (कृषि अधिकारी)। बाग के मुखिया वहां के हार्टिकल्चर के प्रखंड बागवानी पदाधिकारी श्री अरविन्द भी मौजूद थे।
दीघा के रंगमंच पर परी कथाओं का यह दौर ज्यादा दिन तक नहीं चला। कहानियों ने मोड़ लेना शुरू किया। खुले बाग में शहंशाह की तरह दमकते इन पेड़ों पर भू धारियों और कंकरीले मकान निर्माताओं की नजर लग गई। इरफ़ान साहब चल बसे और उनके साथ वह स्वर्णिम दौर भी। सम्राट के कुछ चुनिंदा सिपहसालारों ने इसे अपने संस्थान के चारदीवारी के अंदर फलने फूलने का मौका दिया जहां इनकी संतति आज भी संरक्षित और महफूज़ है। कुल मिलाकर बिहार विद्यापीठ में 20 से 30 वृक्ष, सेंट जेवियर्स कॉलेज दीघा में लगभग 100, कुर्जी चर्च के पीछे लगभग 30 , ज्ञानोदय खासपुर (दानापुर कैंटोनमेंट से डेढ़ मील आगे) में 36 वृक्ष और कुछ पटना वासियों के घरों में संरक्षित हैं जिसमें से एक हमारे मित्र राकेश किशोर शरण का भी घर है जो लोहानीपुर इलाके में हैं। इनके दादा जी अंग्रेजों के समय के मजिस्ट्रेट हुआ करते थे और उनके किस्से सुनने और उस समय के फोटो देखने कभी उनके घर जाया करते थे और आज की अपनी मजिस्ट्रासी में उस स्वर्णिम काल के गौरव गाथा से नई ऊर्जा का अहसास किया करते थे।
ऐसा नहीं है कि बाद की सरकारों ने दूधिया को बचाने पर ध्यान नहीं दिया। दानापुर सिविल कोर्ट के दफ्तर के पीछे की नर्सरी पूर्णतः इसी आम के संरक्षण के लिए सरकार द्वारा समर्पित कर दी गई है। 2 एकड़ के भूभाग में कुल 51 आम के वृक्ष है जो दूधिया दीघा के मूल प्रजाति के हैं। 5 सूख भी चुके हैं और कुछ सूखने की तैयारी में हैं। न कोई पहरेदार न कोई दरबारी। राजा की रखवाली करने वाला आज कोई भी नहीं। आम का यह दफ्तर सूना पड़ गया। कुल मिलाकर दूधिया आम का यह बगीचा किसी दरिद्र राजा का चित्र प्रस्तुत करती है जो राज्य छीन जाने के बाद भी दान करने की परंपरा न भुला हो। आस पास के गंदे पानी का जलजमाव से बगीचा का एक कोना ग्रसित हो चुका है। बगीचे के पेड़ आम के हर बीमारियों से जूझते दिखे- Shoot gall, Milli Bug, hopper, fruit flies सब कीट कीटाणु यहां डेरा जमा चुके हैं। कृषि विभाग के अधिकारियों के साथ यहां की सुध ली गई और भविष्य में इसके बचाव एवं प्रसार हेतु योजनाएं बनाने पर सहमति भी बनी। मगर पेड़ पर आम के फल कीचड़ में कमल की तरह दमकते नजर आए। ठीकेदारों ने बताया कि एक एक पेड़ से लगभग 2 से ढाई क्विंटल आम निकल जाता है यानिं की यहां से लगभग 100 क्विंटल आम की प्राप्ति होती है। सब कुछ गवां कर भी पगड़ी की शानोशौकत मौजूद है। एक एक आम की साइज भरपूर है और दूध की वो अमिट निशानी के साथ। दूधिया को संरक्षित करने के लिए यहां से sappling लेकर बख्तियारपुर के horticulture के सरकारी नर्सेरी में रोपा गया है जहां उसकी देखभाल और प्रजनन के माध्यम से प्रसार किया जाता है।
दूधिया आम का एक और ठिकाना खासपुर ज्ञानोदय संस्थान है जहां कुल 20 से 25 दूधिया के वृक्ष हैं, जो वहां के चर्च Fr. Edward द्वारा पूरी तरह से संरक्षित है। वहां ले जाने वाले राठौर साहब, साइंस कॉलेज के प्रोफेसर साहब, का आम के प्रति दीवानगी का कोई छोर नहीं। पूरा बगीचा उन्होंने सिर्फ खिलाने और बांटने के लिए ही ले रखा है। हमे भी पेड़ों से तोड़ तोड़ कर खिलाया गया। पेड़ पर चढ़ने और अठखेलियां करने से हम भी बाज नहीं आए। सो रेलवे में कार्यरत अपने मित्र विवेक सिंह के साथ कई करतब दिखा दिए। गांव का अभ्यास काम आ रहा था। अल्हड़पन की ऊर्जा पागल कर देने जैसी होती है। फादर भी हर पल साथ रहे , मुस्कुराते हुए, आनंद लेते हुए। पेड़ के कुछ रोगों कि दवाइयां बता दी गई । कुछ संरक्षण के उपाय भी। कृषि विभाग में रहने से सीखने का जो मौका मिलता है उसका बखान नहीं कर सकता। हर अधिकारी यहां किसी न किसी faculty के इंचार्ज जैसा ही है।
आम के साथ कुछ बदनसीबी का भी वाक्य है। यह कि आम को उसका अपना फल क्या उसका अपना साया भी उसके खुद के काम नहीं अा पाता। दूसरों को शीतलता अपनी छांव तले देकर खुद जलता रहता है। आम की यह स्वाभाविक प्रवृत्ति के शिकार सभी आम प्रेमी अक्सर हो जाते हैं। अनंत भैया (राकेश शरण के भैया और भारत सरकार के गृह विभाग के संयुक्त सचिव) भी यही किस्सा सुना रहे थे की कैसे उन्होंने सभी दूधिया आम अपने प्रिय जनों के बीच दिल्ली में बांट दिया। प्रेम और परोपकार का भाव गंगा यमुना की संस्कृति के रग रग में बसा होता है। पूर्णिया के सुभाष मामू (समरेंद्र मित्र के मामू) ने lockdown के सन्नाटे में भी चुपके से आम बांटने में कोई कोताही नहीं किए। आम प्रेमियों का दिल प्रायः ऐसा ही होता है।
दूधिया दीघा मालदह का सबसे बड़ा ठिकाना सैंट जेवियर्स कॉलेज दीघा है जहां के Fr. राजकुमार के साथ बाग के तीनों हिस्सों को भ्रमण करने का मौका मिला था – आत्म दर्शन, ट्रेनिंग कॉलेज और तरुमित्र संभाग। हर भाग में दूधिया आम को लहलहाते देख मन गदगद हो गया। मोहम्मद इरफान साहब के इंतकाल के बाद यही बगीचा उस काल खंड का बचा हुआ बताया गया है। फादर के साथ बैठकर इसे बचाने और इसे पटना के दूसरे जगहों तक पहुंचाने पर देर तक विमर्श किया गया। उम्मीद है इसका सकारात्मक फल जरूर मिलेगा। साथ ही geo tagging करना भी आज के प्रचार के दौर में जरूरी प्रतीत हुआ।
दूधिया के प्रसार के लिए इसके propogation (प्रसार) के ठिकाने भी ढूंढे गए। बख्तियारपुर का नर्सरी के बारे में बता चुका हूं जहां इसके propogation का कार्य किया जाता है । एक ठिकाना मीठापुर का फार्म भी है जिसका अवलोकन पटना bye pass रोड से किया जा सकता है। सो वहां भी धमक गया। वहां के डायरेक्टर ओझा जी से मिलकर जो खुशी मिली वह बयान नहीं कर सकता। मीठापुर फार्म बिहार सरकार के कृषि विश्वविद्यालय सबौर का उच्च कोटि का नर्सरी है। आज मीठापुर फार्म मात्र 25 एकड़ में सिमट गया है जिसके दायरे में कभी पटना bye pass सड़क और उसके उस पार के सारे इलाके आते थे। लगभग 100 एकड़ में से मात्र 25 एकड़ अब इनके पास रह गया है। मगर उसके एक एक भाग को फार्म के अधिकारी /कर्मियों खासकर वहां के कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा विकसित किया जा रहा है। आम के लगभग सभी प्रजाति के Mother Plants यहां मौजूद देखकर मन हर्षित हो गया। अमरूद में Lucknow 49 की variety और इलाहाबादी सफेदा सभी वेरायटी यहां संरक्षित हैं। यहां फलों नहीं फल – वृक्ष के पौधों का उत्पादन किया जाता है । Vegetative reproduction (asexual reproduction) के सभी तरीके यहां अपनाए जाते हैं – cutting, layering, grafting , इत्यादि। जैसी प्रजाति वैसी विधि। टमाटर , पपीता, मिर्च आदि सिर्फ sexual reproduction method यानी की बीज से ही उगाई जा सकती है। मगर आम के वृक्ष grafting ( जिस पौधे का saplling तैयार करना है उसका scion किसी लोकल प्रजाति (rootstock) के आम के पौधे के ऊपर graft कर दी जाती हैं) के माध्यम से और अमरूद air layering, patch budding एवम् बीज से भी तैयार किया जाता है। कुछ विधियां हमारे सामने भी बताई गई और दिखाई गई। यहां के माली अपने कार्य में दक्ष हैं।इनडोर प्लान्ट की भी यहां भरमार थी जो सस्ते में बेची जाती है। आम की लगभग सभी प्रजाति ( जर्दालू, दूधिया, गुलबखास, फजली, बंबइया इत्यादि) के पौधे तैयार कर वेचे जाते हैं। मांग इतनी है कि पूर्ति करना मुश्किल हो जाता है। फार्म से अधिक यह एक विशालकाय नर्सरी ही है। Medicinal plant , कागज़ी नींबू की असली variety सब कुछ यहां मौजूद है।ऊपर से मछली पालन के लिए मेन रोड से सटे विशालकाय तालाब भी है जहां उच्च तकनीक से मछली पालन किया जाता है। इसका मदर प्लांट साइड बहुत ही आकर्षक और भाव विभोर करने जैसा था। जन्मदायिनी की भूमिका में। ऐसा नहीं की यहां कोई समस्या नहीं है। ओझा जी ने बताया की आस पास के गंदा पानी से फार्म चहुं ओर से घिरा रहता है। अतिक्रमण का भी सिलसिला चलता रहता है। चोरी चकारी भी कम नहीं है। मगर निदेशक महोदय की ऊर्जा से ये जरूर आभास हुआ की यह व्यक्ति हार मानने वालों में से नहीं है। संकल्प एवम् साधना के बल पर मीठापुर फार्म को नई ऊंचाई देने में बिल्कुल समर्थवान दिखे। सरकार ने इसी हाते में एक agro business college की स्थापना का प्लान कर रही है जिससे जलजमाव का क्षेत्र भी ख़तम होने के साथ पूरा क्षेत्र और खाली भू भाग विकसित हो सकेगा। साथ में पढ़ने वालों बच्चों के साथ नर्सरी खिल खिला उठेगा।
दूधिया के उद्धार के लिए कुछ कार्य आवश्यक समझे गए। सबसे पहले तो बच्चे हुए पेड़ों कि रक्षा की जाय – दवा से , उर्वरक से, जलजमाव से मुक्ति कर, थोड़े बहुत देख भाल से , लोगों को जागृत करके, बाग के मालिकों को सरकार से जोड़कर, मलियों को प्रशिक्षित कर, नए पौधों के लिए प्रजनन केंद्र पटना में ही बनाकर, समर्पित लोगों के बीच sappling बांट कर , सरकारी नर्सरी का जीर्णोधार कर और geo tagging के लिए कोशिशें कर इत्यादि। इससे संभव है दूधिया की प्रतिष्ठा बागों में स्थापित हो जाय। इसकी मार्केटिंग और दुनिया में इसकी ब्रांडिंग करने की आवश्यकता है जिससे खोया हुआ गौरव पुनर्स्थापित हो सके।
करोना काल के उतार चढ़ाव के बीच बाग बगीचों में यह भ्रमण किसी मनोकामना के पूर्ण होने जैसा था। पूरी यात्रा में साथ निभाने के लिए आप सबों के प्रति आभार व्यक्त करता हूं। सभी किरदारों एवम् साथी सहकर्मी के साथ इन बगीचों में बिताए गए एक एक क्षण भविष्य की धरोहर स्वरूप हमेशा महसूस करता रहूंगा। दूधिया की यह धारा इसी प्रकार प्रवाहमान रहे और अपनी गौरव को पुनः स्थापित कर सके की कामना के साथ अपनी लेखनी को विराम दे रहा हूं।
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