संदीप पौराणिक, झांसी: सड़क किनारे गुब्बारे और कागज के गुलदस्ते बेचने वाली नौ साल की नीकू की दिवाली इस बार पिछले सालों जैसी नहीं रहेगी, इस बार वह भी नई फ्रॉक पहनकर मिठाई खाएगी। उसे और उसकी झुग्गी बस्ती के 60 से ज्यादा बच्चों को सामाजिक कार्यकर्ताओं से नए कपड़े और मिठाई मिली है।
दिवाली पर्व का जिक्र आते ही हर बच्चे की आंखों में चमक आ जाती है। वह योजना बनाने में जुट जाता है, मगर नीकू जैसे कई बच्चे स्कूल जाने की बजाय सड़कों पर गुब्बारे और कागज के गुलदस्ते बेचते दिख जाते हैं। वे भी दिवाली उत्साह से मनाना चाहते हैं, मगर गरीबी ऐसा नहीं करने देती। नीकू जैसे कई बच्चों के लिए इस बार की दिवाली अपार खुशी लेकर आई है, क्योंकि वह इस बार दिवाली अन्य बच्चों की तरह धूमधाम से मनाएंगे।
बुंदेलखंड के झांसी में इलाइट चौराहे से सीपरी बाजार की ओर जाने वाले मार्ग के बीच में पड़ता है, प्रदर्शनी मैदान। यहां बेघर आदिवासी परिवार तम्बू और झुग्गी बनाकर रहते हैं और वे गुब्बारे व कागज के गुलदस्ते बनाकर बेचते हैं, ताकि उनके परिवार का पेट भर सके।
इन आदिवासी परिवारों के बच्चे मुख्य सड़क के किनारे गुब्बारे बेचने का काम करते हैं। इनमें अधिकांश बच्चों के लिए कई-कई दिन तक बदलने के लिए कपड़े तक नहीं होते और रोज नहाना तक नहीं हो पाता। ऐसा इसलिए, क्योंकि उनका पूरा दिन गुब्बारे और गुलदस्ते बेचने में ही निकल जाता है। वे तो अपने परिवार के साथ खानाबदोश की जिंदगी जिए जा रहे हैं।
नीकू आज बड़ी खुश है, क्योंकि वह भी दिवाली के दिन नए कपड़े पहनेगी। इसके साथ ही उसे खाने के लिए मिठाई का डिब्बा जो मिला है। नीकू कहती है, “हम भी दिवाली के मौके पर नए कपड़े पहनेंगे। मिठाई खाएंगे और पटाखे चलाएंगे। पहले कभी इस तरह दिवाली नहीं मनाई।”
झांसी के जेसीआई कोहिनूर सामाजिक संस्था ने इन गरीब बच्चों के दर्द को समझा और 60 से ज्यादा बच्चों को पेंट-शर्ट और फ्रॉक बांटीं। उन्हें मिठाई भी दी। उनका मकसद यही था कि देश में हर तरफ दिवाली मनाई जाएगी और ये बच्चे उजाले के पर्व पर खुश भी नहीं होंगे, लिहाजा उन्होंने यह कदम उठाया।
संस्था की सचिव राखी बजाज का कहना है, “दिवाली करीब आते ही हम अपने बच्चों के लिए कपड़े और अन्य चीजें खरीदने निकल पड़ते हैं, ऐसे में हमारी नजर सड़क किनारे बैठकर गुब्बारे और गुलदस्ते बेचने वाले बच्चों पर गई। इस पर हमने तय किया कि इन बच्चों की भी दिवाली अच्छी हो, इसका प्रयास करेंगे।”
वहीं अध्यक्ष वैशाली पुंषी बताती हैं कि उनकी संस्था इन बच्चों के लिए काफी समय से काम कर रही है, लिहाजा उनकी दिवाली सूनी न जाए, वे खुशी से मनाएं, इसलिए उन्हें आपस में मिलकर धनराशि इकट्ठा की और पर्व से पहले ही उपहार स्वरूप कपड़े और मिठाई वितरित कर दी, ताकि उन्हें दिवाली कैसे मनेगी, इसकी चिंता नहीं रहे।
कपड़े और मिठाई पाकर पांच साल के चुनमुनिया की तो खुशी का ठिकाना नहीं था। वह उपहार पाकर कहने लगा कि उसने इससे पहले दिवाली पर नए कपड़े नहीं पहने। इस बार वह नए कपड़े पहनेगा। इन बच्चों की माताएं भी बेहद खुश थीं, उन्हें लगा कि चलो कोई तो उनके बच्चों के लिए कुछ उपहार लेकर आया।
दिवाली रोशनी का पर्व है, मगर एक ऐसा वर्ग भी है जो आज भी सिर्फ दिवाली ही नहीं, पूरी जिंदगी अंधेरे में गुजार देता है। ऐसे लोगों के बारे में उस वर्ग को जरूर सोचना चाहिए, जो हजारों रुपये पटाखे और घरों की सजावट पर खर्च कर देते हैं।
–आईएएनएस
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