– इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली में रोजाना दिनदहाड़े अपराधी बैखौफ होकर चेन ,पर्स और मोबाइल फोन आदि छीन /झपट यानी लूट रहे हैं। महिलाएं ही नहीं पुरुष भी सड़कों पर सुरक्षित नहीं है। पुलिस इस अपराध पर नियंत्रण करने के लिए गंभीरता से कदम उठाने की बजाए आंकड़ों के द्वारा यह साबित कर रही है कि झपटमारी के अपराध कम हो रहे हैं। जमीनी हकीकत चाहे कुछ भी हो और लोगों में चाहे झपटमारों का खौफ हो लेकिन पुलिस को इसकी कोई परवाह नहीं है।
पुलिस ने हमेशा की तरह आंकड़ों से दिखा दिया कि झपटमारी यानी स्नैचिंग के अपराध में कमी आई है।
चौंकाने वाली बात यह है कि पुलिस झपटमारी की वारदात करने वाले अपराधियों को सज़ा दिलाने में भी बुरी तरह नाकाम साबित हुई है। पुलिस ने पिछले साढ़े तीन साल में झपटमारी के आरोप में 17 हज़ार से ज़्यादा अभियुक्तों को गिरफ्तार किया। लेकिन इस दौरान पुलिस सिर्फ 202 झपटमारों को ही अदालत में अपराधी साबित कर सज़ा दिला पाई। यह खुलासा पुलिस की पेशेवर काबिलियत और तफ्तीश के स्तर पर सवालिया निशान लगाता है।
राज्यसभा में सांसद राम कुमार वर्मा ने दिल्ली में झपटमारी की बढ़ती वारदात पर सरकार से सवाल पूछा था।
गृह राज्यमंत्री हंस राज गंगा राम अहीर ने राज्यसभा में बताया कि इस साल 30 जून 2018 तक दर्ज हुई झपटमारी की वारदात में साल 2017 की इस अवधि की तुलना में 28.90 प्रतिशत की कमी आई है।
इसके अलावा पहले के वर्षों की तुलना में साल 2016 में 3.28 फीसदी और साल 2017 में झपटमारी की वारदात 14 फीसदी कम हुई थी।
दिल्ली पुलिस की झपटमारों को सज़ा दिलाने की दर बहुत ही शर्मनाक है। इसका पता इन आंकड़ों से चलता है। इससे यह भी पता चलता है कि तफ्तीश और अपराधी को सज़ा दिलाने लायक सबूत जुटाने में पुलिस में पेशेवर काबिलियत की कमी है या पुलिस तफ्तीश में लापरवाही बरतती है।
दिल्ली पुलिस ने झपटमारी के मामलों में पिछले साढ़े तीन साल में 17403 अभियुक्तों को गिरफ्तार किया लेकिन इस दौरान सिर्फ 202 अपराधियों को सज़ा हुई। वर्षवार ब्योरा–साल 2015 में 3675 अभियुक्तों को गिरफ्तार किया गया और 105 झपटमारों को सज़ा हुई। साल 2016 में 5092 झपटमारों को गिरफ्तार किया गया और 46 को सज़ा हुई। साल 2017 मे 6454 को गिरफ्तार किया 44 को सज़ा हुई। साल 2018 में तीस जून तक 2182 को गिरफ्तार किया गया और 7 झपटमारों को अदालत द्वारा सज़ा सुनाई गई।
विदेशी पर्यटक–पिछले साढ़े तीन साल में 46 विदेशी पर्यटक भी झपटमारों के शिकार बने हैं।
अपराध को आंकडों के द्वारा कम दिखाने के लिए पुलिस में अपराध के सभी मामलों को दर्ज़ न करने या डकैती को लूट और लूट को चोरी में दर्ज़ करने की परंपरा कायम है। जेबकटने या मोबाइल झपटमारी के ज्यादातर मामलों में खोने की रिपोर्ट दर्ज की जाती है। शिकायतकर्ता को पुलिस यह कह कर बहका देती है कि मोबाइल रिकवरी के तो चांस नहीं है और ऐसे में फोन खो जाने कि लॉस्ट रिपोर्ट से ही तुम्हारा काम चल जाएगा।
सच्चाई यह है कि ऐसा करके पुलिस अपराधियों की ही मदद करती हैं अपराधी को भी मालूम है कि अगर वह पकड़ा भी गया तो उसके द्वारा की गई वारदात कम ही दर्ज मिलेंगी। इस लिए अपराधी बेखौफ होकर वारदात करते हैं। जब तक अपराध के सभी मामले दर्ज नहीं किए जाएंगे। अपराध और अपराधियों पर अंकुश नहीं लग पाएगा।
और भी हैं
हेमंत सोरेन ने पेश किया सरकार बनाने का पेश किया दावा, 28 को लेंगे शपथ
संसद का शीतकालीन सत्र सोमवार से, पेश होंगे कई महत्वपूर्ण विधेयक
आईएफएफआई देश में फिल्म इंडस्ट्री के विकास में महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ : अश्विनी वैष्णव