✅ Janmat Samachar.com© provides latest news from India and the world. Get latest headlines from Viral,Entertainment, Khaas khabar, Fact Check, Entertainment.

दिल्ली में पेड़ों की कटाई हुई तो आम नागरिक भी जिम्मेदार: याचिकाकर्ता

नई दिल्ली: केंद्र की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और दिल्ली में सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी (आप) द्वारा दक्षिण दिल्ली की छह कॉलोनियों के पुनर्विकास के लिए 16,500 पेड़ों की कटाई को मंजूरी देने के खिलाफ याचिका दाखिल करने वाले याचिकाकर्ता डॉ. कौशल कांत मिश्रा ने कहा कि अगर किसी कारण से दिल्ली में पेड़ों की कटाई होती है तो इसके लिए सिर्फ सरकार ही नहीं, बल्कि दिल्ली के लोग भी उतने ही जिम्मेदार होंगे। 

एम्स के ऑर्थोपेडिक शल्य चिकित्सक और याचिकाकर्ता डॉ. कौशल कांत मिश्रा ने आईएएनएस के साथ विशेष बातचीत में कहा, “पेड़ों को काटकर इमारतें और पार्किं ग बनाने का फैसला चाहे किसी का भी हो चाहे व केंद्र सरकार हो या फिर दिल्ली सरकार, पर्यावरण के पहलू से बिल्कुल गलत है। मेरा एक निवेदन है, चाहे वह आम आदमी पार्टी हो या खास आदमी पार्टी इसे राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाएं, ताकि हम अपने मकसद को हासिल कर सकें। जब इस मुद्दे को राजनीतिक रूप दे दिया जाएगा तो यह मकसद कभी पूरा नहीं होगा।”

उन्होंने कहा, “ये इमारतें दिल्ली से बाहर बननी चाहिए और इन्हें बाहर ही बनाया जाना चाहिए। दरअसल इसमें बनने वाले मकान केंद्र सरकार के शीर्ष कर्मचारियों के हैं, जो पूरे हिंदुस्तान की सरकार को चलाते हैं, वह दिल्ली के केंद्र रहना चाहते हैं इसलिए यह फाइल जिसे तीन साल में पास होना था वह तीन महीने में दाखिल होकर पास भी हो गई।” 

डॉ. मिश्रा ने दिल्ली के वायु प्रदूषण के स्तर पर इन इमारतों से होने वाले प्रभाव के बारे में बताया, “बीते 10 से 15 दिन पहले जो दिल्ली के आस-पास जो धुंध आई थी, उससे यहां पर संकट का दौर शुरू शुरू हो गया था, लोग सांस तक नहीं ले पा रहे थे। अगर सर्वोच्च न्यायालय वायु-प्रदूषण को लेकर इतना ही गंभीर है और वह सालों से मनाए जा रहे त्योहार दिवाली पर रोक लगा सकता है तो इस पर क्यों नहीं। अगर यह पेड़ कट जाएंगे तो लोग कभी दिवाली नहीं मना पाएंगे।”

इन इमारतों के निर्माण की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए डॉ. मिश्रा ने कहा, “इसमें मंत्रियों की ज्यादा भूमिका मुझे नजर नहीं आती क्योंकि यह परियोजना रिपोर्ट नीचे के बाबू लोग बनाकर दाखिल करते हैं, इसमें राजनेता का मुझे कोई निजी हित दिखाई नहीं देता उन्हें इसके बारे में पता ही नहीं होता है। इस तरह की परियोजना से सभी पर्टियों का नुकसान ही हो रहा, क्योंकि दिल्ली इसके खिलाफ है और कोई भी पार्टी अपने वोटबैंक के खिलाफ नहीं जाएगी। यह केवल नीति निर्माताओं की गलती है।”

इस मामले की अगली सुनवाई दिल्ली उच्च न्यायालय में चार जुलाई को होनी है, जिस पर फैसला उनके पक्ष में नहीं आने के सवाल पर उन्होंने कहा, “न्यायालय का फैसला हमारे पक्ष में नहीं आने का सवाल ही नहीं है क्योंकि जिन बिंदुओं पर उच्च न्यायालय ने रोक लगाई है वह इतने मजबूत हैं कि मुझे पूरा भरोसा है सरकार उन समस्याओं को हल कभी कर ही नहीं सकती।”

इन बिंदुओं पर प्रकाश डालते हुए डॉ. मिश्रा ने बताया, “केंद्र सरकार की सीएजी की अप्रैल 2018 की रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली में पेड़ों की कुल संख्या में नौ लाख पेड़ों की कमी है, पहले इन्हें पूरा किया जाए उसके बाद काटने की बात आती है। रिपोर्ट आगे यह कहती है कि जब दो साइटों पर एक साथ काम शुरू होगा तो इन्हें प्रति दिन 1.66 करोड़ लीटर पानी की जरूरत होगी, वह यह पानी कहां से लाएंगे। इसके बाद जब पुरानी इमारतों को तोड़ा जाएगा तो उसमें से प्रति दिन करीब 660 मैट्रिक टन मलवा निकलेगा, उसे कहां खपाया जाएगा।”

उन्होंने कहा कि दिल्ली में केवल तीन लैंडफिल साइटें और वह भी पूरी तरह से भरी हुई है। अब आप इसकी गणना छह साइटों से कर लीजिए और अंदाजा लगाइए कि मलबे क्या होगा। इसके लिए कोई योजना नहीं है। उन्होंने कहा, “सभी चाहते हैं कि विकास हो दिल्ली पेरिस और लंदन जैसी दिखे लेकिन पर्यावरण के पहुलों से खिलवाड़ नहीं होना चाहिए।”

डॉ. मिश्रा ने बताया कि दक्षिण दिल्ली के सरोजनी नगर, नौरोजी नगर, नेताजी नगर, त्यागराज नगर, मोहम्मदपुर व कस्तूरबा नगर में जगह ज्यादा है और आबादी कम। यह कम घनत्व वाले इलाके प्रदूषण, यातायात आदि दिल्ली के लिए बफर का कार्य करते हैं, अगर इन इलाकों में जब बड़ी इमारतें और शॉपिंग मॉल बन जाएंगे तो यह प्रति दिन 10 लाख से ज्यादा गाड़ियां गुजरेंगी, क्या हमारे रिंग रोड इसके लिए तैयार हैं। 

दिल्ली के इन इलाकों में पेड़ों की काटने की नौबत आने के सवाल पर उन्होंने कहा कि इसके लिए सभी संबंधित अधिकारी, केंद्र, राज्य सरकार के साथ सभी नागरिक बराबर के भागीदार होंगे, क्योंकि हम लोग भी कभी पेड़ नहीं लगाते, बल्कि आस-पास की जगहों पर अतिक्रमण कर उसे अपनी जमीन बना लेते हैं।

एनजीटी द्वारा हाल ही में बुनियादी ढांचे के लिए पेड़ों को गिराने की जरूरत पर पहले वनरोपण अनिवार्य करने के आदेश पर डॉ. मिश्रा ने कहा, “पहले पेड़ तो लगाए और 25 साल तक उन्हें बड़ा होने के बाद गिराए।”

केंद्र सरकार की दक्षिणी दिल्ली क्षेत्र में करीबन 13 हजार पेड़ों को काटने की योजना है। दिल्ली का दक्षिणी क्षेत्र सबसे ज्यादा हरे भरे इलाकों में से एक है। यहां पेड़ों को काटकर 25,000 नए फ्लैटों और लगभग 70,000 वाहनों के लिए पार्किं ग स्थल बनाने की योजना है।

–आईएएनएस

About Author