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नोटबंदी का फैसला सही , तैयारी नाकाफी

 

संजय मेहता

नोटबंदी से लोगों में यह आस जगी है कि इससे कालेधन पर काबू पाया जा सकता है। फैसले से सकारात्मक परिणाम निकलने की उम्मीद है लेकिन इससे पैदा हुई रोजमर्रा की परेशानी बढ़ती ही जा रही हैं। कैश के कारण लोगों का पूरा दिन बर्बाद हो जा रहा है। दिन ढल जा रही है लेकिन एटीएम और बैंको की कतार में लोगों के नंबर नहीं आ रहे हैं। सिर्फ मेट्रो सिटी के लोगों के रहन-सहन एवं उनके जीवनस्तर के अनुमान के आधार पर ही कोई फैसला नहीं लिया जा सकता।

 
नेट बैंकिग, ऑनलाइन पेमेंट वॉलेट मनी एवं अन्य प्रचलित ऑनलाइन पेमेंट माध्यमों पर आम लोगों की पहूंच नहीं है। इन माध्यमों का इस्तेमाल देश के कुछ प्रतिशत लोग करते हैं। हमें इस बात का ख्याल रखना चाहिए की नीतियों में संतुलन हो ताकि सवा सौ करोड़ लोगों को एक समान अवसर प्रदान किया जाए। जल्दबाजी में लिए गए फैसले से समाज में असामान्य स्थिति उत्पन्न होने का खतरा है।

 
देश के वित्त मंत्रालय एवं रिजर्व बैंक के पास बैंको का डाटा है। मंत्रालय के पास यह भी डाटा है कि कितने लोगों की पहूंच बैंको तक है। सरकारी आंकडों के अनुसार आबादी का बड़ा हिस्सा बैंकिग सेवाओं से दूर है। देश की अर्थव्यवस्था नगदी पर निर्भर है। जब सभी लोगों के पास बैंक खाते नहीं है फिर अचानक इस फैसले को लागू कर देना और इसे पूरे देश के लोगों पर थोप देना कोई समझदारी भरा फैसला नहीं लगता।

 
हालांकि यह बात जरूर है कि फैसला सराहनीय है क्योंकि कालाधन का बड़ा हिस्सा 500 और 1000 के नोट के रूप में है। सरकार को फैसले को लागू करने से पूर्व सारी तैयारी कर लेनी चाहिए थी। लोगों को परेशानियों का सामना न करना पड़े इसके लिए फैसले में कुछ और चीजों को जोड़ना चाहिए था। आज परिस्थितियां ये हैं कि 500 व 1000 रुपये के नोट चलन से बाहर हो गए हैं। लोगों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

 
जिसकी पहुंच से बैंक दूर है वे दिन रात परेशान हैं। सरकार इन समस्याओं का समाधान पूर्ण रूप से कैसे करती है यह वक्त बताएगा। फिलहाल रिजर्व बैंक और सरकार के लिए अभी परीक्षा का समय है। नोटबंदी के कारण लॉजिस्टिक के व्यापार पर गंभीर असर पड़ा है। इससे किमतों में उछाल हो सकती है। देश में सभी जगह कार्ड से पेमेंट लेने की सुविधा नहीं है। जिन कार्यक्रमों , विवाह समारोह की तिथि पूर्व निर्धारित है ऐसे मामले में लोगों को नुकसान उठाना पड़ रहा है।

 
सरकार को स्थितियों का आंकलन कर फैसले को लागु करना चाहिए था। सरकार इस मोर्चे पर असहज दिख रही है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि यदि देश में कालेधन की समस्या बड़ी है तो संपूर्ण आबादी को क्यों परेशान किया जा रहा है। आज मजदूर, किसान ,मध्य वर्ग, छोटे कारोबारी सभी परेशान हैं। लाखों लोगों के काम के घंटे बर्बाद हो रहे हैं। पुरा भारत कतारों में दिख रहा है। फैसला बेहद परेशानी भरा प्रतीत हो रहा है। इस पर प्रधानमंत्री मोदी जी को तत्काल विचार करना चाहिए।

 
देश के हालात बताते हैं कि रिजर्व बैंक के पास भी इसके लिए कोई ठोस प्लान नहीं था। ऐसे संवेदनशील वक्त में सरकार को हौसला देने वाली सूचनाओं को प्रचारित प्रसारित करना चाहिए था । लेकिन लगातार आ रही असमंजस पैदा करने वाली सूचनाओं से लोगों में असंतोष पनप रहा है। अधिकांश काला धन घूस लेने वाले राजनेताओं,नौकरशाहों, टैक्स चोरी करने वाले बड़े व्यापारियों और अवैध धंधा करने माफियाओं के पास जमा होता है। इनमें से कोई भी वर्षों की काली कमाई को नोटों के रूप में नहीं रखता है। इन्हें काला धन को वस्तुओं में सुरक्षित रखना आता है या उन्हें सीखाने वाले मिल जाते हैं। ऐसे लोग अपने काले धन को ठिकाने लगा देंगे।

 
यह कहा जा सकता है कि सरकार द्वारा यह नेक कदम उठाया गया है लेकिन इसके साथ ही सिर्फ 500 व 1000 के नोट को बदल देने से ही काले धन की बीमारी दूर हो जाएगी तो ऐसा संभव नहीं लगता। क्योंकि सरकार का तर्क है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में नकली करंसी की व्यवस्था समानांतर स्तर पर हो गयी थी उसे खत्म करने के लिए यह कदम उठाया गया है।

 
आम जनता व देश के हित में जो भी कदम उठाया जाता है उसे वह अस्वीकार नहीं करती लेकिन फैसले में समाज के सभी वर्गों का समावेश होना चहिए। एक निश्चित समय के बाद फिर 500 ,1000 के इन बड़े नोटों से काले धन वाले अपने धंधों को अंजाम देंगे। इसलिए इसका तात्कालिक प्रभाव तो पड़ेगा लेकिन दूरगामी प्रभाव कहां तक पड़ेगा। यह भविष्य के गर्भ में छिपा है। यही सरकार की अग्नि परीक्षा भी है कि उसका यह उठाया गया कदम कितना सार्थक एवं सफल होता है । अगले कुछ दिनों में स्थितियां स्पष्ट हो जाएगी। फैसला सराहनीय है लेकिन तैयारी नाकाफी है।

 

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