फकीर बालाजी, बेंगलुरू: केंद्र सरकार के नोटबंदी के कदम से किसी एक क्षेत्र को अन्य की तुलना में ज्यादा फायदा हुआ है- तो वह बैंकिंग क्षेत्र है। फंसे हुए कर्जो से जूझ रहे बैंकिंग क्षेत्र को नोटबंदी से बड़ी राहत मिली, लेकिन ग्राहकों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा।
भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के वरिष्ठ प्रबंधक एस. श्रीनिवास राव ने यहां आईएएनएस को बताया, “नोटबंदी हमारे लिए फायदेमंद रहा, नए खातों की संख्या में इस दौरान 25 फीसदी की बढ़ोतरी हुई और 40 फीसदी ग्राहक इंटरनेट या मोबाइल बैंकिंग का इस्तेमाल करने लगे, जिससे उनका नकदी निकालने या अन्य लेनदेन करने के लिए बैंक की शाखाओं में आना कम हो गया।”
बैंकों ने इस दौरान क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड की मांग और आनलाइन लेनदेन में काफी तेजी दर्ज की। नोटबंदी के दौरान बैंकों के सामने नकदी की बाढ़ आ गई और कई संदिग्ध कर्जो का भुगतान भी इस दौरान आसानी से मिल गया।
हालांकि बैंकों को नोटबंदी से जो फायदा मिला था, वह 1 जुलाई से वस्तु एवं सेवा कर लागू होने से गायब हो गया। क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था में मंदी आ गई, बैंक के ग्राहकों का कारोबार घट गया, जिससे कर्जो की मांग भी घट गई।
हालांकि नोटबंदी से बैंकों को भी कम परेशानी नहीं झेलनी पड़ी थी।
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर को नोटबंदी की घोषणा की थी। उसके बाद बैंक के आगे नोट जमा करने/बदलने के लिए हजारों ग्राहकों की लाइन लग गई थी, और बैंक कर्मचारियों और ग्राहकों के बीच युद्ध के मैदान जैसे हालत बन गए थे।
राव कहते हैं, “उन 50 दिनों के दौरान के दुखद समय को भूलना ही बेहतर है। नोट बदलने के लिए हमारे पास नए नोटों की आपूर्ति बहुत सीमित हो रही थी और ग्राहकों की लाइन लगी थी।”
कर्नाटक बैंक की औद्योगिक वित्त शाखा के प्रबंधक सदानंद कुमार ने आईएएनएस को बताया, “हम दोहरे दबाव में थे, ग्राहकों की तरफ से भारी दबाव था, तो प्रबंधन की तरफ से सीमित संसाधनों में ग्राहकों को सेवा मुहैया कराने का दबाव था।”
नोटबंदी से बैंक खातों में जमा रकम में बढ़ोतरी हुई, जिससे बैंकों को बढ़ते जा रहे फंसे हुए कर्जो (एनपीए) के लिए प्रावधान (छूट आदि देने) करने में सहूलियत हुई।
लेकिन नोटबंदी से बैंक कर्मचारियों खासतौर से महिलाओं और अधिकारियों को काफी कठिनाई का सामना करना पड़ा। उन्हें बिना किसी साप्ताहिक छुट्टी के इस दौरान 12 से 18 घंटों तक काम करना पड़ा।
–आईएएनएस
और भी हैं
बुलडोजर का इतिहास : निर्माण से लेकर तोड़फोड़ की मशीन बनने तक की यात्रा
वेश्यालय से भीख मांगकर मां दुर्गा की प्रतिमा बनाने के लिए लाई जाती है मिट्टी, जानें इसके पीछे की कहानी
हिंदी दिवस: क्या हिंदी सिर्फ बोलचाल की भाषा बची है?