रांची | झारखंड में लातेहार जिले के डाढ़ू गांव के रहने वाले रामेश्वर उरांव के पास अब पैसे नहीं हैं। उन्हें महाराष्ट्र में मजबूरन एक ही कमरे में 20 लोगों के साथ रहना पड़ रहा है। इन्हें आस है कि 14 अप्रैल को लॉकडाउन खत्म होगा और वे अपने गांव चले जाएंगे।
रामेश्वर अपने घर व गांव को छोड़कर काम की तलाश में यहां से दूर पुणे गया था, जहां लॉकडाउन में वह मस्के, देहूरोड इलाके में फंस गया है। भवन निर्माण में काम कर रहे रामेश्वर ने आईएएनएस को फोन पर कहा कि लॉकडाउन के बाद कंपनी वाले ने भी साथ छोड़ दिया है और अब वे किसी तरह पेट भर रहे हैं।
उन्होंने बताया कि इस इलाके में झारखंड के करीब 50 से 60 लोग हैं। यह केवल एक रामेश्वर की कहानी ही नहीं है। आईएएनएस ने शनिवार को करीब सात से आठ ऐसे मजदूरों से बात की है, जो अन्य राज्यों में फंसे हैं।
पलामू जिले में लेस्लीगंज के गोपालगंज के रहने वाले पंकज कुमार देहरादून में हैं। पंकज कहते हैं कि अब तो ऐसी स्थिति है कि भरपेट खाने के भी लाले पड़े हुए हैं।
उन्होंने कहा, “अब कोई यहां मिलना नहीं चाहता। खाने को अन्न नहीं है। बस यहां से किसी तरह वापस बुला लीजिए।”
पंकज झारखंड सरकार द्वारा बनाए गए कंट्रोल रूम में भी फोनकर अपनी व्यथा बता चुके हैं। अन्य राज्यों में काम की तलाश में गए लोगों में कई लोग बीमार हैं, जिन्हें आज दवा तक नहीं मिल पा रही।
मुंबई और तेलंगाना में फंसे खूंटी जिले के मजदूर संकट में हैं। आलम यह है कि मजदूर 24 घंटे में सिर्फ एक बार ही खाना खा रहे हैं। फोन पर अपनी व्यथा बताते हुए वे रो पड़ते हैं।
अड़की के नरंगा गांव निवासी जोसेफ सोय ने बताया कि खूंटी के 20 मजदूरों समेत रांची, सरायकेला आदि जिले के कुल 134 मजदूर फंसे हुए हैं। वे हेल्थ सेंटर थर्ड ब्लक कटीपल्ला, मंगलुरू, दक्षिण कर्नाटक में हैं।
उन्होंने कहा, “लॉकडाउन के कारण उनका संपर्क मालिक से नहीं हो पा रहा है। अब खाने-पीने का संकट हो गया है। कोई पूछने वाला नहीं है। उन्हें बाहर नहीं निकलने दिया जा रहा है। उनके पास तीन-चार दिनों तक सिर्फ एक वक्त खाने को अनाज बचा हुआ है।”
बाहर में फंसे लोगों की समस्या जानने और अन्य राज्यों में ही उन्हें सुविधा दिलाने के लिए यहां सरकार ने कंट्रोल रूम बनाए हैं। कंट्रोल रूम में लगी फोन की घंटियां बराबर बज रही हैं।
कंट्रोल रूम से मिली जानकारी के मुताबिक, लॉकडाउन की वजह से अब तक 7.66 लाख लोगों के अन्य राज्य में फंसने की जानकारी मिली है। इसमें से अधिकतर अप्रवासी मजदूर हैं। सरकार का दावा है कि 3.73 लाख लोगों के खाने की व्यवस्था अन्य राज्यों में ही कराई जा रही है।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा, “बड़ी संख्या में झारखंड के मजदूर देश के विभिन्न राज्यों में फंसे हैं। इन्हें राहत पहुंचाने के लिए राज्य सरकार लगातार कोशिश कर रही है। जल्द ही उन्हें सरकार डीबीटी के माध्यम से उनके बैंक खाते में राशि भेजेगी। इसके लिए अधिकारियों को निर्देश दिया गया है।”
उन्होंने कहा कि प्रवासी मजदूरों का डाटा एकत्रित किया जा रहा है।
झारखंड के एक अधिकारी ने कहा, “बाहर फंसे लोगों को राज्य में लाने की तैयारी की जा रही है। जब वे यहां आएंगे तो उनके रोजगार सृजन के लिए भी योजनाएं बनाई जा रही हैं।”
–आईएएनएस
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