नई दिल्ली : तेरहवीं सदी के सूफी संत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की महरौली स्थित दरगाह के खादिम सैयद फरीदुद्दीन कुतुबी दरगाह से कुछ ही दूरी पर स्थित प्राचीन योगमाया मंदिर में फूलों की छतरी चढ़ाने के बाद जब बाहर आए तो उन्होंने बस इतना ही कहा कि छोटे से मंदिर का गर्भगृह जिस प्रकार मोगरे की महक से आच्छादित है, उसी प्रकार की शांति और भव्यता और अदृश्य शक्ति का अनुभव वह दरगाह में भी करते हैं।
Experience the colours and festivities of Phool Walon ki Sair with a procession of Pankhas today at India Gate (3 pm) and Chandni Chowk (4 pm)…. and block the dates for the rest of the week too! pic.twitter.com/0DZBnpL0Gf
— Manisha Saxena (@ManishaSaxena10) November 13, 2018
यहां 18वीं सदी से हर साल ‘फूल वालों की सैर’ (Phool Walon Ki Sair) महोत्सव मनाया जाता है। यह महोत्सव सांप्रदायिक सद्भाव और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देता है। इस महोत्सव में कुतुबी जैसे अनेक लोग अपनी धार्मिक पहचान से ऊपर उठकर दूसरे समुदाय के लोगों को भी पूजा-स्थलों पर फूल और पंखा चढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
इस महोत्सव के पीछे एक कहानी है, जो अंतिम मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर के पिता अकबर शाह द्वितीय से जुड़ी हुई है। अकबर शाह को दरगाह के ही पास दफनाया गया था।
Phool Walon ki Sair Day 1… Painting Competition at Aam Bagh Mehrauli. Beginning of a week of celebrations! pic.twitter.com/oDypQZUSkO
— Manisha Saxena (@ManishaSaxena10) November 11, 2018
कहा जाता है कि जब अकबर शाह द्वितीय के पुत्र मिर्जा जहांगीर को अंग्रेजों ने जेल में डाल दिया था, तो उनकी बेगम ने मन्नत मांगी थी कि उनके बेटे की रिहाई होने पर वह सूफी संत की दरगाह पर चादर चढ़ाएंगी। शाही फरमान के अनुसार, योगमाया मंदिर में भी फूल चढ़ाए गए। इस आयोजन में हिंदू-मुस्लिम सभी धर्मो के लोगों ने पूरे जोश के साथ हिस्सा लिया था। उसके बाद से ही यह उत्सव हर साल मनाया जाने लगा।
Dy CM @msisodia, South Delhi Loksabha Incharge @raghav_chadha and MLA @MLA_NareshYadav
attends a function – Phool Walon Ki Sair, organised by Revenue Dept, Govt of NCT Of Delhi. pic.twitter.com/3MJILzMl0Z— AAP (@AamAadmiParty) November 17, 2018
महोत्सव के आयोजक अंजुमन सैर-ए-गुल फरोशां के सचिव मिर्जा मोहतराम बख्त ने आईएएनएस को बताया कि ब्रितानी हुकूमत की ‘फूट डालो और राज करो की नीति’ के कारण भारत के दो बड़े धार्मिक समुदायों के बीच गहरी दरार पड़ जाने से 1940 में महोत्सव के आयोजन पर विराम लग गया।
उन्होंने बताया कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने दोबारा 1961-62 में महोत्सव शुरू करवाया। तब से यह महोत्सव लगातार मनाया जा रहा है, जहां भारी तादाद में दिल्लीवासी इकट्ठा होते हैं।
आज जब समाज में ध्रुवीकरण का माहौल बन रहा और एक दूसरे के प्रति नफरत के बीज बोए जा रहे हैं और सोशल मीडिया पर जहर विष-वमन किया जा रहा है तब परस्पर सद्भाव व भाईचारे का संदेश देने वाले इस महोत्सव का विशेष महत्व है। यह महोत्सव सप्ताह भर चलता है।
कुतुबी ने कहा, “जब हमारे हिंदू भाई दरगाह पर फूलों की चादर चढ़ाने आते हैं तो मुस्लिम समुदाय के सदस्य पीछे हटकर उनको आगे आने को कहते हैं। इसी प्रकार देवी योगमाया मंदिर में फूलों की छतरी चढ़ाते समय मुसलमानों को प्रोत्साहित किया जाता है। यह दिलों का मिलन है और यह तभी हो सकता है, जब लोगों के दिलों में पाकीजगी होगी।”
उन्होंने कहा कि वह सभी धर्मों के अतिवादियों से कहते हैं कि वे कम से कम एक बार दूसरी संस्कृति का अनुभव करके देखें।
महरौली निवासी रजनीश जिंदल 15 साल से महोत्सव में जाते हैं। उन्होंने कहा कि सभी धर्मों व जीवन के हर क्षेत्र के लोगों का यह व्यक्तिगत व सहूलियत का मसला है।
उन्होंने कहा, “आप गुरुद्वारा जाते हैं। आपको आनंद और आराम का अनुभव होता है। वह आपका मजहब है। मस्जिद या मंदिर या चर्च के साथ भी वही बात है। यह व्यक्तिगत आस्था का मसला है।”
इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है कि फूलवालों की सैर महोत्सव के आयोजन के मार्ग में भी कई बाधाएं आती रहती हैं।
बख्त ने कहा, “लोग कहते हैं, तुम करके तो दिखाओ हम देखते हैं तुम कैसे करते हो। हर किसी को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र पसंद नहीं है, जिसमें सभी धर्मों का आदर किया जाता है।”
उन्होंने कहा, “आखिरी वक्त में अनुमति मिलना, उदासीन रवैया और बहानों से हमारे लिए बाधाएं उत्पन्न होती हैं, जबकि सीधे तौर पर कोई विरोध नहीं दिखता है।”
पूर्व भूविज्ञानी बख्त ने कहा, “हालांकि हमारे उत्साह में कोई कमी नहीं है। सत्य की हमेशा जीत होती है। वे हमारे कारवां को रोक नहीं सकते हैं।”
बख्त ने कहा कि उन्हें दिल्ली वाला कहलाने पर गर्व है।
पतंग उड़ाने की प्रतियोगिता, जुलूस, कुश्ती, कबड्डी, शहनाई वादन का कार्यक्रम चार दिनों तक चलता है। पांचवें और छठे दिन दरगाह और मंदिर में चादर व फूल चढ़ाए जाते हैं। दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने गुरुवार को दरगाह में फूलों की चादर चढ़ाई।
दिल्ली के परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत ने शुक्रवार को फूलों की छतरी चढ़ाई। उनके साथ दोनों समुदायों के लोग शामिल थे।
फूल वालों की सैर मेले का समापन शनिवार को 11 राज्यों की झांकियां निकालकर हुई और रातभर कव्वाली का कार्यक्रम चलता रहा।
(यह साप्ताहिक फीचर श्रंखला आईएएनएस और फ्रैंक इस्लाम फाउंडेशन की सकारात्मक पत्रकारिता परियोजना का हिस्सा है।)
–आईएएनएस
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