इंद्र वशिष्ठ
बेशक आप कितने ही काबिल हो लेकिन अगर सत्ता का वरदहस्त/ आशीर्वाद आप पर नहीं है तो सारी काबिलियत धरी की धरी रह जाती है वह सब बेकार/ बेमानी साबित हो जाती है। इसलिए काबिल वहीं, जो नेता के मन भाए।
राकेश अस्थाना को दिल्ली पुलिस कमिश्नर बना कर सत्ता ने यह साबित कर दिया।
ठेंगा दिखाया-
राकेश अस्थाना विवादों के कारण सुर्खियों में रहे हैं। उन्हें प्रधानमंत्री और गृह मंत्री का करीबी माना जाता है। वह करीबी हैं तभी तो एजीएमयूटी काडर के आईपीएस अफसरों को ठेंगा दिखा कर राकेश अस्थाना को उनके ऊपर थोप दिया गया।
राकेश अस्थाना को कमिश्नर बनाए जाने से एजीएमयूटी काडर के अफसर हैरान परेशान हो सकते हैं लेकिन बेचारे कर तो कुछ भी नहीं सकते है।
बेशक इस काडर में काबिल अफसर हैं लेकिन वह बेचारे प्रधानमंत्री, गृहमंत्री से नजदीकी बना उनका आशीर्वाद पाने के काबिल नहीं थे। प्रधानमंत्री को इस काडर के अफसर के तुलना में राकेश अस्थाना ज्यादा काबिल नजर आए।
इसीलिए तो अरुणाचल, गोवा, मिजोरम केंद्र शासित प्रदेश( एजीएमयूटी )काडर के आईपीएस अफसरों को दरकिनार कर अस्थाना को बीएसएफ डीजी के पद से रिटायर होने से ठीक 4 दिन पहले एक साल का सेवा विस्तार देकर दिल्ली पुलिस कमिश्नर बना दिया गया।
बालाजी को झटका-
एक जुलाई को ही एजीएमयूटी काडर के 1988 बैच के स्पेशल कमिश्नर (सतर्कता) बालाजी श्रीवास्तव ने कमिश्नर का अतिरिक्त प्रभार संभाला था। यह तय माना जा रहा था कि बालाजी श्रीवास्तव ही अब कमिश्नर रहेंगे भले ही कागजी आदेश कार्यवाहक कमिश्नर का रहे।
क्योंकि बालाजी श्रीवास्तव से पहले सच्चिदानंद श्रीवास्तव को भी एक साल से ज्यादा समय तक कार्यवाहक कमिश्नर ही बना के रखा गया था, रिटायरमेंट से करीब चालीस दिन पहले ही सच्चिदानंद श्रीवास्तव को नियमित कमिश्नर नियुक्त किया गया था।
अब राकेश अस्थाना को कमिश्नर बनाने से बालाजी श्रीवास्तव को भी जोर का झटका लगा है। क्योंकि वह तो नियमित कमिश्नर की तरह अपने कार्य में जुट गए थे।
वैसे झटका तो उन जुगाड़ू एसएचओ/इंस्पेक्टर आदि को भी लगा है जो यह देख कर ही उस आईपीएस की सेवा/ फटीक करते है जोकि भावी कमिश्नर होता है। ऐसे में दूसरे आईपीएस को वह खास तवज्जो तक भी नहीं देते है।
अब बाहरी आईपीएस को कमिश्नर बना दिए जाने से उन्हें भी दिक्कत होगी।
आईपीएस बेचारे सत्ता से हारे –
वैसे बालाजी श्रीवास्तव को कमिश्नर का अतिरिक्त प्रभार दिया गया तो कमिश्नर पद के दावेदार 1987 बैच के आईपीएस अफसर सत्येंद्र गर्ग और ताज हसन को दरकिनार कर दिया गया था। इसके बाद ताज हसन को सिविल डिफेंस, होमगार्ड और फायर सर्विस का महानिदेशक बना दिया गया।
“हम नहीं बने तो कोई बात नहीं”, लेकिन बालाजी भी कमिश्नर नहीं बन पाया यह सोच के बहुत से आईपीएस खुद को तसल्ली दे सकते हैं।
बारी से पहले कमिश्नर की परंपरा-
सत्ता द्वारा बारी से पहले यानी लाइन तोड़ कर और दूसरे का हक मार कर अपने खास वफादार आईपीएस को कमिश्नर बनाने की परंपरा बन गई है।
किरण बेदी को दरकिनार करके उनसे जूनियर युद्धबीर डडवाल को कमिश्नर बनाया गया था। दीपक मिश्रा,धर्मेंद्र कुमार और कर्नल सिंह को दरकिनार करके उनसे जूनियर अमूल्य पटनायक को कमिश्नर बनाया गया था। ये सभी एजीएमयूटी काडर के ही थे। अब इस काडर के ही 1987 और 1988 बैच के आईपीएस अफसरों को दरकिनार करके गुजरात काडर के राकेश अस्थाना को तो रिटायरमेंट से ठीक पहले बाहर से लाकर कमिश्नर बना दिया गया।
जब बारी से पहले किसी को कमिश्नर बनाया जाता है तो जाहिर सी बात है कि उस आईपीएस का नुकसान हो जाता है जो बारी के हिसाब से कमिश्नर बनने का असली हकदार होता है।
वैसे सच्चाई यह है कि सरकार किसी भी दल की हो पुलिस का इस्तेमाल सभी सत्ता के लठैत के रुप में करते हैं। इसलिए वह कमिश्नर ऐसे अफसर को बनाते हैं जो उनके इशारे पर कठपुतली की तरह नाचे।
कहीं दीप जले कहीं दिल-
राकेश अस्थाना को कमिश्नर बनाए जाने का असर उन आईपीएस अफसरों पर पड़ा है जो कमिश्नर बनने की कतार में सबसे प्रबल दावेदार थे और हैं।
अगर राकेश अस्थाना दो साल इस पद रहे ,जिसकी पूरी संभावना है, तो एजीएमयूटी काडर के अनेक स्वभाविक दावेदार आईपीएस अफसर कमिश्नर बने बगैर ही सेवानिवृत्त हो जाएंगे।अपनी बारी की बाट जोह रहे उन आईपीएस के साथ यह अन्याय है। क्योंकि अपने-अपने काडर में आईपीएस की स्वाभाविक मंजिल/लक्ष्य और सपना पुलिस बल के मुखिया का पद ही होता है। सत्ता ने उनका सपना और दिल तोड़ दिया और उनका हक छीन लिया।
इसे राकेश अस्थाना की किस्मत भी कह सकते हैं कि रिटायरमेंट से ठीक पहले उन्हें देश की राजधानी के पुलिस कमिश्नर पद भी मिल गया। दूसरी ओर उन आईपीएस की बदकिस्मती जिनकी कमिश्नर बनने की बारी थी।
ऐसे में यह कहीं दीप जले, कहीं दिल वाली स्थिति है।
नियम तोड़ा-
राकेश अस्थाना को कमिश्नर नियुक्त कर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश की धज्जियां उड़ाई हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने प्रकाश सिंह के मामले में कहा था कि राज्य सरकार पुलिस महानिदेशक या पुलिस आयुक्त का नाम तय करने के लिए पहले यह सुनिश्चित कर लें कि उनका कार्यकाल पर्याप्त बचा हो।
इसी वजह से राकेश अस्थाना को सीबीआई डायरेक्टर नहीं बन पाए थे। लेकिन अब उन्हें कमिश्नर बना दिया गया।
राकेश अस्थाना का इतिहास-
राकेश अस्थाना, आईपीएस (1984) ने बुधवार को पुलिस आयुक्त पदभार ग्रहण किया। इससे पहले अस्थाना महानिदेशक, सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) और महानिदेशक, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) थे।
राकेश अस्थाना ने इसके पहले सीबीआई के विशेष निदेशक और नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो के महानिदेशक के पदों पर कार्य किया है।
इससे पहले गुजरात में, उन्होंने सूरत और वडोदरा शहरों में पुलिस आयुक्त के रूप में कार्य किया है।
अजय राज शर्मा दबंग कमिश्नर-
ऐसा यह तीसरा उदाहरण हैं जब एजीएमयूटी काडर के बाहर से एक आईपीएस अधिकारी को दिल्ली पुलिस कमिश्नर के रूप में नियुक्त किया गया हो।
साल 1999 में भाजपा के शासन काल में 1966 बैच के उत्तर प्रदेश काडर के आईपीएस अजय राज शर्मा को दिल्ली पुलिस का कमिश्नर बनाया गया था। काबिल और दबंग अजय राज शर्मा सबसे सफल कमिश्नर रहे हैं। अजय राज शर्मा से आईपीएस अफसर तक डरते थे। कमिश्नर के पद पर तीन साल की बेहतरीन पारी के बाद उन्हें सीमा सुरक्षा बल का महानिदेशक बनाया गया।
इसके पहले महाराष्ट्र काडर के आईपीएस एस एस जोग को भी दिल्ली पुलिस का कमिश्नर बनाया गया था।
लेकिन राकेश अस्थाना और उपरोक्त दोनों अफसरों में एक बड़ा अंतर यह है कि उपरोक्त दोनों अफसरों को जब नियुक्त किया गया तो उनका कार्यकाल कई सालों का बचा हुआ था। जबकि राकेश अस्थाना को रिटायरमेंट से ठीक पहले सरकार ने सेवा विस्तार देकर कमिश्नर बनाया है।
राकेश अस्थाना विवाद-
राकेश अस्थाना का साल 2018 में सीबीआई में कार्यकाल के दौरान सीबीआई के तत्कालीन निदेशक आलोक वर्मा से विवाद हुआ था और दोनों ने एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। आलोक वर्मा के द्वारा 15 अक्टूबर, 2018 को अस्थाना के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज करवाई गई थी। अस्थाना पर आरोप लगा था कि मांस कारोबारी मोइन कुरैशी मामले में एक संदिग्ध को मामले में राहत देने के लिए उन्हें दो बिचौलियों के माध्यम से 2.95 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था।
सरकार ने इसके बाद दोनों अधिकारियों को सीबीआई से हटा दिया था। बाद में अस्थाना को आरोपमुक्त कर दिया गया था।
राकेश अस्थाना ने सीबीआई में दो बार सेवा दी है पहले कार्यकाल के दौरान उन्होंने बिहार में चारा घोटाले की जांच की थी, जिसके परिणामस्वरूप बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव को दोषी ठहराया गया था। गुजरात में उन्होंने नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के दौरान वडोदरा के पुलिस आयुक्त जैसे महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया था। तभी से वह मोदी के करीबी हैं।
बुनियादी पुलिसिंग प्राथमिकता-
बेसिक पुलिसिंंग, अपराध की रोकथाम (प्रिवेंशन) और अपराध के मामलों का पता लगाना/सुलझाना(डिटेक्शन)दिल्ली के नवनियुक्त पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना की प्राथमिकता है।
राकेश अस्थाना ने पुलिस कमिश्नर का पद भार संभालने के बाद पुलिस के वरिष्ठ अफसरों के साथ की गई बैठक में अपनी प्राथमिकताएं बताई।
राकेश अस्थाना ने अफसरों से बेसिक पुलिसिंग पर फोकस करने को कहा है।
अपराध की रोकथाम और अपराध का पता लगाने, कानून व्यवस्था बनाए रखने और प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में विशेष कार्यों पर फोकस करने को कहा है। पुलिस को टीम के रुप में काम करना चाहिए।
कमिश्नर राकेश अस्थाना ने कहा पुलिस का मूल काम कानून एवं व्यवस्था बनाए रखना होता है। अपराध की रोकथाम और पता लगाना है उनका फोकस बेसिक पुलिसिंग पर रहेगा।
कमिश्नर ने कहा मेरी समझ जहां तक है अगर ये काम बखूबी करेंगे तो जनता को संतुष्टि रहेगी और कानून व्यवस्था बनी रहेगी।
कमिश्नर ने कहा कि मुझे पूरी उम्मीद और भरोसा है पुलिस एक टीम की तरह काम करेगी, दिल्ली में बेहतर कानून व्यवस्था बनाए रखने का प्रयास करेंगे।
सुरक्षा की भावना-
कमिश्नर ने कहा कि अपराध का पता लगाना और रोकथाम के कड़े उपाय न केवल अपराध के बोझ को कम करते हैं बल्कि शहर में सुरक्षा की भावना को सुनिश्चित करते हैं खासतौर पर महिलाओं और कमजोर वर्ग समूहों के बीच,जिसके लिए पुलिस को ज्यादा से ज्यादा प्रयास करते रहना चाहिए।
कमिश्नर ने दिल्ली में कानून और व्यवस्था की स्थितियों से निपटने में दिल्ली पुलिस के ट्रैक रिकॉर्ड की प्रशंसा की और साइबर अपराध, आतंक, नशीले पदार्थों, बंदूक तस्करी आदि का भंडाफोड़ करने में अच्छे कामों को जारी रखने पर जोर दिया।
देखना है दम कितना राकेश अस्थाना में है? –
पिछले कई सालों से कमिश्नर के पद पर ऐसे नाकाबिल आईपीएस अफसर आए हैं जिन्होंने सत्ता के लठैत बन खाकी को खाक में मिला दिया। ऐसे कमिश्नरों के कारण ही पुलिस में भ्रष्टाचार व्याप्त है। ये कमिश्नर अपराध और अपराधियों पर अंकुश लगाने में भी विफल रहे। पेशेवर रुप से नाकाबिल कमिश्नरों के कारण ही आईपीएस अफसर और मातहत पुलिसकर्मी भी निरंकुश हो जाते हैं। जिसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ता हैं। हालत यह है कि लूट,झपटमारी आदि अपराध की सही एफआईआर तक दर्ज नहीं की जाती है। अपराध कम दिखाने के लिए अपराध को दर्ज ना करने या हल्की धारा में दर्ज किए जाने की परंपरा जारी है। थानों में लोगों से पुलिस सीधे मुंह बात तक नहीं करती। डीसीपी या अन्य वरिष्ठ अफसरों से मिलने के लिए भी लोगों को सिफारिश तक करानी पड़ती है।
अब यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि राकेश अस्थाना अपनी पेशेवर काबिलियत दिखा कर कमिश्नर पद का सम्मान,गरिमा बहाल करेंगे या वह अपने पूर्ववर्ती कमिश्नर की तरह सत्ता के लठैत बन पद की गरिमा को मटियामेट करेंगे।
दिल्ली पुलिस के कमिश्नर पद पर पहले अनेक ऐसे आईपीएस अफसर रहे हैं जिनकी काबिलियत और दमदार नेतृत्व क्षमता की मिसाल दी जाती है। काबिल कमिश्नर से ही आईपीएस भी डरते हैं।
कमिश्नर, आईपीएस उड़ा रहे नियमों की धज्जियां-
नवनियुक्त कमिश्नर पुलिस मुख्यालय में पहुंचे तो मास्क पहन कर, लेकिन अंदर मास्क उतार दिया।
अगर फोट़ो खिंचवाने के लिए भी मास्क हटाया गया हो तो भी हैं तो यह नियमों का उल्लंघन ही। दूसरा उन्हें बिना मास्क की फोटो सार्वजनिक नहीं करनी चाहिए इससे तो गलत संदेश ही जाता है।
पीएम की भी नहीं मानते-
दो गज दूरी, मास्क है जरुरी। इस मंत्र का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगातार जाप कर रहे हैं। लेकिन उनकी नाक के नीचे ही इस नियम का उल्लंघन पुलिस कमिश्नर और आईपीएस अफसर ही नहीं और उनकी पत्नियां तक करते हैं।
मास्क और दो गज दूरी का पालन न करने पर दिल्ली पुलिस द्वारा जमकर लोगों के चालान किए जा रहे हैं। पुलिस द्वारा रोजाना चालान के आंकड़ों से यह दिखाया जा रहा है कि पुलिस कितनी मुस्तैदी से काम कर रही है। लेकिन पुलिस की यह मुस्तैदी सिर्फ़ आम जनता पर ही दिखाई जा रही हैं।
पूर्व पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव और आईपीएस अफसर ही नहीं उनकी पत्नियां तक इन नियमों की धज्जियां उड़ाई हैं।
कमिश्नर,आईपीएस नहीं मानते नियम कायदे-
पुलिस बल के मुखिया ,आईपीएस अफसरों और उनकी पत्नियों द्वारा ही नियमों का पालन और सम्मान नहीं करने से मातहत पुलिसकर्मियों में ही नहीं समाज में भी ग़लत संदेश जाता है।
पुलिस कमिश्नर, आईपीएस अफसर और उनकी पत्नी क्या नियम कायदे से ऊपर है ?
क्या नियम कायदे सिर्फ आम लोगों के लिए ही हैं ?
कानून के रखवाले पुलिस कमिश्नर और आईपीएस अफसरों,और उनकी पत्नियों द्वारा ही नियमों का उल्लंघन गंभीर और शर्मनाक है। कमिश्नर और आईपीएस की पेशेवर काबिलियत पर भी सवालिया निशान लग गया है।
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