✅ Janmat Samachar.com© provides latest news from India and the world. Get latest headlines from Viral,Entertainment, Khaas khabar, Fact Check, Entertainment.

यह औरत कर रहीं है कश्मीर से कन्याकुमारी तक पदयात्रा

नई दिल्ली: एक महिला अकेले कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक पैदल यात्रा पर निकली है, नाम है सृष्टि बख्शी। सामने हैं 11 राज्य, 3,600 किलोमीटर की राह और चलते हुए गुजारने हैं 260 दिन।

सृष्टि भारत में महिलाओं की सुरक्षा और सामाजिक स्थिति के बारे में जागरूकता पैदा करने के मिशन पर निकली हैं। उनके पास एमबीए की डिग्री है और बेहतरीन नौकरी भी। वह अपने पति के साथ हांगकांग में रहती हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में साल 2016 में हुई एक भयावह घटना ने उनके दिलोदिमाग पर गहरा असर डाला था, जिसमें एक मां और बेटी को उसकी कार से खींचकर सामूहिक दुष्कर्म किया गया था। इस डरावनी घटना ने उनके मन पर ऐसा असर डाला कि उन्होंने अपनी हाई प्रोफाइल नौकरी छोड़कर ‘क्रासबो’ नामक आंदोलन शुरू किया, जिसका उद्देश्य महिलाओं को सशक्त बनाना और भारत को महिलाओं के लिए सुरक्षित स्थान बनाना है।

सृष्टि ने आईएएनएस को टेलीफोन पर बताया, “मुझे इस तथ्य पर शर्म महसूस होता है कि भारत महिलाओं के लिए सुरक्षित स्थान नहीं माना जाता है। यह विचार मुझे अक्सर क्रोधित कर देता है। मैं भारत में महिलाओं के लिए कुछ करना चाहती हूं।”

उन्होंने आगे कहा, “मुझे सामाजिक कार्यो का कोई अनुभव नहीं है। मैंने वापस भारत लौटकर अपनी योजनाओं के बारे में अपने परिवार से बात की। मैं आर्मी बैकग्राउंड से ताल्लुक रखती हूं, और मेरे माता-पिता और पति ने मेरे विचार का पुरजोर समर्थन किया।”

लेकिन अपने मिशन को शुरू करने से पहले सृष्टि को पूरे साल इसकी तैयारी करनी पड़ी। इस दौरान वे मसल रिपेयर थेरेपी समेत कठिन शारीरिक प्रशिक्षण से गुजरीं। और यह केवल शारीरिक प्रशिक्षण नहीं था, सृष्टि को इस मिशन के लिए खुद को भी मानसिक रूप से तैयार करना पड़ा।

सृष्टि ने बताया, “मैंने काफी शोध किया और कई लोगों से बात की, जिनका सामाजिक कार्य के क्षेत्र में कई सालों का अनुभव था। मैं अपने पिता के साथ भारत का एक बड़ा सा नक्शा लेकर बैठा करती थी और कहां-कहां जाना है, इसकी योजना बनाया करती थी।”

उन्होंने अपनी यात्रा पिछले साल 15 सितंबर को तमिलनाडु के कन्याकुमारी से शुरू की और अब तक सृष्टि आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश को पैदल पार कर चुकी हैं। फिलहाल वह दिल्ली में हैं, जहां वह 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस से पहले इंडिया गेट पर राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) की भागीदारी में 4 मार्च को एक कार्यक्रम का आयोजन कर रही हैं।

वह इस मिशन के अंतर्गत रोजाना 25 से 30 किलोमीटर पैदल चलती हैं। हालांकि केवल पैदल चलते जाना उनका लक्ष्य नहीं है। वह महिलाओं के लिए गांवों में कार्यशालाओं का आयोजन करती हैं और स्कूलों और कॉलेजों में सत्रों का आयोजन करती हैं, ताकि लोगों को महिलाओं की स्थितियों और उनके द्वारा सामना किए जानेवाली परिस्थितियों के बारे में जागरूक किया जा सके।

सृष्टि कहती हैं, “ये कार्यशाला केवल महिलाओं के लिए नहीं हैं, बल्कि पुरुषों और युवा लड़कों के लिए भी है। मुझे लगता है कि उनके लिए महिलाओं के सशक्तीकरण में विश्वास करना भी उतना ही जरूरी है। लड़के और लड़की के बीच लिंगभेद की खाई को पाटना बेहद जरूरी है।”

अपने अब तक के अनुभव के बारे में उन्होंने कहा कि इस यात्रा ने उन्हें उन सामाजिक-आर्थिक संकट की कठोर वास्तविकताओं और सच्चाइयों से गहरे रूप से जुड़ने का अवसर प्रदान किया है, जिससे भारत की महिलाओं को जूझना पड़ता है।

उन्होंने कहा, “घरेलू हिंसा, शराब की खुली खपत, पुलिस बल की कमी और पीड़ित महिलाओं के प्रति सहानुभूति की कमी जैसी कुछ क्रूर सच्चाइयां हैं, जिसका उन्होंने अभी तक सामना किया है।”

सृष्टि ने कहा कि उनकी अब तक की यात्रा किसी ‘लॉजिस्टिकल दु:स्वप्न’ से कम नहीं है।

वह कहती हैं, “यह मानसिक और शारीरिक रूप से काफी थकाऊ है। मैं रोजाना 100 से ज्यादा लोगों से मिलती हूं, उनसे बात करती हूं, उनके साथ मुद्दों पर चर्चा करती हूं और किसी समाधान पर पहुंचने की कोशिश करती हूं। इन सब के लिए काफी द्वारा मानसिक शक्ति की जरूरत होती है। उसके बाद शारीरिक शक्ति की बात आती है, यहां तक कि अगर में बहुत ज्यादा थकी भी हुई हूं तो अगली सुबह मुझे फिर से ऊर्जावान होना होता है, ताकि मैं अपनी यात्रा पर आगे बढ़ सकूं।”

कौन सी चीज चलने के लिए प्रेरित करती है? यह पूछने पर उन्होंने कहा, “जहां-जहां मैं गई हूं, हर जगह लोगों से मिलनेवाला प्यार और समर्थन प्रेरित करता है। आज के दिन तक मैं 25,000 से ज्यादा लोगों से मिल चुकी हूं, उनमें से कुछ के अच्छे विचार नहीं थे। लेकिन मुझे स्थानीय लोगों से अपने काम में बहुत मदद मिली और उम्मीद है कि श्रीनगर तक यह मिलता रहेगा।”

यह पूछे जाने पर कि समाज में परिवर्तन लाने के उनके मिशन को लेकर वह कितनी आशावान हैं, सृष्टि ने अपने अभियान पर भरोसा जताया।

उन्होंने कहा, “मैं नहीं जानती कि कितनों के जीवन में बदलाव आएगा या क्या मैं किसी प्रकार का बदलाव लाने में सफल हो पाऊंगी, लेकिन हर बार जब कोई व्यक्ति मुझे बुलाता है, तो मुझे लगता है कि मैं सही दिशा में काम कर रही हूं। बदलाव लाने में वक्त लगेगा। मैंने बीज बो दिया है और बदलाव का इंतजार कर रही हूं।”

–आईएएनएस

About Author