लखनऊ: देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का 94 वर्ष की उम्र में गुरुवार की शाम निधन हो गया। अटल वर्ष 1991 से 2004 तक लगातार लखनऊ से सांसद चुने गए। उनका उत्तर प्रदेश की राजधानी से गहरा नाता रहा।
उनको जानने वाले बताते हैं कि वह एक कुशल राजनेता, कवि, प्रखर वक्ता और पत्रकार के रूप में राजनेताओं और जनता के बीच लोकप्रिय रहे और उन्होंने हमेशा लखनऊवासियों के दिल पर राज किया।
एक साधारण परिवार में जन्मे अटल तीन बार देश के प्रधानमंत्री बने। बहुमुखी प्रतिभा के धनी अटल जी ने छात्र जीवन से ही अपना लोहा मनवाया। अध्यापक और कवि पिता के पुत्र अटल बिहारी वाजपेयी को कविता विरासत में मिली थी। राजधानी लखनऊ को अपनी राजनैतिक कर्मभूमि बनाने वाले अटल ने अपना पहला काव्य पाठ भी यहीं किया था।
लखनऊ के कालीचरण इंटर कॉलेज में वह पहली बार कविता के मंच पर आए और अपने प्रतिभा को सार्वजनिक किया था। यह कॉलेज अटलजी की यादों को संजोये हुए है।
कालीचरण डिग्री कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. देवेंद्र ने बताया, “पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सन् 1950 के दशक में इसी कॉलेज परिसर में अपना पहला कविता पाठ किया था। उस समय वह आरएसएस से जुड़े हुए थे। इतना ही नहीं, अटल बिहारी वाजपेयी इस कॉलेज परिसर में रुके भी थे। आज हर व्यक्ति अटल जी के जाने से दुखी है।”
ज्ञात हो कि अटल बिहारी वाजपेयी वर्ष 1991 से 2004 तक लगातार लखनऊ से सांसद चुने गए। उनका राजधानी लखनऊ से गहरा नाता रहा है। लखनऊ के कायाकल्प में भी अटल का खासा योगदान रहा।
लखनऊ को बहुत कुछ दिया :
सांसद और प्रधानमंत्री रहते उन्होंने लखनऊ को कई विकास की सौगातें दी। आज अगर लखनऊ का कायाकल्प हुआ है तो उसका श्रेय अटल जी को ही जाता है। उन्होंने यहां कई विकास परियोजनाओं की सौगात दी।
शहीद पथ, साइंटिफिक सेंटर, लखनऊ-कानपुर हाईवे, अशोक मार्ग पर रास्ते का चौड़ीकरण, स्ट्रीट लाइट, गोमतीनगर का नया रेलवे स्टेशन, कल्याण मंडप, भीड़भाड़ वाले निरालागर रेलवे क्रॉसिंग पर फ्लाईओवर का निर्माण, लखनऊ रिंग रोड बाइपास, लखनऊ एयरपोर्ट रनवे का विस्तारीकरण, अलीनगर में आंबे योजना के तहत कमजोर वर्ग के लिए 14, 350 मकानों का निर्माण, गोमतीनगर में क्षेत्रीय पासपोर्ट ऑफिस का निर्माण शामिल है।
तब लखनऊ से हार गए थे लोकसभा चुनाव :
पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी सन् 1957 में बलरामपुर लोकसभा क्षेत्र से जनसंघ के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़े थे। उस साल जनसंघ ने उन्हें लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर तीन लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ाया था।
लखनऊ में वह चुनाव हार गए, मथुरा में उनकी जमानत जब्त हो गई, लेकिन बलरामपुर से चुनाव जीतकर वे दूसरी लोकसभा में पहुंच गए। वाजपेयी के अगले पांच दशकों के लंबे संसदीय करियर की यह शुरुआत थी।
पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी के निधन के बाद उप्र के उपमुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा भावुक हो गए। उनके साथ गुजारे लम्हों को याद करते हुए उन्होंने कहा, “अटलजी की लखनऊ में आखिरी जनसभा हुई थी। जनसभा 2006 में कपूरथला में थी। उसके बाद उन्होंने लखनऊ में कोई जनसभा नहीं की।”
उन्होंने कहा कि अटलजी अपने आप में विराट व्यक्तित्व के थे। आज उनकी तुलना विश्व के किसी से नहीं की जा सकती। लखनद में तो होड़ लगती थी कि अटलजी का खास कौन है? इतने बड़े नेता छोटे से छोटे कार्यकर्ता को भी नाम से बुला लेते थे।
अटलीजी के करीबी और पूर्व सांसद लालजी टंडन ने भी अटल जी को याद किया। उन्होंने कहा कि अटलजी सबसे अलग थे। उनका व्यक्तित्व पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा। लखनऊ उनके घर जैसा रहा है। वह यहां से कई बार सांसद बने।
टंडन ने कहा कि उनकी पंक्तियां, ‘छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता, टूटे तन से कोई खड़ा नहीं होता’ उनके व्यक्तित्व की परिभाषित करता है। यह दिखाता है कि उनका हृदय कितना बड़ा था।
भावुक होते हुए टंडन ने कहा कि जीवन के हर क्षेत्र के लोग चाहे वह राजनीति हो या धार्मिक, सभी उन्हें आदर देते थे और अटलजी के नाम से बुलाते थे। लखनऊ से उनका गहरा नाता रहा है। अटलजी ने कभी दलगत राजनीति नहीं की।
गौरतलब है कि 1960 में अटलजी ने लालजी टंडन को सभासद बनाने के लिए लखनऊ के चौक क्षेत्र में घर-घर जाकर प्रचार किया था। वाजपेयी ने ऐसा लखनऊ के तीसरे मेयर रहे डॉ. पी.डी. कपूर के कहने पर किया था। उस वक्त अटलजी ने लालजी टंडन का प्रचार कर उनकी जीत सुनिश्चित की थी।
इसके बाद जब अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीति से संन्यास ले लिया तो उनकी जगह लखनऊ से 2009 के लोकसभा चुनाव में लालजी टंडन को उम्मीदवार बनाया गया। उस वक्त वाजपेयी जी बीमार थे, हॉस्पिटल में भर्ती थे। एक बार फिर लखनऊ के लोगों ने अटलजी की सीट पर उनके चहेते लालजी टंडन को जीत दिलाई थी।
–आईएएनएस
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