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सिखों के अंतिम गुरु, गुरु गोविंद सिंह ने रखी थी खालसा पंथ की नींव, ग्रंथ साहिब को घोषित किया था ‘गुरु

नई दिल्ली, 6 अक्टूबर। सिख धर्म की स्थापना की थी गुरु नानक देव ने, जिन्होंने प्रेम, सेवा, परिश्रम, परोपकार, और भाईचारे की भावना को जन-जन तक पहुंचाने का काम किया। इस काम को आगे बढ़ाया सिख धर्म के बाकी नौ गुरुओं ने, जिनमें से एक गुरु का नाम था गुरु गोविंद सिंह। वह सिखों के अंतिम गुरु थे, उन्होंने ही अपने बाद गुरु ग्रंथ साहिब को ‘गुरु’ घोषित किया था। सिखों के दसवें और अंतिम गुरु, गुरु गोविंद सिंह की सात अक्टूबर को पुण्यतिथि है। जब वह नौ साल के थे, तो उन्होंने गुरु का पद संभाला। बाद में उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की। सिखों के दसवें और अंतिम गुरु का जन्म 22 दिसंबर 1666 में पटना में हुआ था। उन्होंने पढ़ने-लिखने के साथ-साथ युद्ध कला, तीरंदाजी और घुड़सवारी की भी शिक्षा प्राप्त की। वह न केवल एक बहादुर योद्धा थे, बल्कि एक महान कवि और दार्शनिक भी थे। साल 1675 में जब उनकी उम्र नौ साल थी, उस दौरान उनके पिता और सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर को मुगल बादशाह औरंगजेब ने मार दिया था। इसके बाद उन्होंने 10वें गुरु के रूप में जिम्मेदारी संभाली। सिख धर्म के अनुसार, उन्होंने अन्याय, अत्याचार और पापों को खत्म करने और धर्म की रक्षा के लिए मुगलों के साथ 14 युद्ध लड़े। साल 1704 में हुई आनंदपुर की लड़ाई में उन्होंने अपनी मां और दो नाबालिग बेटों को खो दिया, उनके सबसे बड़े बेटे भी युद्ध में मारे गए।

उन्होंने सिख धर्म के लिए खालसा पंथ की स्थापना की। इसके अनुसार, खालसा को हमेशा केश (बिना कटे बाल), कंगा (लकड़ी की कंघी), कड़ा (लोहे या स्टील का कंगन), कृपाण (खंजर) और कच्छेरा (छोटी पतलून) रखनी होगी। इस परंपरा का आज भी पालन किया जाता है। उन्होंने खालसा योद्धाओं के लिए कई अन्य नियम भी निर्धारित किए। इसमें तंबाकू, शराब व हलाल मांस से दूरी बनाना शामिल है। गुरु गोविंद सिंह ने जफरनामा भी लिखा था, जो मुगल बादशाह औरंगजेब को लिखा गया पत्र था। ऐसा माना जाता है कि औरंगजेब गुरु से मिलने के लिए राजी हो गया था, लेकिन उससे पहले ही उसकी मौत हो गई थी। औरंगजेब की मृत्यु के बाद गुरु गोविंद सिंह ने बहादुरशाह को बादशाह बनाने में मदद की थी। गुरु और बहादुरशाह की न‍िकटता के कारण नवाब वजीत खां ने उनके पीछे दो पठानों को लगा दिया था। बताया जाता है कि पठानों ने गुरु गोविंद सिंह पर धोखे से घातक हथियार से हमला किया था। 7 अक्टूबर 1708 को उनकी नांदेड़ साहिब में मुत्यु हो गई। उनकी मौत के बाद सिखों और मुगलों के बीच एक लंबा युद्ध भी चला।

–आईएएनएस

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