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सुभाष चंद्र बोस : अफसरी नहीं सुहाई, बना ली आजाद हिंद फौज

 

विभा वर्मा, 

नई दिल्ली। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पिता बेटे को आईसीएस (भारतीय सिविल सेवा) का अफसर बनाना चाहते थे। इसकी तैयारी के लिए सुभाष लंदन चले गए। 1920 में सुभाष ने आईसीएस की परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया, लेकिन अंग्रेजों की गुलामी करना उन्हें मंजूर नहीं था और उन्होंने आजाद हिंद फौज का गठन कर अंग्रेजों से लोहा लेने की ठान ली।

 

स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता सुभाष का जन्म 23 जनवरी, 1897 को ओडिशा के कटक में जानकीनाथ बोस और प्रभावती देवी के यहां हुआ था। उन्होंने ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ का नारा दिया, जो भारतीय युवाओं में एक नया जोश भर गया। सुभाष के पिता प्रतिष्ठित सरकारी वकील थे। वह बंगाल विधानसभा के सदस्य भी रह चुके हैं और ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ‘रायबहादुर’ के किताब से भी नवाजा था।

 

जानकीनाथ अपने बेटे को भी ऊंचे ओहदे पर देखना चाहते थे। सुभाष ने कटक के प्रोटेस्टेंट यूरोपियन स्कूल से प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की। 1916 में जब सुभाष प्रेसीडेंसी कॉलेज से दर्शनशास्त्र में बीए कर रहे थे, तभी किसी बात पर छात्रों और अध्यापकों के बीच झगड़ा हो गया, सुभाष ने छात्रों का साथ दिया, जिस कारण उन्हें कॉलेज से एक साल के लिए निकाल दिया गया और परीक्षा देने पर भी प्रतिबंध लगा दिया।

 

49वीं बंगाल रेजीमेंट में भर्ती होने के लिए उन्होंने परीक्षा दी, लेकिन आंखों की दृष्टि कमजोर होने को चलते वह अयोग्य करार दे दिए गए।

 

स्वामी विवेकानंद और महर्षि अरविंद घोष से सुभाष बहुत प्रभावित थे। वह अपने देश को अंग्रेजों के चगुल से आजाद कराना चाहते थे। रवींद्रनाथ ठाकुर की सलाह पर सुभाष भारत आने पर सर्वप्रथम मुंबई गए और गांधी जी से मिले। गांधी ने उन्हें कोलकाता जाकर देशबंधु चित्तरंजन दास ‘दास बाबू’ के साथ काम करने की सलाह दी। 1922 में दासबाबू ने कांग्रेस के अंतर्गत स्वराज पार्टी की स्थापना की। कोलकाता महापालिका का चुनाव लड़कर दासबाबू महापौर बन गए और सुभाष को उन्होंने महापालिका का प्रमुख कार्यकारी अधिकारी बनाया। युवा सुभाष जल्द ही देशभर में लोकप्रिय नेता बन गए।

 

अंग्रेजी सरकार के खिलाफ आंदोलन चलाने के कारण सुभाष को कुल 11 बार जेल जाना पड़ा। सबसे पहले उन्हें 16 जुलाई, 1921 को छह महीने जेल में रहने की सजा सुनाई गई थी।

 

1930 में जब सुभाष ने जेल से ही चुनाव लड़ा और वह कोलकाता के महापौर चुने गए, जिसके चलते अंग्रेजों को उन्हें जेल से रिहा करना पड़ा। 1932 में वह फिर गिरफ्तार हुए। उनकी तबीयत बिगड़ती जा रही थी, चिकित्सकों की सलाह पर उन्हें इलाज के लिए यूरोप जाना पड़ा। 1934 में सुभाष ने ऑस्ट्रिया की एमिली शेंकल से शादी की और एमिली ने उनकी पुत्री अनीता को जन्म दिया।

 

1938 में गांधीजी ने सुभाष को कंग्रेस अध्यक्ष बनाया, लेकिन उन्हें सुभाष के काम करने की शैली पसंद नहीं थी। कांग्रेस से वैचारिक मतभदों के चलते सुभाष ने यह पार्टी छोड़ दी। उन्होंने आजाद हिंद फौज का गठन किया और द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान ही जापान के सहयोग से भारत पर आक्रमण कर दिया, लेकिन अंग्रेजों का पलड़ा भारी पड़ा।

 

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापान की हार के बाद सुभाष ने रूस से सहायता मांगने का विचार किया। 18 अगस्त 1945 को जब वह मंचूरिया की ओर जा रहे थे, तभी उनका विमान लापता हो गया और वह फिर कभी नजर नहीं आए।

 

23 अगस्त, 1945 को टोकियो रेडियो ने बताया कि सैगोन आते वक्त 18 अगस्त, 1945 को एक विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसमें नेताजी गंभीर रूप से जल गए और ताइहोकू सैन्य अस्पताल में उन्होंने दम तोड़ दिया। हालांकि इस घटना की पूरी तरह से कभी पुष्टि नहीं हो पाई और उसका रहस्य अभी तक बरकरार है।

 

आजदी मिलने के बाद भारत सरकार ने नेताजी के निधन बारे में जांच के लिए 1956 और 1977 में आयोग नियुक्त किया, लेकिन नतीजा यही निकला कि वह विमान दुर्घटना में मारे गए, हालांकि ताइवान की सरकार ने दोनों आयोग से कोई बात नहीं की।

 

सन् 1999 में मुखर्जी आयोग का गठन किया गया, जिसे ताइवान सरकार ने बताया कि ताइवानी भूमि पर 1945 में कोई विमान दुर्घटना नहीं हुई थी। 2005 में मुखर्जी आयोग ने अपनी रिपोर्ट पेश की, लेकिन भारत सरकार ने इसे मानने से इनकार कर दिया। नेताजी उनकी मौत की गुत्थी अभी तक सुलझ नहीं पाई है।

 

सुभाष अमर हैं, उनकी कीर्ति अमर है। उन्होंने देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। ऐसे महान देशभक्त को शत-शत नमन!

(आईएएनएस)

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