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सुशांत एक ‘ऑल-राउंडर’ थे: दिवंगत अभिनेता की स्कूल दोस्त ने किया याद

सिमरन सेठी

नई दिल्ली| दिवंगत बहुमुखी अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत वास्तविक जीवन में भी एक “कंप्लीट पैकेज” की तरह थे, स्कूल के दिनों की उनकी करीबी दोस्त आरती बत्रा दुआ ने बीते दिनों को याद करते हुए यह बात कही।

वह कहती हैं कि वह “लोगों से बहुत गहराई से जुड़ा था, वह उन्हें अपना बहुत करीबी मानता था।”

पटना के सेंट करेन हाई स्कूल में शुरुआती पढ़ाई करने वाले सुशांत 2001 में उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली आए। दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग (डीसीई) से मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने से पहले उन्होंने कुलाची हंसराज मॉडल स्कूल में पढ़ाई की। दिल्ली के इसी स्कूल में सुशांत और आरती करीबी दोस्त बने थे।

उन्होंने याद करते हुए कहा, “मैं जब पहली बार 11वीं में सुशांत से मिली, तब वह एक नए स्टूडेंट के रूप में आया था। हम अच्छे दोस्त बन गए। वह एक मजेदार व्यक्ति था। मैं पढ़ाई को लेकर गंभीर थी और वह चीजों को हल्के में लेने वाला था। ऐसा नहीं है कि उन्होंने पढ़ाई को नजरअंदाज किया, लेकिन उन्होंने कभी भी इसका तनाव नहीं लिया।”

आरती ने आईएएनएस को बताया, “सुशांत एक कंप्लीट पैकेज था। वह पढ़ाई में अच्छा था, वह स्कूल में शरारतें करता था। शिक्षक वास्तव में उसे पसंद करते थे। वह एक आलराउंडर था।”

उन्होंने आगे बताया ,”यह हमारे फेयरवेल का दिन था और मैं कुछ उदास महसूस कर रही थी। इंजीनियरिंग कोचिंग सेंटर के लोग हमारे स्कूल में आए थे और हमें भूरे रंग के लिफाफे में सैंपल पेपर दिए थे। सुशांत मेरे बगल में बैठा था। उन्होंने मेरी तरफ देखा और मेरा लिफाफा लेकर उस पर लिख दिया, ‘लॉट्स ऑफ लव, सुशांत’।”

“मैं नाराज थी क्योंकि उसने अपना नाम लिखकर मेरा लिफाफा बर्बाद कर दिया था। मैंने उससे कहा कि वह अपना लिफाफा मुझे दे और मेरा ले ले। तो बोला, ‘रख ले, बाद में लाइन में खड़े होने के बाद भी क्या पता ना मिले।’ वास्तव में उसने इसे साबित कर दिया। उसने अपने सपनों को पूरा करने के लिए सब कुछ किया। मुझे उस पर गर्व है। मेरे पास अभी भी वह भूरा लिफाफा है। यह सुशांत की मेरे लिए अनमोल याद है।”

बता दें कि सुशांत ने डीसीई में प्रवेश पाने के लिए 12वीं के बाद एक साल ड्रॉप लिया था।

आरती ने बताया, “पहली बार कोशिश की, तो वे इसे क्रैक नहीं कर पाए। उसकी मां का उसी साल निधन हो गया और वह अपनी मां से बहुत जुड़ा हुआ था। इसके बाद उसने बहुत पढ़ाई की और अगले साल डीसीई में दाखिला ले लिया। उसका ‘कभी हार नहीं मानने वाला’ रवैया था। उनके समर्पण ने मुझे बहुत प्रेरित किया।”

वह कहती हैं कि मैं हमेशा उसे बहुत याद करूंगी। उम्मीद करती हूं कि हमारा देश उसके योगदान को याद रखेगा।

–आईएएनएस

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