नेपीथा| म्यांमार की स्टेट काउंसलर आंग सान सू की ने मंगलवार को कहा कि उनका देश राखिने प्रांत में हो रही हिंसा के मद्देनजर 400,000 से ज्यादा रोहिंग्या मुसलमानों के बांग्लादेश पलायन करने को लेकर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के दबाव से नहीं डरता।
सू की ने राष्ट्रीय टेलीविजन पर अपने संबोधन में कहा, “म्यांमार सरकार का मकसद दोष से भागना या जिम्मेदारी से बचना नहीं है। हम सभी प्रकार के मानवाधिकारों के उल्लंघनों और गैर कानूनी हिंसा की निंदा करते हैं।”
उन्होंने कहा, “हम पूरे देश में शांति, स्थिरता और कानून का शासन बहाल करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”
सीएनएन के मुताबिक, सू की ने 25 अगस्त को राखिने में भड़की हिंसा के बाद स्थिति के बारे में पहली बार बात की है। गौरतलब है कि ‘अराकन रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी’ (एआरएसए) के विद्रोहियों ने 25 अगस्त को पुलिस चौकियों पर हमला कर दिया था और 12 सुरक्षाकर्मियों की हत्या कर दी थी।
नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित हो चुकीं सू की के भाषण को सुनने के लिए यंगून में मंगलवार सुबह एक बड़े स्क्रीन के बाहर भारी मात्रा में भीड़ इकट्ठी हुई।
वहीं, सोमवार को एक रैली में सैकड़ों लोगों ने एकत्र होकर सरकार के प्रति अपना समर्थन दर्शाया।
कुछ लोगों ने नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मलाला युसुफजई के चेहरे की तस्वीर वाले प्लाकार्ड पकड़ रखे थे, जिस पर उनका चेहरा क्रॉस किया हुआ था। उल्लेखनीय है कि मलाला ने इससे पूर्व सू की को रोहिंग्या संकट के समाधान के लिए कदम उठाने को कहा था।
मलाला के संदर्भ में पोस्टर पर लिखा था, “आप पर शर्म है..अगर आप म्यांमार की वास्तविक स्थिति के बारे में नहीं जानतीं, तो बेहतर है, चुप रहें।”
सीएनएन ने बताया कि राखिने की स्थिति को संभालने के लिए सू की ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के हालिया सत्र में भाग नहीं लिया।
रोहिंग्या प्रकरण पर चुप्पी साधने के कारण सू की की चौतरफा आलोचना हो रही थी।
म्यांमार इस तथ्य के बावजूद कि कई रोहिंग्या परिवार राखिने में सालों से रह रहे हैं, इन्हें पड़ोसी देश बांग्लादेश से आए अवैध प्रवासी समझता है।
वहीं बांग्लादेश इन्हें म्यांमार का नागरिक मानता है।
–आईएएनएस
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