✅ Janmat Samachar.com© provides latest news from India and the world. Get latest headlines from Viral,Entertainment, Khaas khabar, Fact Check, Entertainment.

‘सेक्सी दुर्गा’ फिल्मोत्सव के लिए नामंजूर, निर्देशक ने छेड़ी लड़ाई

 

नई दिल्ली| तिरुवनंतपुरम के एक स्वतंत्र फिल्म निर्माता ने अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त अपनी फिल्म ‘सेक्सी दुर्गा’ को मंजूरी देने के लिए सेंसर बोर्ड से लड़ाई शुरू कर दी है। 

सनल कुमार शशिधरन की यह मलयालम फिल्म 23 सालों में पहली भारतीय फिल्म है, जिसे अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव रॉटरडैम (आईएफएफआर) में टाइगर पुरस्कार मिलने वाला है। 

फिल्म निर्माता ने कहा, “इस फिल्म को अगले माह होने वाले स्टार 2017 जियो मुंबई फिल्म महोत्सव में प्रदर्शित किए जाने पर सेंसर बोर्ड ने रोक लगा दी थी, क्योंकि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने निष्कर्ष निकाला था कि इस फिल्म के कारण लोगों की “धार्मिक भावनाएं आहत हो सकती हैं और कानून व्यवस्था भी प्रभावित हो सकती है।”

उन्होंने कहा कि इस फिल्म का किसी भी तरह से कोई धार्मिक संबंध नहीं है। 

फिल्म पर रोक से शशिधरन परेशान और नाराज हैं। उन्होंने यह तक कह दिया कि भारत ‘ईरान जैसा देश बनता जा रहा है।’ लेकिन उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी है और सेंसर बोर्ड से एक प्रमाणपत्र लेने के लिए आवेदन किया है। बोर्ड के लिए स्क्रीनिंग मंगलवार को हुई।

शशिधरन ने फोन पर आईएएनएस को बताया, “मैं सेंसर बोर्ड की राय का इंतजार कर रहा हूं। मैं इसके लिए लड़ने जा रहा हूं, क्योंकि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, कलात्मक चीज रचने की स्वतंत्रता का सवाल है .. मैं चुप नहीं बैठूंगा। मैं इसके लिए अदालत जकर अपील करूंगा और इस लड़ाई के लिए जो भी कर सकता हूं, करूंगा।” 

आईएफएफआर की आधिकारिक वेबसाइट पर बताया गया है कि राजश्री देशपांडे और कन्नन नायर अभिनीत ‘सेक्सी दुर्गा’ एक ऐसी फिल्म है, जिसमें यह दिखाया गया है कि एक पुरुष प्रधान समाज में जुनून और पूजा कैसे तेजी से उत्पीड़न और शक्ति के दुरुपयोग की मानसिकता पैदा करती है।

उन्होंने कहा, “दुर्गा फिल्म का नायक है। मुझे पता है कि लोग कहेंगे, दुर्गा तो हमारी देवी हैं, लेकिन अगर यह मामला है, तो सड़कों पर जाने वाली दुर्गा नाम की सभी महिलाओं की पूजा करें। लेकिन यह नहीं हो रहा है।” 

फिल्म निर्माता ने कहा, “मेरा कहने का मतलब है, भारत में दुर्गा नाम बड़ा ही सामान्य है। यह केवल देवी का नाम नहीं है। यहां कई इंसानों का नाम दुर्गा है। लेकिन आप देख सकते हैं कि उनके साथ इंसानों जैसा बर्ताव तक नहीं किया जाता। जब उन्हें मदद की जरूरत होती है, तब लोग उन्हें नकार देते हैं। लेकिन जब एक फिल्म का शीर्षक इस नाम से आता है तो लोग चिल्लाने लगते हैं, रोने लगते हैं और कहते हैं कि इससे हमारी धार्मिक भावनाएं आहत हो रही हैं।”

उन्होंने कहा, “भारतीय फिल्म निर्माता सच्चाई पर आधारित फिल्में बनाने का साहस दिखाते हैं, इसके लिए आंदोलन करते हैं, और वे (सरकार) उस आंदोलन को कुचलने की कोशिश कर रहे हैं। यह बहुत ही मुश्किल समय है।”

महोत्सव की निदेशक स्मृति किरण ने आईएएनएस को बताया, “हमें थियेटर में फिल्में चलाने के लिए सेंसर से छूट या प्रमाणीकरण की आवश्यकता होती है। शशिधरन ने अब सेंसर प्रमाणीकरण के लिए आवेदन किया है और हमें उम्मीद है कि वह इसे प्राप्त कर लेंगे, ताकि हम इसे महोत्सव में देख सकें।”

–आईएएनएस

About Author