इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली पुलिस मेंं निरंकुशता और भ्रष्टाचार दिनों दिन बढता जा रहा है। जबरन वसूली, रिश्वतखोरी ही नहीं पुलिसकर्मियों द्वारा लडकियों से छेड़खानी, हत्या, लूट, गांजा बेचने जैसे अपराध किए जाने के मामले आए दिन सामने आते रहते है। अवैध शराब, नशीले पदार्थो की बिक्री, सट्टा, अवैध पार्किंग, सडकों पर अतिक्रमण आदि पुलिस की मिलीभगत के बिना चल ही नहीं सकते हैं।
आईपीएस की भूमिका –
पुलिस की यह हालत आईपीएस अफसरों की काबिलियत और भूमिका पर सवालिया निशान लगाती है। आईपीएस अगर ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन करें तो ही पुलिस मेंं भ्रष्टाचार खत्म हो सकता है।
पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण ही अपराध बढ़ रहे और अपराधी भी बेखौफ होकर अपराध करते हैं। जाहिर सी बात है कि पुलिस अगर बेईमान और अपराधी से सांठगांठ करनेवाले वाली हो तो अपराधी तो बेखौफ होगा ही।
आंकड़ों के बाजीगर अफसर –
आज हालत यह है कि आम आदमी अपराधी के साथ साथ पुलिस से भी डरता है। पुलिस के खराब व्यवहार के कारण ही आम आदमी शिकायत दर्ज कराने भी अकेला थाने जाने से डरता है। लूट, मोबाइल/ पर्स की झपटमारी की वारदात तक सही दर्ज नहीं की जाती हैं।
अपराध के आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम दिखाने की परंपरा जारी है। इसलिए लूट, झपटमारी,जेबकटने और डकैती की वारदात को दर्ज न करने या हल्की धारा में दर्ज किया जाता है।
अपराध दर्ज करने से ही रुकेंगे अपराध-
पुलिस का मुख्य कार्य अपराध की रोकथाम और अपराध की एफआईआर दर्ज कर अपराधी को पकड़ने का होता है। लेकिन पुलिस अपना यह मूल काम करने के बजाए वसूली जैसे अन्य कार्यों में लगी रहती है। इस सब के लिए आईपीएस अफसर ही जिम्मेदार है। आईपीएस अफसर अगर ईमानदारी से अपने कर्तव्य का पालन करें तो एस एच ओ की क्या मजाल कि वह अपराध के मामलों को सही दर्ज न करें। सच्चाई यह है अपराध को दर्ज न करने मेंं आईपीएस अफसर की सहमति होती है।
पुलिस कमिश्नर और आईपीएस अपराध के आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम होने का दावा कर खुद को सफल अफसर दिखाने की कोशिश में जुटे रहते हैं।
सच्चाई यह है कि अपराध के मामलों को सही दर्ज करने से ही अपराध और अपराधियों पर काबू पाया जा सकता हैं।
IPS ईमानदार हो तो ईमानदार नजर आना जरूरी है-
लेकिन अपराध को सही दर्ज न करके ये अपराधियों की मदद करने का अपराध कर रहे हैं। अपराध को दर्ज न करने और एस एच ओ से निजी सेवा/काम/ लाभ या फटीक कराने वाले आईपीएस को भला ईमानदार कैसे माना जा सकता है।
आईपीएस अगर ईमानदार हो तो ईमानदार नजर आना जरूरी है। आईपीएस अगर ईमानदार हो तो ही उसके आचरण का असर मातहतों पर पड़ता है। आजकल तो ऐसे आईपीएस है जो खुद ही नियमों की धज्जियां उड़ाते हैं।
थाने में मौत पुलिस पर कलंक-
पहले थाने मेंं हिरासत मेंं मौत के मामले को पुलिस पर कलंक के रूप में देखा जाता था और कमिश्नर उसे बहुत ही गंभीरता से लेते थे। एस एच ओ को तो तुरंत पद से हटा/निलंबित कर विभागीय कार्रवाई की ही जाती थी। एसीपी और डीसीपी की काबिलियत/ भूमिका पर भी सवालिया निशान लगाया जाता था। अब हालात यह है कि 24 अक्टूबर की रात लोदी कालोनी थाने मेंं संदिग्ध हालात में धर्मवीर (52) की मौत हो गई लेकिन एस एच ओ के खिलाफ कोई कार्रवाई तक नहीं की गई। सिर्फ एएसआई विजय को निलंबित किया गया और दो सिपाहियों संदीप और राजेंद्र को लाइन हाजिर किया गया। धर्मवीर की मौत पुलिस की पिटाई से हुई या उसने पुलिस की यातना से तंग आकर आत्महत्या की इसका खुलासा मजिस्ट्रेट जांच मेंं हो जाएगा।
लेकिन दोनों ही सूरत मेंं पुलिस ही गुनाहगार है। अगर इसे आत्महत्या भी मान ले तो पुलिस ने ही उसे इतना डराया या प्रताड़ित किया होगा कि उसने जान दे दी। दक्षिण दिल्ली जैसे इलाके में पुलिस हिरासत मेंं मौत और एस एच ओ के खिलाफ कोई कार्रवाई न करने से पुलिस कमिश्नर की भूमिका पर सवालिया निशान लग जाता है।
एस एच ओ को बचाने लगे कमिश्नर आईपीएस-
सीबीआई ने तिलक नगर थाना इलाके में शराब माफिया से रिश्वत लेते सिपाही जितेंद्र को गिरफ्तार किया। गाजीपुर थाने के अंदर ही रिश्वत लेते हुए सब इंस्पेक्टर हरी मोहन गौतम और हवलदार महीपाल ढाका को गिरफ्तार किया गया। लेकिन इन दोनों मामलों में भी एस एच ओ को हटाया नहीं गया।
थाने के अंदर और इलाके मेंं मातहत पुलिस वाले क्या गुल खिला रहे हैं, किस व्यक्ति से मातहत पूछताछ कर रहे हैं। इसके लिए क्या एस एच ओ जिम्मेदार नहीं है ? मातहतों पर अंकुश लगाने और इलाके मेंं अवैध शराब या अन्य अवैध धंधों को रोकने में नाकाम एस एच ओ के खिलाफ सख्त कार्रवाई न करने से ही पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव और आईपीएस अफसरों की भूमिका पर सवालिया निशान लग जाता है। जहांगीर पुरी मेंं बरामद 163 गांजा बेचने के मामले में चार पुलिस वालो को नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया लेकिन इस मामले मेंं भी एस एच ओ सर्वेश कुमार को सिर्फ लाइन हाजिर किया गया।
बिना नंबर प्लेट की कार पुलिस पर सवाल-
द्वारका इलाके में तो 17 अक्टूबर को सब इंस्पेक्टर पुनीत ग्रेवाल ने सारी हदें पार कर दी।उसने कई लडकियों के साथ छेडख़ानी और अश्लील हरकतें की। एक लड़की ने हिम्मत की और सोशल मीडिया पर यह उजागर किया। तब पुलिस ने तफ्तीश की और पता चला कि अश्लील हरकत करनेवाले वाला सब-इंस्पेक्टर हैं। उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया और नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। यह सब इंस्पेक्टर बिना नंबर प्लेट की कार मेंं घूमता था। इससे ट्रैफिक पुलिस और थाना पुलिस के वाहनों की चेकिंग के दावे की पोल खुल गई है।
आईपीएस अफसर बोझ हैं-
आईपीएस अफसरों की भूमिका पर अब तो एक हवलदार ने ही सवालिया निशान लगा दिया है।
पीसीआर में तैनात हवलदार शंकर लाल ने गृह मंत्रालय से यह तक कह दिया कि दिल्ली पुलिस में आईपीएस और दानिप्स अफसरों की जरुरत ही नहीं है।
हवलदार ने 27 अक्टूबर 2020 को केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला को पत्र लिखा है। हवलदार ने कहा है उसने यह निष्कर्ष निकाला है कि जब थाने का एक एस एच ओ ही सब कुछ कर सकता है तो आईपीएस और दानिप्स अफसरों की आवश्यकता नहीं है। यह अफसर दिल्ली पुलिस पर व्यर्थ का बोझ हैं।
अफसरों की महत्वाकांक्षा सर्वोपरि-
अफसर से लेकर सिपाही तक स्वयं की महत्वाकांक्षा को सर्वोपरि महत्व देते हुए कानून व्यवस्था की धज्जियां उड़ाते हैं। आईपीएस अफसर पुलिस को निजी संस्था बना कर चलाते हैं।
दरिन्दे पुलिस वालों को संरक्षण-
अफसर रस्सी को सांप और सांप को रस्सी बनाने वाले दरिन्दे पुलिस वालों को संरक्षण देते हैं। हवलदार का आरोप है कि भ्रष्ट पुलिस वालों के खिलाफ उच्च अधिकारी कोई कार्रवाई नहीं करते। बल्कि अफसरों के संरक्षण के कारण ऐसे पुलिस वाले शिकायतकर्ता के खिलाफ ही झूठे कलंदरे बना देते हैं।
अदालत में शिकायतकर्ता की याचिका के जवाब मेंं जांच अधिकारी झूठी रिपोर्ट पेश कर याचिकाकर्ता को उलझा देता है।
कानून व्यवस्था से भरोसा उठा-
हवलदार ने लिखा है कि अंत में यह निष्कर्ष निकलता है कि कानून व्यवस्था पर विश्वास न करके अपराधियों के ही पैर पकड़ लिए होते तो उसकी पूंजी और समय नष्ट नहीं होता। इसके अलावा परिवार सहित मानसिक और शारीरिक यातनाएं न भोगनी पड़ती।
कमिश्नर की भूमिका पर सवालिया निशान-
हवलदार ने पत्र मेंं लिखा कि पुलिस कमिश्नर तमोगुणी प्रक्रिया के द्वारा एस एच ओ नियुक्त करते हैं। उसी तमोगुणी प्रक्रिया से एस एच ओ बीट स्टाफ नियुक्त करता है। इसके बाद शुरू होता है आपराधिक ताण्डव जो जितना अधिक अवैध धन अर्जित करके लाता है वहीं बीट मेंं लगाया जाता है और थाने में भी उस कमाऊ पूत का ही वर्चस्व रहता है।
आईपीएस की भूमिका-
हवलदार ने पत्र मेंं यह भी आरोप लगाया है कि जिले के डीसीपी विजिलेंस और स्पेशल स्टाफ के द्वारा लूटने और दरिन्दे पुलिस वालों को बचाने का लगातार प्रयास और काम करते हैं।
स्पेशल पुलिस कमिश्नर (कानून व्यवस्था) और रेंज मेंं तैनात संयुक्त पुलिस आयुक्त को तो कानून व्यवस्था का तनिक भी ज्ञान नहीं है क्योंकि इनकी खुद की महत्वाकांक्षा सर्वोपरि है।
कमिश्नर का एसओ बना कमिश्नर-
पुलिस कमिश्नर का स्टाफ अफसर यानी एस ओ खुद को पुलिस कमिश्नर समझते हुए खुद ही निर्णय लेकर दरिन्दे पुलिस वालों को बचाने की कोशिश करता हैं।
हवलदार का आरोप है कि सतर्कता विभाग के स्पेशल कमिश्नर और डीसीपी ने भी उसकी शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की।
एसीपी (स्पेशल एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट) न्यायिक शक्ति का दुरुपयोग कर असंवैधानिक निर्णय लेते हैं।
आईपीएस की जरूरत नहीं –
हवलदार के अनुसार कुल मिलाकर अंत मेंं यह निष्कर्ष निकलता है कि दिल्ली में आईपीएस और दानिप्स अफसरों की जरूरत नहीं है। ये अफसर दिल्ली पुलिस पर एक बोझ मात्र हैं।
मंगोल पुरी निवासी शंकर लाल पीसीआर मेंं तैनात है। हवलदार ने इस पत्र की प्रतिलिपि उपराज्यपाल, पुलिस कमिश्नर सच्चिदानंद श्रीवास्तव, स्पेशल कमिश्नर आपरेशन को भी भेजी है।
पुलिस कमिश्नर के सामने पेश नहीं करते-
हवलदार शंकर लाल ने बताया कि बात साल 2012 की है उसके इलाके मेंं रहने वाले एक छात्र को कुछ गुंडे परेशान करते थे। उस छात्र की मदद के लिए वह उसके साथ थाने गया था। इसके बाद से गुंडे और पुलिस वाले उसे परेशान करने और धमकी देने लगे। उसके और उसके तीन बेटों के खिलाफ झूठे मामले दर्ज कर दिए गए। उसने इस मामले की शिकायत लगातार कई सालों से उच्च अधिकारियों और सतर्कता विभाग मेंं भी की। तत्कालीन स्पेशल कमिश्नर दीपक मिश्रा, तत्कालीन संयुक्त पुलिस आयुक्त रणबीर कृष्णियांं से भी मिला लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।
अब जून 2020 मेंं भी स्पेशल कमिश्नर मुक्तेश चंद्र और पुलिस कमिश्नर के एसओ विक्रम पोरवाल से भी मिला और पुलिस कमिश्नर के सामने पेश होने की गुहार लगाई। वह कई साल से पुलिस कमिश्नर के सामने पेश हो कर अपनी समस्या का समाधान कराना और पुलिस व्यवस्था की कमियां उजागर करना चाहता है लेकिन उसे पुलिस कमिश्नर के सामने पेश नहीं किया जा रहा है। हवलदार ने बताया कि वह प्रधानमंत्री और गृहमंत्री को भी इस मामले की शिकायत कर चुका है।
FIR के लिए हवलदार ने लगाई गुहार-
पुलिस वालों के मामले भी सही दर्ज नहीं करते अफसर-
DCP को बताने के बावजूद सही धारा नहीं लगाईं-
तीन मई 2020 को हवलदार की छाती मेंं चाकू मार दिया गया। केशव पुरम थाना के एस एच ओ नरेन्द्र शर्मा ने हवलदार महेंद्र पाल की छाती पर चाकू मारने के मामले में भी हत्या की कोशिश का मामला दर्ज नहीं किया। ट्रैफिक पुलिस के टोडा पुर मुख्यालय में तैनात हवलदार महेंद्र ने अपने अफसरों को यह बात बताई। वरिष्ठ अफसर ने उत्तर पश्चिम जिला पुलिस उपायुक्त विजयंता गोयल आर्य को फोन कर सारी बात बताई।
इसके बाद आईओ हवलदार का बयान दोबारा लेकर गया।
इसके बाद भी हत्या की कोशिश की बजाए धारा 324/341/34 के तहत मामला दर्ज किया गया।
हवलदार फिर दोबारा अपने वरिष्ठ अफसरों के सामने पेश हुआ और बताया कि आपके डीसीपी से बात करने के बावजूद हत्या की कोशिश की धारा एफआईआर में दर्ज नहीं की गई।
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