इंद्र वशिष्ठ
वकीलों से पिटने वाली पुलिस महामारी के भयंकर संकट के दौर में भी आम लोगों पर डंडे चला कर अपनी बहादुरी दिखाने में लगी हुई है।इस दौर में भी पुलिस का पारंपरिक संवेदनहीन चरित्र और चेहरा दिखाई दे रहा है।
खुद के पिटने पर रोने वाली पुलिस लोगों को पीट कर खुश-
यह वही पुलिस है जिसकी डीसीपी मोनिका भारद्वाज द्वारा वकीलों के आगे डर कर हाथ जोड़ने और जमात सहित दुम दबाकर कर भागने की वीडियो पूरी दुनिया ने देखी। यह वही दिल्ली पुलिस है जिसे वकीलों ने पीटा तो अनुशासन भूल कर अपने परिवारजनों के साथ पुलिस मुख्यालय पर अपना दुखड़ा रोने जमा हो गई थी।
उस समय आम आदमी पुलिस के पिटने पर खुश हुआ था उसकी मुख्य वजह यह है कि आम आदमी पुलिस के दुर्व्यवहार, भ्रष्टाचार, अत्याचार और अकारण लोगों को पीटने से त्रस्त हैं। इसलिए वकीलों ने पीटा तो आम आदमी ने कहा कि पुलिस के साथ ठीक हुआ।
वकीलों के खिलाफ तो डीसीपी मोनिका भारद्वाज ने अपने साथ हुई बदसलूकी की खुद एफआईआर तक दर्ज कराने की हिम्मत नहीं दिखाई।
हिंसा, आगजनी और पुलिस अफसरों तक को बुरी तरह पीटने वाले वकीलों पर तो इस कथित बहादुर पुलिस ने आत्म रक्षा में भी पलट कर वार नहीं किया। उस समय जिस पुलिस के हाथों में लकवा मार गया था वहीं पुलिस अब आम कमजोर आदमी पर खुल कर हाथ छोड़ रही है।
आम आदमी को पीटने वाली बहादुर पुलिस-
माना कि जीवन रक्षा के लिए लॉक डाउन और सामाजिक दूरी का पालन कराना सबसे पहली
प्राथमिकता है। लेकिन इसके लिए निहत्थे कमजोर बेकसूरों को डंडे मारना न केवल गैरकानूनी है बल्कि अमानवीय भी है। कानून और संविधान तो किसी अपराधी तक को डंडे मारने की इजाजत नहीं देता है।
पुलिस तो उन लोगों तक को डंडे मार रही है जो जीवन के लिए जरूरी चीजें दूध, सब्जी आदि सामान लेने के लिए मजबूरी में ही बाहर निकल रहे हैं। यही नहीं पुलिस दूध, सब्जी बेचने वालों तक पर जमकर अत्याचार कर रही है।
पुलिस तो उन गरीब लोगों तक को डंडे मार रही है जो सरकार द्वारा दिए जा रहे भोजन को लेने जाते हैं।
प्रधानमंत्री ने भी कहा है कि गरीब रोज़ कमाते हैं और रोज़ की कमाई से अपनी जरुरतें पूरी करते हैं। लेकिन पुलिस उस गरीब पर ही अत्याचार कर रही है।
केशव पुरम थाना पुलिस की बहादुरी-
उत्तर पश्चिम जिला के केशव पुरम थाना के इलाके में त्री नगर वर्धमान वाटिका के बाहर छोटी सी सब्जी मंडी लगती है। पुलिस ने 13 अप्रैल को यहां सब्जी बेचने वालों को बैठने ही नहीं दिया। सब्जी वालों के साथ न केवल बदतमीजी की, पिटाई की उनकी सब्जी आदि तक फेंक दी गई।
चांदनी महल पुलिस ने दूध वाले को पीटा-
चांदनी महल इलाके का भी मामला सामने आया है जिसमें दूध बेचने वाले दुकानदार को पुलिस ने बुरी तरह पीटा। जिसके विरोध में दुकानदारों ने पुलिस अफसरों को शिकायत भी की है।
दिल्ली पुलिस सोशल मीडिया पर न केवल सक्रिय हैं बल्कि उस पर नजर भी रख रही हैं। इसलिए यह तो पक्का है कि पुलिस द्वारा ज्यादती किए जाने के जो वीडियो मीडिया या सोशल मीडिया में वायरल हुए उनकी जानकारी भी अफसरों को होगी ही। इसके बावजूद भी पुलिस के अत्याचार जारी हैं।
कौन-सा कानून बेकसूर को पीटने की इजाजत देता है ?
पुलिस कमिश्नर एस एन श्रीवास्तव ने 25 मार्च को पुलिस को दिए संदेश में कहा कि पुलिस चेकिंग के दौरान दुर्व्यवहार न करें संयम से काम करें।
लेकिन दूसरी ओर सच्चाई यह भी है कि पुलिस कमिश्नर एस एन श्रीवास्तव को भी ऐसे वीडियो भेजे गए हैं लेकिन पुलिस कमिश्नर द्वारा कार्रवाई करना तो दूर कोई जवाब तक नहीं दिया जाता है।
क्या पुलिस कमिश्नर बता सकते हैं कि किस कानून या संविधान ने पुलिस को यह इजाजत दी है कि जीवन के लिए आवश्यक सामग्री लेने/ देने वाले निहत्थे , शांति से जा रहे बेकसूरों को बिना वजह पुलिस डंडे मार सकती है।
कमिश्नर या तो वह कानून बताए नहीं तो यह माना जाएगा कि यह गैरकानूनी अमानवीय व्यवहार कमिश्नर की सहमति और आदेश से किया जा रहा है।
कमिश्नर की भूमिका पर सवालिया निशान –
कमिश्नर की जानकारी मे पुलिस के अत्याचार का मामला लाए जाने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की जाती है
शाहदरा पुलिस की करतूत-
इसका अंदाजा इस मामले से लगाया जा सकता है शाहदरा में बाबू राम स्कूल के बाहर मोटरसाइकिल पर दूध के डिब्बों के साथ जा रहे युवक को पुलिसवाले ने रोका और उस पर डंडे बरसाने शुरू कर दिए। जबकि दूध सप्लाई आवश्यक सेवाओं में शामिल है।
इस मामले का वीडियो तुषार सचदेव ने पुलिस कमिश्नर को टि्वटर पर 31 मार्च को भेजा। लेकिन कमिश्नर ने उसका कोई जवाब नहीं दिया।
तुषार ने दो अप्रैल को कमिश्नर को फिर टि्वट कर पूछा कि इस मामले में क्या कार्रवाई की गई लेकिन फिर भी कोई जवाब नहीं दिया गया।
यह तो सिर्फ उदाहरण है सोशल मीडिया पर ऐसे अनेक वीडियो वायरल हुए जिसमें पुलिस लोगों से बिना यह जाने की वह किस मजबूरी में घर से बाहर निकले है बस डंडे बरसाने लग जाती।
पुलिस अफसरों को क्या इतनी मामूली-सी बात भी समझ नहीं आती कि महामारी के दौर में सबको अपनी जान प्यारी है ऐसे में सिर्फ वही लोग बाहर निकल रहे हैं जिनको जीवन के लिए आवश्यक सामान आदि लेने जाना है।
जाहिल ही नहीं मानसिक रोगी हैं ये-
हां यह बात भी सही है कि कुछ जाहिल लोग जिनमें युवा भी शामिल है। उन जाहिलों को इस बीमारी की गंभीरता का अंदाजा नहीं है या जानबूझकर खतरा मोल ले तफरीह के लिए निकल पड़ते हैं। इन लोगों को तो जाहिल ही नहीं मानसिक रोगी समझना चाहिए जिन्हें न अपनी और न ही दूसरों की जान की परवाह है। लेकिन ऐसे लोगों को भी पीटना नहीं चाहिए। समझा कर वापस भेज देना चाहिए, समझाने पर भी न माने तो कानूनी कार्रवाई की जाए।
IPS खाकी को ख़ाक मत मिलाओ-
यह पुलिस आम आदमी पर ही डंडे बरसा कर बहादुरी दिखा सकती। वरना इस पुलिस के आईपीएस कितने बहादुर है यह सारी दुनिया ने उस वीडियो में देखा है जब भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने उत्तर पूर्वी जिले के तत्कालीन डीसीपी अतुल ठाकुर को गिरेबान से पकड़ा और एडिशनल डीसीपी राजेंद्र प्रसाद मीणा को खुलेआम धमकी दी। तब पुलिस कमिश्नर और इन आईपीएस अधिकारियों की हिम्मत मनोज तिवारी के खिलाफ एफआईआर तक दर्ज करने की नहीं हुई।
पुलिस की पेशेवर काबिलियत का पता तब चलता है जब वह सब्जी बेचने वालों, अन्य दुकानों और खरीदने वालों के बीच सामाजिक दूरी बनाए रखने की सही व्यवस्था करे। सब्जी बेचने वालों को भगा देना तो पेशेवर काबिलियत पर सवालिया निशान लगाते हैं। इससे तो यही पता चलता है कि पुलिस व्यवस्था करने में नाकाम हो गई है।
IPS क्या जाने लोगों की मुश्किलें-
हालांकि ज्यादातर आईपीएस सामान्य परिवारों से ही आते है। लेकिन आईपीएस बनने के बाद भी आम आदमी के दुःख दर्द को समझने वाले संवेदनशील अफसर कम ही होते हैं। ज्यादातर पर तो वर्दी की ताकत का नशा सिर चढ़कर बोलता है।
आईपीएस अफसरों को तो सब्जी आदि खरीदने खुद जाना नहीं पड़ता। उनके पास तो अपने निजी काम के लिए अपने मातहतों की फौज हैं जिसका इस्तेमाल वह अपने गुलामों की तरह हमेशा से करते ही रहे हैं।
इसलिए आम आदमी को क्या मुश्किलें आ रही है यह वह क्या जाने और इसकी उनको परवाह भी नहीं है।
लोगों और संस्थाओं की मदद से मिले सामान को जरुरतमंदों तक बांट कर और उसका प्रचार कर पुलिस अपनी छवि अच्छी बनाने की कोशिश कर रही है लेकिन जब तक पुलिस का आम आदमी के साथ व्यवहार अच्छा नहीं होगा पुलिस की छवि ख़राब ही रहेगी।
जागो IPS जागो –
किसी के भी पिटने पर किसी को ख़ुश नहीं होना चाहिए लेकिन वकीलों ने पुलिस को पीटा तो लोग खुश हुए। आईपीएस अफसरों को इस पर चिंतन कर पुलिस का व्यवहार सुधारने की कोशिश करनी चाहिए। वरना ऐसी आशंका है कि एक दिन ऐसा भी हो सकता है कि पुलिस के अत्याचार से परेशान हो कर आम आदमी भी डंडे बरसाने वाली पुलिस पर आत्म रक्षा में पलटवार करने लगेगा। इस सबके लिए सिर्फ और सिर्फ आईपीएस अफसर ही जिम्मेदार होंगे।
पुलिस को अपनी बहादुरी और मर्दानगी दिखाने का शौक है तो कानून तोड़ने वाले नेताओं, रईसों और गुंडों पर दिखाएं।
वर्दी के नशे में आम आदमी पर अत्याचार करना बहादुरी नहीं होती।
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