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भारत-पाक बातबंदी क्यों?

डॉ. वेदप्रताप वैदिक 
हम तीन घटनाओं को एक साथ रखकर देखें और किसी नतीजे पर पहुंचने की कोशिश करें। एक तो पाकिस्तान में आज से नए सेनापति जनरल कमर-जावेद बाजवा की नियुक्ति, दूसरा जम्मू-कश्मीर के नगरोटा में सुबह से चल रहा आतंकवादियों का हमला और सरताज अजीज का 4 दिसंबर को अमृतसर आना। पाकिस्तान में पिछले 20 साल में यह पहली बार हुआ है कि किसी सेनापति को उसकी नियत अवधि में सेवा-निवृत्त होना पड़ा है। पाकिस्तान में फौज का पलड़ा इतना भारी हो जाता है कि किसी राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री की हिम्मत नहीं पड़ती कि वह सेनापति को उसके नियत समय पर सेवा-निवृत्त कर दे। नवाज शरीफ ने ऐसी हिम्मत की, यह बड़ी बात है।
राहील शरीफ इतने लोकप्रिय सेनापति रहे कि उन्हें एक अवधि और मिलेगी या वे तख्ता-पलट ही कर देंगे, ऐसा अंदाजी घोड़ा काफी लोग दौड़ा रहे थे लेकिन पाकिस्तानी लोकतंत्र के लिए यह बेहतर हुआ कि राहील शरीफ बड़े गरिमापूर्ण ढंग से बिदा हो गए लेकिन सेनापति बाजवा का यह कैसा सत्तारोहण हुआ कि आज ही भारतीय फौज और आतंकियों में मुठभेड़ हुई और दोनों तरफ के कई लोग मारे गए। यह अपशकुन है। इसके पहले राहील शरीफ और रक्षामंत्री ने भी भारत के खिलाफ धमकीभरे बयान दिए थे। हमारे रक्षामंत्री के तो कहने ही क्या? उनके मन में जो भी आता है, उसे वे सबके सामने उगल देते हैं। वे नहीं जानते कि उनके बोले हुए का कितना महत्व है।
निराशा की इस धुंध में आशा की एक हल्की-सी किरण यह है कि चार दिसंबर को पाक के वास्तविक विदेश मंत्री सरताज अजीज अफगान-सम्मेलन में भाग लेने अमृतसर आ रहे हैं। अपनी विदेशी मंत्री सुषमाजी वहां नहीं जा पा रही हैं, स्वास्थ्य ठीक नहीं होने के कारण ! तो अब अजीज किससे बात करेंगे? दोनों पक्षों में बात होगी, यह अभी तक तय नहीं हुआ है। अजीज चाहें तो हमारे अजित दोभाल से बात कर सकते हैं और प्रधानमंत्री से भी। इसका इशारा पाकिस्तानी उच्चायुक्त अब्दुल बासित ने कल रात एक टीवी इंटरव्यू में किया है। उनका रवैया काफी रचनात्मक था।
दोनों पक्षों में बातबंदी उसी तरह से चल रही है, जैसे भारत में नोटबंदी चल रही है। नोटबंदी में से सरकार जैसे रोज नए-नए रास्ते निकाल रही है, वैसे ही इस बातबंदी में से भी निकाले। यह मौका इसलिए भी अच्छा है कि एक तो पाकिस्तान में नए सेनापति आए हैं और दूसरा, इससे नवाज शरीफ याने पाकिस्तानी लोकतंत्र को भी ताकत मिलेगी।

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