चंडीगढ़: इराक के मोसुल में आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट के चंगुल से 2014 में बचकर निकले एकमात्र भारतीय नागरिक ने मंगलवार को सवाल उठाया कि वहां बंधक बनाए गए सारे लोगों को जब वर्षो पहले ही मार दिया गया तो फिर सरकार ने इतने साल से इस बात को स्वीकार्य क्यों नहीं किया। हरजीत मसीह ने कहा, “मैंने सच्चाई बताई थी।”
उन्होंने अपनी बात जोरदार तरीके से तब उठाई जब सुषमा स्वराज ने संसद को बताया कि रडार के माध्यम से 39 लोगों के शव की तलाश की गई, जिनकी पहचान डीएनए जांच से हुई है।
गुरुदासपुर जिले के एक गांव के रहनेवाले मसीह ने संवाददाताओं से कहा, “मैं 39 भारतीय लोगों के आईएसआईएस आतंकियों द्वारा मारे जाने के बार में पिछले तीन साल से बता रहा था।”
उन्होंने कहा, “उन सबों की हत्या मेरी आंखों के सामने हुई है। मैं हैरान हूं कि सरकार क्यों नहीं मेरी बात पहले मान रही थी।”
हालांकि स्वराज ने राज्यसभा में अपने बयान में उनके दावे का खारिज किया और कहा, “वह मुझे यह नहीं बताना चाहते थे कि वह कैसे बचकर निकले।”
पूरी घटना बयां करते हुए 28 वर्षीय मसीह ने कहा, “भारतीयों को आतंकियों ने अगवा किया और उनको बंधक बनाकर रखा। कुछ दिनों के बाद आतंकियों ने उनपर अंधाधुंध गोलियां बरसाईं।”
उन्होंने कहा, “मैं गोली लगने से घायल होने के बावजूद उनकी चंगुल से निकलकर भागने में कामयाब रहा।”
इराक में लापता हुए सभी 39 लोग गरीब परिवार के थे और उनमें से अधिकांश पंजाब के गांवों के रहनेवाले थे।
उनके परिवारों से बीते अक्टूबर में उनके डीएनए के नमूने लिए गए।
सुषमा स्वराज ने इससे पहले भरोसा उन्हें भरोसा दिलाया था कि लापता लोगों का पता लगाने की पूरी कोशिश की जाएगी।
लेकिन मंत्री ने इतने साल से सिर्फ यह बताया कि भारतीयों के मारे जाने की कोई पुष्ट सूचना नहीं है।
–आईएएनएस
और भी हैं
रॉन्ग साइड चलने वाले वाहनों के खिलाफ विशेष कार्रवाई की जाएगी : लक्ष्मी सिंह
जस्टिस संजीव खन्ना बने भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश
मुस्लिम महिलाओं और शिया धर्मगुरु ने वक्फ बिल का किया समर्थन