डॉ. वेदप्रताप वैदिक,
अमृतसर में संपन्न हुआ ‘एशिया का हृदय’ सम्मेलन की ठोस उपलब्धि क्या है? जो कुछ अखबारों में छपा है और टीवी चैनलों पर दिखा है, उससे तो यही लगता है कि नरेंद्र मोदी और अफगान नेता अशरफ गनी इस महत्वपूर्ण अवसर का बेहतर इस्तेमाल कर सकते थे। इसका मतलब यह नहीं कि उन्होंने जो कहा, वह गलत था।
भारत और अफगानिस्तान दोनों ही आतंकवाद के शिकार हैं। यह स्वाभाविक है कि उसके नेता पाकिस्तान को कोसें। पाकिस्तान आतंकवाद का गढ़ बन चुका है, इस मुद्दे पर दो राय नहीं हैं लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान में आतंक के फलस्वरुप कहीं ज्यादा हत्याएं हो रही हैं।
इस अवसर पर, जबकि 40 राष्ट्र मिलकर अफगानिस्तान के नव-निर्माण पर चर्चा करने बैठे थे, महत्वपूर्ण राष्ट्रों को चाहिए था कि वे एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने की बजाय आतंकवाद से लड़ने का कोई सर्वसम्मत और ठोस रास्ता निकालते। गनी ने तो पाकिस्तान के 50 करोड़ डाॅलर भी ठुकरा दिए और कहा, इन पैसों का इस्तेमाल आप आतंकवाद के विरुद्ध करें।
इस रवैए से क्या आप पाकिस्तान का बर्ताव बदल सकते हैं? अपने तीखे भाषणों पर आप खुद मुग्ध हो लिए लेकिन पाकिस्तान का क्या बिगड़ा? अफगानिस्तान को क्या मिला? कुछ भी नहीं। इस बहुराष्ट्रीय सम्मेलन को हमारे इन दोनों नेताओं ने त्रिपक्षीय तू-तू मैं-मैं नौटंकी में बदल दिया।
यदि यह सम्मेलन संकल्प करता कि ये 40 राष्ट्र कम से कम 20 बिलियन डाॅलर अफगानिस्तान के विकास के लिए देंगे, हर जिले में स्कूल और अस्पताल खोलेंगे, जलालाबाद से हेरात तक रेल्वे-लाइन डालेंगे और अफगान-तालिबान से शांति की पेशकश करेंगे तो यह जमावड़ा सार्थक हो जाता लेकिन पाकिस्तान के वयोवृद्ध प्रतिनिधि सरताज अजीज के मर्यादित रवैए ने मोदी और गनी, दोनों की छवि को धुंधला कर दिया।
हालांकि अजीज चाहते तो अपनी तरफ से आग्रह करके मोदी और गनी से अलग से मिलते और कोई त्रिपक्षीय मार्ग खोज निकालते लेकिन दक्षिण एशिया का यह दुर्भाग्य है कि हमारे नेतागण एक-दूसरे से बात करने की बजाय भीड़ को संबोधित करना बेहतर समझते हैं।
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