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कृषि विधेयकों पर संसद की मुहर, हंगामे के बीच राज्यसभा में घ्वनिमत से पारित

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नई दिल्ली :राज्यसभा में रविवार को विपक्ष के हंगामे के बीच कृषि विधेयक ध्वनिमत से पारित हुए। इसके साथ ही मोदी सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र में नए सुधार के कार्यक्रमों को अमलीजामा पहनाने के लिए लाए गए कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक 2020 और कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 संसद के दोनों सदनों में पारित हो गए हैं। लोकसभा ने इन्हें 17 सितंबर को ही मंजूरी दे दी थी।

विधेयक पर विपक्ष के सवालों का जवाब देते हुए केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि किसानों की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य हासिल करने के लिए विधेयक लाने से पहले भी कई कदम उठाए गए हैं और इस दिशा में सरकार लगातार प्रयासरत है।

वहीं, विपक्षी दलों के सदस्यों द्वारा फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को लेकर उठाए गए सवाल पर केंद्रीय मंत्री ने फिर कहा, माननीय प्रधानमंत्री (नरेंद्र मोदी) ने भी देश को आश्वस्त किया है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य का इस विधेयक से कोई लेना-देना नहीं है। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद हो रही थी और आने वाले दिनों में भी खरीद होती रहेगी। इसमें किसी को शंका करने की आवश्यकता नहीं है।

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उन्होंने सदन को बताया कि मोदी सरकार ने एमएसपी पर स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिश लागू कर विभिन्न फसलों के एमएसपी में बढ़ोतरी की। तोमर ने बीते छह साल के दौरान विभिन्न फसलों के एमएसपी में की गई बढ़ोतरी का ब्योरा भी पेश किया।

राज्यसभा में विधेयक पर केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर जब विपक्ष के सवालों का जबाव दे रहे थे तब विपक्षी दलों के सांसदों ने हंगामा शुरू कर दिया। नारेबाजी करते विपक्षी दलों के सांसद उपसभापति के आसन तक पहुंच गए।

दोनों विधेयकों पर चर्चा के दौरान कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, डीएमके समेत विपक्ष में शामिल दलों के सदस्य विरोध में बोले। पंजाब से कांग्रेस सांसद प्रताप सिंह बाजवा ने इसे संघीय व्यवस्था के विरुद्ध बताया। उन्होंने कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक 2020 से राज्यों के कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) कानून के तहत संचालित मंडियों के समाप्त होने की आशंका जताई। साथ ही, एमएसपी पर फसलों की खरीद को लेकर किसानों की चिंता का जिक्र किया।

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बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के सांसद सतीश चंद्र मिश्रा ने भी कहा कि आज किसान जो आंदोलन कर रहे हैं उनकी सिर्फ एक आशंका है कि इस विधेयक के बाद उनको एमएसपी मिलना बंद हो जाएगा। उन्होंने कहा कि अगर विधेयक में किसानों को इस बात का आश्वासन दिया गया होता कि उनको न्यूनतम समर्थन मूल्य अवश्य मिलेगा तो शायद यह आज चर्चा का विषय नहीं होता।

शिवसेना सांसद संजय राउत ने भी कृषि विधेयकों के किसानों के हित में होने के सरकार के दावे पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि अगर कृषि सुधार की बात की जा रही है तो किसान क्यों सड़कों पर उतरे हैं।

इससे पहले कृषक उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक 2020 के संबंध में तोमर ने कहा कि लंबे समय से कृषि संबंधी विषयों के चिंतक, वैज्ञानिक और नेतागण की तरफ से संकेत मिल रहे थे कि एपीएमसी में किसानों के साथ न्याय नहीं हो रहा है और उसकी कार्यप्रणाली में पारदर्शिता नहीं है, इसलिए किसानों के लिए दूसरा विकल्प होना चाहिए।

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केंद्रीय मंत्री ने विधेयक का प्रस्ताव करते हुए कहा कि इस विधेयक के माध्यम से किसानों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की जा रही है जिससे बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और किसानों को उनके उत्पादों का उचित दाम मिलेगा। तोमर ने कहा, विधेयक में किसानों द्वारा बेची जाने वाली फसलों का भुगतान तीन दिन के भीतर करने का प्रावधान है।

इससे पहले, उन्होंने कृषक (सशक्तीकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 के संबंध में कहा कि इस विधेयक में इस बात का प्रावधान है कि बुवाई के समय जो करार होगा उसमें कीमत का आश्वासन किसान को मिल जाएगा।

केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि इन विधेयकों के संबंध में अनेक प्रकार की धारणाएं बनाई जा रही है। उन्होंने कहा, ये विधेयक एमएसपी से संबंधित नहीं हैं। एमएसपी सरकार का प्रशासकीय निर्णय है। एमएसपी जारी थी, जारी है और जारी रहेगी।

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तोमर ने कहा कि किसानों को मनचाही कीमतों पर बेचने की स्वतंत्रता नहीं थी, लेकिन इस विधेयक के माध्यम से उनको मनचाही कीमतों, मनचाहे स्थान और व्यक्ति को बेचने की स्वतंत्रता होगी।

–आईएएनएस

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